ये है अंतर
आपने कई बार सुना होगा कि मैच फिक्सिंग था या स्पाॅट फिक्सिंग हुई। लेकिन मैच फिक्सिंग और स्पाॅट फिक्सिंग में जो अंतर है वो काफी बड़ा है। मैच फिक्सिंग में मैच की जीत या हार पहले से ही तय हो चुकी होती है यानी कि पूरी टीम को इस बात की खबर होती है कि मैच हारना है या नहीं। वहीं स्पॉट फिक्सिंग का मामला अलग है। स्पाॅट फिक्सिगं में स्टोरिए किसी एक या दो खिलाड़ी को अपने जाल में फंसाते हैं, यानी कि बाकी खिलाड़ियों को इसकी भनक नहीं होती। स्पाॅट फिक्सिंग में बल्लेबाज को रन नहीं बनाने के लिए भी कहा जाता है तो गेंदबाज को रन लुटाने लिए।
ऐसे होती है मोटी कमाई
भारत में फिक्सिंग करना अवैध है जबक कई देशों में इसको मान्यता प्राप्त है। बाहरी देशों में बड़े स्टोरिए बैठे होते हैं जो टीम के किसी खिलाड़ी के साथ मिलकर स्पाॅट फिक्सिंग को अंजाम पहुंचाते हैं। लोगों का पैसा डुबाने के लिए स्टोरिए पूरा अलग गेम चलते हैं। कमाई करने के लिए स्टोरिए किसी गेंदबाज को मैच में नो बाॅल फेंकने के लिए कहते हैं। वहीं बाजार में लोग सट्टा लगाते हैं कि यह नो बाॅल नहीं जाएगी। सट्टा लगवाने वाले लोग उस समय 1 रुपए का 100,500 के भाव तक कर देते हैं। ऐसे में गेंदबाज जानबूझकर नो बाॅल फेंक देता है और लोग अपना लगाया हुआ पैसा हार बैठते हैं।
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श्रीसंत हैं इसका उदाहरण
इसका एक उदाहरण भारतीय तेज गेंदबाज रहे एस श्रीसंत हैं, जिन्होंने आईपीएल 2013 में ऐसा ही कुछ किया था। वह अपनी कमर में गमछा बांधकर सट्टा लगाने वालों को संकेत देते थे कि वे अगले ओवर में 14 से कम रन देंगे या ज्यादा। जिस पर सट्टा लगाने वाले लोग सट्टा लगाया करते थे। इस मुनाफे में सट्टा लगवाने वालों को जो फायदा होता है, उसका एक बड़ा हिस्सा इन खिलाड़ियों को भी दिया जाता है।