पाकिस्तान में न खेलने के फैसले पर अड़ा रहा है भारत
भारत ने भले ही मल्टी नेशन टूर्नामेंट में पाकिस्तान के साथ खेलने से इंकार न किया हो लेकिन पाकिस्तान का दौरा न करने के फैसले पर वह हमेशा टिकी हुई नजर आयी है। इसका उदाहरण हमें एशिया कप की मेजबानी के दौरान देखने को मिला है। एशिया कप के पिछले 3 संस्करण में यही देखने को मिला है, जब इस टूर्नामेंट की मेजबानी भारत या पाकिस्तान के पास होती है तो दोनों देश एक-दूसरे के घर पर मैच खेलने से इंकार कर देते हैं, जिसके चलते टूर्नामेंट का आयोजन या तो न्यूट्रल वेन्यू पर किया जाता है या फिर दूसरे देश के साथ मेजबानी बदल दी जाती है। 2020 में खेले जाने वाले एशिया कप की मेजबानी पाकिस्तान के पास थी लेकिन भारत के कड़े रुख के चलते उसे श्रीलंका के साथ मेजबानी बदलनी पड़ी। हालांकि कोरोना वायरस के चलते यह टूर्नामेंट पिछले 2 सालों में आयोजित नहीं हो सका है लेकिन अब यह टूर्नामेंट सितंबर 2022 में श्रीलंका की मेजबानी में खेला जायेगा।
अगर टूर्नामेंट में खेलने से किया इंकार तो क्या होगा
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत का यह रुख चैम्पियन्स ट्रॉफी 2025 के लिये भी कायम रहेगा जिसकी मेजबानी पूरी तरह से पाकिस्तान के पास है। आईसीसी टूर्नामेंट में अगर कोई टीम किसी दूसरी टीम के खिलाफ खेलने से इंकार कर देती है तो इंकार करने वाली की टीम के खाते से अंक छीनकर विरोधी टीम को दे दिये जाते हैं, ऐसे में अगर कोई टीम टूर्नामेंट में खेलने से इंकार कर दे तो क्या होगा।
उल्लेखनीय है कि आईसीसी के टूर्नामेंट में हिस्सा लेने या न लेने का अधिकार हर टीम के पास होता है, ऐसे में अगर कोई टीम चाहे तो वो टूर्नामेंट का हिस्सा बनने से इंकार कर सकती है। हालांकि अगर कोई टीम ऐसा करती है तो उसके पीछे उसे पर्याप्त कारण देने होंगे, तो वहीं पर आगामी आईसीसी टूर्नामेंट में उस टीम का स्वतः क्वालिफिकेशन भी खतरे में पड़ जाता है। ऐसे में उस टीम को अगले आईसीसी टूर्नामेंट में क्वालिफाई करने के लिये क्वालिफॉयर टूर्नामेंट में हिस्सा लेकर वापसी करनी होगी, तभी उसे अगले टूर्नामेंट में खेलने का मौका मिलेगा।
न खेलने से किसे ज्यादा नुकसान
ऐसे में भारतीय टीम सुरक्षा कारणों का हवाला देकर टूर्नामेंट का हिस्सा न बनने का फैसला कर सकती है, हालांकि अगर भारत ऐसा करता है तो इससे किसे ज्यादा नुकसान होगा। विश्व क्रिकेट के सबसे बड़े शेयर होल्डर्स की बात करें तो बीसीसीआई का बहुत बड़ा योगदान है। खेल की लोकप्रियता की बात करें तो कुल व्युअरशिप का 67 प्रतिशत भारत के पास है, जबकि 33 प्रतिशत हिस्से में बाकी के देश हैं, ऐसे में किसी भी आईसीसी के टूर्नामेंट में भारत की मौजूदगी या गैर मौजूदगी काफी प्रभाव छोड़ती है। 2007 के वनडे विश्वकप में भारतीय टीम पहले ही राउंड से बाहर हो गई थी और सुपर 10 में भी नहीं पहुंच पायी थी। नतीजन भारत के बाहर हो जाने के बाद आईसीसी के इस टूर्नामेंट की व्यूअरशिप अर्श से फर्श पर जा गिरी। यह आंकड़े तब के हैं जब भारत में इंटरनेट का उतना चलन नहीं था और आय के साधनों में डिजिटल व्यूअरशिप शामिल नहीं थी।
बिखर जायेगा पूरा टूर्नामेंट
आईसीसी के लिये आय के प्रमुख साधनों में सेंट्रल और मीडिया राइटस सबसे अहम साधन है जिसे वह अब तक 8 साल के हिसाब से चैनल्स को बेचा करता था लेकिन आगामी समय में वह इसे 4-4 साल के साइकिल में बेचने की योजना बना रहा है। ऐसे में आईसीसी को नुकसान होने के चांसेस काफी कम हैं। हालांकि गौर करने वाली बात यह है कि अगर भारतीय टीम पाकिस्तान जाकर चैम्पियन्स ट्रॉफी खेलने से इंकार कर देती है तो प्रसारणकर्ता को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ेगा। इतना ही नहीं टूर्नामेंट की व्यूअरशिप में ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिलेगी।