चार दिन का टेस्ट घातक-
अगर चार दिन का टेस्ट होता है तो इस गेम का सबसे प्रभावशाली पक्ष तो वही खत्म हो जाएगा जिसके तहत दो टीमें बिना किसी ओवर और समय की परवाह किए केवल मैच जीतने और बचाने के लिए आपस में लड़ाई लड़ती हैं। पांच दिन एक टेस्ट मैच के दौरान किसी टीम को अपनी पूरी रणनीति, सेशन दर सेशन प्लानिंग बनाने की छूट तो देती ही है, वहीं बल्लेबाजों और गेंदबाजों के पास समय की परवाह किए बिना पूरी तरह से अपना कौशल दिखाने का भरपूर समय मिलता है। अगर टेस्ट चार दिन का होता है तो इसमें समय सीमा टीमों की रणनीतियों का अहम हिस्सा बन जाएगी और कमजोर टीमें कई बार केवल समय गुजारकर खेलने की रणनीति के तहत मैच को ड्रा कराने की जुगत भी भिड़ाएंगी।
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छोटी-बड़ी टीमों के बीच अंतर कम हो जाएगा
फार्मेट जितना लंबा होता है उतना ही बड़ा फर्क दो टीमों के बीच हो जाता है। भारत और अफगानिस्तान के बीच टी-20 गेम में कोई टीम अपना दिन होने पर मैच हार भी सकती है जीत भी सकती है। भले ही अफगानिस्तान के पास चांस कम होगा लेकिन फिर भी वह टी-20 में अपना दिन होने की उम्मीद कर सकती है लेकिन 5 दिन के टेस्ट में कोई चमत्कार और तुक्के की गुंजाईश खत्म हो जाती है और टीम पूरी तरह से अपने कौशल से जीतती है। यही वजह है कि टेस्ट में टीमों की असली परीक्षा होती है। अगर चार दिन का टेस्ट होता है तो दो बड़ी टीमों के बीच का फर्क समाप्त होगा। जिससे फायदा छोटी टीमों को ज्यादा होगा। क्रिकेट में पूर्ण कौशल के लिए समय की मियाद से बाहर निकलना कई बार जरूरी होता है।
भारतीय उपमहाद्वीप में 100 ओवर फेंकना मुश्किल
कहा जा रहा है दिन में 100 ओवर कराके टेस्ट को चार दिन तक खींचना भी 5 दिन जैसा काम करेगा। अभी टेस्ट में एक दिन में 90 ओवर फेंके जाते हैं। लेकिन यह तर्क भी खरा नहीं है क्योंकि हाल में ही खेले गए सेंचुरियन टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड को साढ़े छह घंटे में 80 से ज्यादा ओवर फेंकने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा था। दूसरी बात यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में सर्दियों के मौसम में टेस्ट होते हैं जहां पर दिन छोटे होते हैं। ऐसे में यहां पर चार दिन का टेस्ट तो हो जाएगा लेकिन दिन के 100 ओवर पूरे नहीं होंगे। यहां ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड जैसे देशों को फायदा हो सकता है जिनका मौसम एक दिन में 100 ओवर कराने की इजाजत दे सकता है लेकिन यह कम व्यवहारिक नजर आता है।
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मैच बचाने की मानसिकता से खेलेगी पिछड़ने वाली टीम
चार दिन के टेस्ट का मतलब है कि सीरीज में कमतर प्रदर्शन कर रही टीमें खेल भावना के तहत कम और मैच बचाने की भावना के तहत ज्यादा खेलेंगी। मान लीजिए अगली एशेज में इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया की धरती पर अपने आप को संभाल नहीं पा रहा है तो उसके पास मैच बचाने के लिए कई तरीके होंगे। मसलन वे एक मैच में 8 विशेषज्ञ बल्लेबाजों को फिट करके 2 स्पिनरों के साथ टीम में उतर सकते हैं। ये स्पिनर बल्लेबाजों के पैरों पर गेंदबाजी करके समय सीमा से बंधे चार दिन के टेस्ट में आसानी से कीमती समय जाया कर सकते हैं और टेस्ट का अंत नीरस ड्रा के रूप में हो सकता है।
टेस्ट की मूल आत्मा ही बदल जाएगी
जब भारत ने 1954-55 में पाकिस्तान का दौरा किया था तो चार दिन के पांच टेस्ट मैचों में से कोई भी नतीजे देने वाला साबित नहीं हुआ था। सभी मुकाबले ड्रा हुए थे। दूसरी बात यह है कि 100 ओवरों के चार दिन का मतलब होगा प्रत्येक टीम के लिए एक पारी में खेलने के लिए 100 ओवर होंगे। यानी टीमों की रणनीतियां अब एक दिन के 100 खेलने पर बनेंगी। ये ठीक ऐसी स्थिति है जैसी 50 ओवर और 20 ओवर के क्रिकेट में होती है। इसका मतलब यह होगा कि टेस्ट क्रिकेट की मूल आत्मा पर विचार करना ही धीरे-धीरे बंद हो जाएगा जिससे बाद में टेस्ट क्रिकेट का स्वरूप ही पूर्ण रूप से बदलने का खतरा है। इससे टेस्ट प्रेमी फैंस इस फार्मेट से दूर होते जाएंगे।
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स्टीव स्मिथ जैसे बल्लेबाज कम मिलेंगे-
सीमित ओवर होने से टीमों को जहां अपनी कमियां ढकने का मौका मिलेगा तो वहीं बल्लेबाजों के पास भी अपना जौहर दिखाने के बजाए केवल समय गुजारने के लिए खेलने की प्रवृत्ति ज्यादा बढ़ेगी। पिछली एशेज में स्टीव स्मिथ ने बल्लेबाजी का चरम कौशल प्रदर्शित किया था। उन्होंने अपना समय लिया और फिर तमाम अंग्रेज गेंदबाजी पर पूरी सीरीज में हावी रहे। सीमित दिनों के टेस्ट में बल्लेबाजों के पास ऐसे शिखर तक पहुंचने के मौके बेहद कम आएंगे क्योंकि खेलने के लिए मानसिकता बदल चुकी होगी। स्मिथ जैसे आज के दौर के महान टेस्ट बल्लेबाजों के लिए समय की कटौती करना क्रिकेट के विशुद्ध नजरिए से बहुत बड़ा नुकसान है।