'द वॉल' की असली कहानी
द्रविड़ जब क्रिकेट खेलते थे तो दर्शकों में एक विश्वास होता था कि कोई भी आउट हो जाए लेकिन ये बंदा खूंटा गाड़े खड़ा रहेगा। टेस्ट मैच में तो दर्शक मानकर चलते थे कि 10-15 गेंदों में अगर वो आउट नहीं हुए तो घूम-घाम के आ जाओ आपको यह खिलाड़ी अगले दिन भी खेलता हुआ मिलेगा। द्रविड़ ने "द वॉल" विशेषण कमाया है। यह न तो किसी रिपोर्टर ने सोचा न ही किसी कमेंटेटर की सोच थी, इस शब्द के उदभव के पीछे एक शानदार कहानी है, वैसी ही जैसी कि द्रविड़ की क्रिकेट पारियां। एक रिसर्च और बहुत सारी मेहनत के बाद उन्हें अक्सर लोग इसी नाम से बुलाने लगे। भारतीय क्रिकेट में खिलाड़ी तो कई पैदा हुए लेकिन द्रविड़ एक ही पैदा हुआ और एक ही रहेगा। जानिए आखिर 'द वॉल' की असली कहानी क्या है, आज तक आपने जो सुना या जानते थे उससे बिल्कुल अलग है यह कहानी।
नीमा नामचू और नितिन बेरी ने दिया द्रविड़ को नया नाम
राहुल द्रविड़ क्रिकेट में इतने मशहूर हो गए कि चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर उनके नाम की एक दीवार है जिस पर लिखे तीन शब्द उन्हें पूर्णतः परिभाषित करते हैं वो शब्द हैं कमिटमेंट, क्लास और कंसिसटेंसी। किसी भी खिलाड़ी के लिए या आम जीवन में भी ये तीन शब्द आपको सफलता के एक नए सोपान पर ले जा सकते हैं। द्रविड़ को दीवार कहे जाने के पीछे जिस शख्स की गहन सोच, चिंतन, रिसर्च और विश्लेषण है उनका नाम है नीमा नामचू और नितिन बेरी। ये दो शख्स Leo Burnett नाम की एक ऐड एजेंसी के लिए काम करते थे, Reebok के एक ऐड कैंपेन के लिए इन्हें टीम इंडिया के सभी खिलाड़ियों के नामकरण (उपनाम जिसमें एक पंच हो) करने थे। राहुल को दीवार की संज्ञा से तब सुशोभित किया गया था जब शायद बहुत कम लोग इसे जानते थे। द्रविड़ ने क्रिकेट एक्सपर्ट विक्रम साठे को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि बाद में अखबार और खबरों में इस शब्द प्रचलन बढ़ा। राहुल के अच्छे प्रदर्शन की बदौलत टीम को मिली जीत के बाद "The Wall Stands Tall' और खराब प्रदर्शन के बाद "The Wall Collapses in Defeat' जैसे शीर्षक अखबारों में सामान्य हो गए थे।
"दूसरे सचिन पैदा हो सकते हैं लेकिन दूसरा द्रविड़ नहीं"
नामचू ने अपने एक साक्षात्कार में बताया कि "द्रविड़ की पहली सीरीज के बाद उन्हें एक नया नाम देना था, हम लोगों ने उनके हाव-भाव, खेलने के अंदाज और विषम परिस्थितियों में भी टीम को मुश्किल से उबारने और पिच पर उनके डटे रहने की प्रवृति की वजह से उनके लिए जो उपयुक्त शब्द सोचा वो था 'दीवार' जो हर परिस्थिति में अडिग और अटल रहती है"। उन्होंने आगे यह भी बताया कि द्रविड़ भले ही लंबे छक्के या ताबड़तोड़ चौके नहीं मारते थे लेकिन निरंतर रन बनाते थे। ऐसे कई कारण थे जिसकी वजह से प्रचार लिखने वाले इन दो शख्स ने क्रिकेट को मिले एक अनमोल रतन के लिए एक नया विशेषण दिया। राहुल को "द वॉल" उपनाम अपने पहले ही टेस्ट सीरीज में मिल गया था जो बाद में उनकी पहचान बन गया और उन्होंने 16 साल तक इस शब्द की प्रतिष्ठा और सम्मान बनाए रखा। क्रिकेट में उन्हें अपना आदर्श मानने वाले कई खिलाड़ी आए, द्रविड़ से उनकी तुलना भी हुई, सराहना भी मिले लेकिन एक क्रिकेट दिग्गज ने कहा है "दूसरे सचिन पैदा हो सकते हैं लेकिन दूसरा द्रविड़ नहीं"।
जब फील्ड पर पहली बार दिखाया गुस्सा
इस अभियान के तहत सिर्फ द्रविड़ ही नहीं बल्कि अजहर और कुंबले को भी निकनेम दिए गए थे जो शायद ही लोगों को पता भी हो। कलाई के जादूगर अजहर को 'The Assassin' और बाद में जंबो के नाम से मशहूर कुंबले को 'The Viper' की संज्ञा दी गई थी। क्या इस दो महान खिलाड़ियों को दिए इन नामों की आपने को कहानी सुनी थी, मुझे नहीं लगता आपने सुनी होगी। द्रविड़ को उनके खेल और अनुशासन की वजह से क्रिकेट जगत का सबसे बड़ा 'जेंटलमेन' कहा जाता है। क्रिकेट के मैदान पर उन्हें भावुक या गुस्सा होते हुए शायद ही किसी ने देखा हो। एक बार राजस्थान रॉयल्स से आईपीएल खेलते हुए रन चेज न कर पाने पर उन्होंने डग आउट में गुस्से में कैप फेंक दी थी। वह शायद पहला मौका था जब लोगों ने उन्हें गुस्सा होते देखा था, हालांकि बाद में द्रविड़ ने साक्षात्कार में ऐसा करना गलत माना था।
दिग्गज को जन्मदिन की अनन्य शुभकामनाएं
राहुल को दीवार के विशेषण से नवाजने के लिए भले ही एक-आध सीरीज का वक्त लगा हो लेकिन उन्होंने 16 सालों तक अपने कठिन परिश्रम से इसका मान रखा और आज भी टीम इंडिया को एक से एक चैंपियन खिलाड़ी दे रहे हैं, वो उनकी प्रतिमूर्ति अजिंक्य रहाणे हों या फिर टफ टाइम में मदद पाने वाले चेतेश्वर पुजारा, टीम इंडिया में आते ही तिहरा शतक लगाने वाले करूण नायर हों या तूफानी पारी खेलने वाले श्रेयस अय्यर, ऋषभ पंत और संजू सैमसन। वो चुपके से आज भी क्रिकेट से मिला सब कुछ इसे वापस दे रहे हैं जिससे टीम इंडिया में कभी शानदार खिलाड़ियों की कमी न हो। उनकी तरकश से अभी कई दिग्गज खिलाड़ी और आने वाले हैं। क्रिकेट के इस दिग्गज को जन्मदिन की अनन्य शुभकामनाएं। आप ऐसे ही क्रिकेटर पैदा करते रहें।
1996 के पहले टेस्ट से लेकर 9 मार्च 2012 तक क्रिकेट की 'दीवार' एक स्तंभ बनकर अडिग थी और आज भी क्रिकेट प्रशंसकों के दिल में उनके लिए एक खास जगह है।