'लड़को यह प्रोफेशनल खेल है, हंसना बंद करो'
वह अपने कॉलम में लिखते हैं कि पुराने समय में एक खिलाड़ी केवल खेल को खेल कर जीविका नहीं कमा सकता था। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पास ना इतना पैसा था कि वह खिलाड़ियों को आज की तरह महंगे महंगे कॉन्ट्रैक्ट दे सकें। हालांकि यह तब बदल गया जब भारत तेजी के साथ डिजिटलाइज और इंट्रोनिक्स में मजबूत होता गया। सिंह कहते हैं कि बीसीसीआई ने ऐसे कई शानदार प्रशासक देखें जिन्होंने इस संस्था को आगे बढ़ाने के लिए बहुत बेहतरीन काम किया और क्रिकेट के खेल में पैसा लाने के लिए बहुत मेहनत की। उन्होंने 1979 का एक किस्सा याद किया है जब भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड के द ओवल मैदान पर चौथा टेस्ट मैच खेल रही थी।
तब लीजेंडरी इंग्लिश क्रिकेटर ज्योफ्री बॉयकॉट बैटिंग कर रहे थे और धीरे-धीरे अपने शतक की ओर बढ़ रहे थे। बायकॉट के इर्द-गिर्द जो भारतीय फील्डर जमा थे वे काफी बोर हो रहे थे ऐसे में उन्होंने तय किया कि हर गेंद के साथ थोड़ा बहुत हंसी मजाक किया जाए। भारतीय खिलाड़ियों ने हर गेंद के साथ हंसना शुरू कर दिया जिससे बॉयकॉट झुंझला गए और उन्होंने भारतीय खिलाड़ियों से कहा, "लड़कों यह एक प्रोफेशनल खेल है ऐसे में किसी नौसिखिए की तरह हंसना बंद करो।"
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यजुरविंद्र सिंह का जवाब-
यजुरविंद्र सिंह आगे कहते हैं, "तब मैंने बॉयकॉट को कहा, 'ज्यॉफ तुम इस खेल को अपनी रोजी रोटी के लिए खेलते हो लेकिन हम तो केवल मौज मस्ती के लिए खेलते हैं।' हालांकि उस समय भी भारतीय खिलाड़ियों ने खुद को प्रोफेशनल के तौर पर सोचना शुरू कर दिया था लेकिन अभी भी उस तरह के एटीट्यूड की कमी थी जिस तरह का एटीट्यूड विदेशी क्रिकेटर और आज के आधुनिक भारतीय क्रिकेटर दिखाते हैं।"
ऐसे में जब भारत ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में हुई श्रंखला जीती और टीम पेन ने भारतीय क्रिकेट टीम की तारीफ की और सब ने देखा कि भारतीय क्रिकेट ने नई ऊंचाइयों को छुआ तो यजुरविंद्र सिंह इस मुकाम पर पहुंचने के लिए भारतीय क्रिकेट की काफी तारीफ करते हैं। आज के समय में क्रिकेट बिजनेस या किसी कॉरपोरेट वेंचर की तरह से पूरी तरह पेशेवर खेल बन चुका है जिसको अपनाने के बाद आप करोड़पति और आसानी से बाद में अरबपति भी बन सकते हैं। यजुरविंद्र सिंह कहते हैं, "वह दिन अब जा चुके जब भारतीय क्रिकेटरों को मानसिक तौर पर कमजोर समझा जाता था आज की क्रिकेट में हर एक भारतीय खिलाड़ी हार्डकोर प्रोफेशनल है जिसका एक ही मकसद है और वह है किसी भी कीमत पर जीतना।"
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बदलता गया भारतीय क्रिकेट-
यजुरविंद्र सिंह बताते हैं पुराने समय में एक स्टेट अपने उसी खिलाड़ी को खेलने देता था जो उसी राज्य में पैदा हुआ। 1960 के दशक में भी भारत के पास विजय हजारे, वीनू मांकड, चंदू बोर्डे, सलीम दुर्रानी, विजय मांजरेकर और ऐसे कई खिलाड़ी थे जिनको विशुद्ध प्रोफेशनल समझा जा सकता है। तब स्टेट एसोसिएशन काफी सख्त हुआ करती थी। वह लोकल टैलेंट ढूंढा करती थी जिनसे खिलाड़ियों की एक टीम बनाई जा सके जिस तरह से आज फ्रेंचाइजी करती है। तब भारत के क्रिकेट को निखारने के लिए विदेशी खिलाड़ियों को भी बुलाया जाता था वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाज चार्ली स्टेयर्स रणजी ट्रॉफी खेलने के लिए आए थे। वह मुंबई के लिए खेलें और उन्होंने 1962- 63 में इस टीम को खिताब जिताने में अहम भूमिका निभाई।
खिलाड़ी एक भारतीय क्रिकेटर होने को प्रोफेशनल नहीं मानते थे क्योंकि जब प्रोफेशनल क्रिकेट की बात आती थी तो वह इंग्लैंड में काउंटी का रुख कर लेते थे। ऐसे में जब यह काउंटी खेला करते थे तो एक क्लब के साथ उनकी प्रतिबद्धता इतनी ज्यादा हो जाती थी कि अगर भारत को किसी दौरे के लिए अपनी कोई टीम भेजनी है तो वह उस क्लब में खेल रहे क्रिकेटर को टीम में नहीं लेते थे। स्टेट एसोसिएशन उन्हीं खिलाड़ियों को लेती थी जो वही पैदा हुए थे तो इससे धीरे-धीरे बड़े-बड़े शहरों में ही क्रिकेट का जमावड़ा होता गया। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई ,बेंगलूर और हैदराबाद जैसे शहर काफी लोकप्रिय क्रिकेट गंतव्य बन गए जिन्होंने भारतीय क्रिकेट को कंट्रोल भी किया। यजुरविंद्र सिंह के कहते हैं आज के समय में क्रिकेट पूरी तरह से बदल चुका है। हालांकि वे मानते हैं जो भारतीय खिलाड़ी बीसीसीआई से अनुबंधित नहीं है उनको दुनिया भर में कहीं पर भी खेलने की आजादी होनी चाहिए क्योंकि आज के समय में दुनिया के किसी भी प्रोफेशनल को कहीं पर भी काम करने की आजादी है। अब यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय डोमेस्टिक क्रिकेटर दुनिया में कहीं और क्रिकेट नहीं खेल सकते।