नई दिल्लीः भारत में मुक्केबाजी को आज के लोकप्रिय स्तर तक पहुंचाने में हरियाणा के भिवानी शहर के भिवानी बॉक्सिंग क्लब का बहुत योगदान रहा है जिसनें विभिन्न भार-वर्गों में देश को कई मेडलिस्ट दिए। विजेंद्र सिंह, अखिल कुमार, जीतेंद्र कुमार, जैसे बॉक्सरों ने युवाओं में इस खेल के प्रति जोश भरने का काम किया। 2008 बीजिंग ओलंपिक के पदक विजेता विजेंदर तो बाद में प्रोफेशनल बॉक्सिंग में भी चले गए। लेकिन भारत में यह मैरी कॉम हैं जिन्होंने सही मायनों में खुद को बॉक्सिंग का प्रतीक साबित किया।
2012 का लंदन ओलंपिक भारतीय महिला स्पोर्ट्स के लिए बहुत खास साबित हुआ। इसमें साइना नेहवाल ने भारत की ओर से बैडमिंटन में पहला मेडल हासिल किया तो मैरी कॉम भी इसी ओलंपिक में देश की पहली महिला बॉक्सर बनीं जिसने ना केवल ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया, 51 किग्रा भार वर्ग में मैच खेला बल्कि कांस्य पदक भी जीतकर दिखाया।
ऐसा नहीं था कि मैरी कॉम को घर से ही बॉक्सिंग का शौंक था। भारत के नार्थ-ईस्ट राज्य मणिपुर में पैदा हुईं मैरी कॉम को इस खेल की प्रेरणा अपने ही राज्य के दिग्गज बॉक्सर डिंगो सिंह को देखकर मिली। डिंको सिंह बैंकाक एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल हासिल किया था। उनकी इस उपलब्धि ने मणिपुर में कई युवाओं को प्रभावित किया जिनमें मैरीकॉम भी एक थी। दुर्भाग्य से डिंको सिंह का निधन इसी साल लंबी बीमारी के चलते हो गया है।
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मैरी कॉम के परिवार में अपनी चुनौतियां थी। पिता नहीं चाहते थे कि बेटी ऐसे खेल को पेशा बनाए जिसमें चेहरे पर चोट लगने का खतरा हो ताकि शादी में दिक्कत ना आए। पिता से छुपकर मैरी ने इस खेल में अपने हुनर को तराशा जिसके चलते पिता को भी बाद में झुकना पड़ा।
मैरी कॉम की शादी भी जल्दी हुई और दो बच्चे भी हुए जिसके बाद उन्होंने अपनी ट्रेनिंग और मजबूत से शुरू कर दी। उन्होंने ओलंपिक 2012 से पहले बॉक्सिंग चैम्पियनशिप, एशियन गेम्स आदि जैसी प्रतियोगिता में आसानी से गोल्ड मेडल हासिल करना सीख लिया था। हालांकि उनको ओलंपिक के लिए कुछ फेरबदल करना पड़ा क्योंकि वे 46 और 48 किग्रा भार-वर्ग में खेलती थीं लेकिन ओलंपिक के लिए उनको 51 किग्रा वेट कैटेगरी में शिफ्ट होना पड़ा। खास बात यह है कि 2012 के ओलंपिक में पहली बार महिलाओं की बॉक्सिंग को शामिल किया गया था।
ओलंपिक के लाइटवेट में खेलते हुए मैरी ने पहले दौर में पोलैंड की करोलिना मिचलचुक के खिलाफ 19-14 से जीत हासिल की, जो ओलंपिक के इतिहास में महिला मुक्केबाजी का तीसरा मुकाबला था। पहले दौरे में घबराई दिख रही मैरी के लिए दूसरा दौर आसान था क्योंकि उन्होंने सेमीफाइनल में प्रवेश करने के लिए ट्यूनीशियाई मारौआ रहीली को 15-6 से हराया।
सेमीफाइनल में कॉम की प्रतिद्वंद्वी ग्रेट ब्रिटेन की निकोला एडम्स थीं। यह सबसे कठिन प्रतिद्वंद्वी थीं लेकिन मैरी कॉम ने उनको पहले हरा चुकी थीं। हालांकि वह कॉम का दिन नहीं था क्योंकि वह एक कठिन मुकाबले में 6-11 से हार गई और कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा।
भारत के लिए ओलंपिक 2012 बहुत संतोषजनक साबित हुए क्योंकि इसने देश को 6 पदक दिलाए जिसमें 2 सिल्वर और 4 कांस्य थे। लेकिन भारत मैरी कॉम से 2020 टोक्यो ओलंपिक में लंदन के उस कांस्य से बेहतर होने की उम्मीद कर रही होगा।