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BCCI ने AGM में लिया बड़ा फैसला, सुप्रीम कोर्ट माना तो 2024 तक अध्यक्ष रहेंगे गांगुली

नई दिल्ली: सौरव गांगुली की अगुवाई वाली बीसीसीआई ने रविवार को एजीएम में महत्वपूर्ण फैसला लिया है। इस बैठक में पदाधिकारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य प्रशासनिक सुधारों को लचीला और कमतर करने का फैसला किया। इन सुधारों में सबसे महप्वपूर्ण कूलिंग ऑफ पीरियड का मामला था।

यह सौरव गांगुली के बीसीसीआई अध्यक्ष कार्यकाली की पहली एजीएम हो रही है। अगर संशोधन लागू हो जाता है, तो बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली लगातार दो बार बोर्ड की बागडोर संभाल सकेंगे। वर्तमान संविधान के अनुसार, गांगुली को अगले साल जुलाई-अगस्त में तीन साल के कूलिंग-ऑफ की अवधि के लिए जाना होगा, क्योंकि वह लगभग पांच वर्षों के लिए क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल (सीएबी) के पदाधिकारी थे।

एजीएम से पहले पूर्व कप्तान को अपने नौ महीने के कार्यकाल के अंत में एक एक्सटेंशन पाने के लिए रास्ता साफ करने की मांग की गई थी। । हालांकि बोर्ड की 88वीं वार्षिक आम बैठक (एजीएम) में लिए गए इस फैसले को लागू करने के लिए शीर्ष अदालत की मंजूरी की आवश्यकता होगी।

इस वजह से अनुष्का शर्मा की 'ऐ दिल है मुश्किल' पर आया विराट का दिलइस वजह से अनुष्का शर्मा की 'ऐ दिल है मुश्किल' पर आया विराट का दिल

एक शीर्ष अधिकारी ने पीटीआई को बताया, "सभी प्रस्तावित संशोधनों को मंजूरी दे दी गई है और इसे उच्चतम न्यायालय में भेज दिया जाएगा।"

वर्तमान संविधान के अनुसार, एक पदाधिकारी जिसने बीसीसीआई या राज्य संघ में दो बार तीन साल सर्विस की है, वह अनिवार्य तीन साल के कूलिंग-ऑफ अवधि में जाता है।

गांगुली ने 23 अक्टूबर को कार्यभार संभाला था, उससे पहले वह बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन में अध्यक्ष थे। गांगुली को अगले साल पद खाली करना था, लेकिन अब इस नियम में ढील उन्हें 2024 तक पद जारी रखने की इजाजत दे सकती है।

मौजूदा नीति के तहत यह मांग की गई है कि कूलिंग ऑफ पीरियड तभी दिया जाए जब एक पदाधिकारी बोर्ड और राज्य संघों में अलग-अलग समय दो कार्यकाल (6 वर्षों के) पूरा कर चुका हो।

अगर यह मंजूरी दी जाती है, तो सचिव जय शाह के कार्यकाल को बढ़ाने का रास्ता भी साफ हो जाएगा क्योंकि उनके मौजूदा कार्यकाल में समय भी कम है।

बोर्ड यह भी चाहता है कि अदालत संवैधानिक संशोधनों पर भविष्य के फैसलों से बाहर रहे और उसने प्रस्ताव दिया है कि एजीएम में तीन-चौथाई बहुमत अंतिम फैसला लेने के लिए पर्याप्त होगा।

अधिकारियों का मानना ​​है कि प्रत्येक संशोधन के लिए सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी लेना "व्यावहारिक" नहीं है, जो वर्तमान में मौजूदा संविधान के अनुसार होना चाहिए।

Story first published: Sunday, December 1, 2019, 16:29 [IST]
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