अथर्व अंकोलेकर (Atharv Ankolekar)
अंडर-19 के क्वार्टर फाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ निचले क्रम में आकर भारत के लिये अहम समय पर 50 रनों की पारी खेलने वाले अथर्व अंकोलेकर ने महज 9 साल की उम्र में ही अपने पिता को खो दिया था। पिता के गुजरने के बाद अथर्व की मां वैदेही ने घर की जिम्मेदारी संभाली और घर में बच्चों को ट्यूशन देना शुरु किया। बाद में मुंबई के राज्य परिवहन निगम में बेस्ट बसों में उन्हें कंडक्टर की नौकरी मिल गई और उसके जरिये वह अपने पति के सपने (अथर्व को क्रिकेटर बनाने का सपना) को पूरा करने में जुट गई।
हरफनमौला खिलाड़ी अथर्व अंकोलेकर पहली बार नजर में तब आये थे जब उन्होंने श्रीलंका में पिछले साल एशिया कप के फाइनल मुकाबले में बांग्लादेश के खिलाफ पांच विकेट चटकाये थे।
अक्सर अथर्व के मैच के दिन वैदेही की ड्यूटी होती है लेकिन अब अंडर 19 विश्व कप फाइनल रविवार को है तो वह पूरा मैच देखेंगी।
नाइट शिफ्ट में काम करके बेटे को बनाया क्रिकेटर
अथर्व अंकोलेकर की मां वैदेही ने बताया कि उसे क्रिकेटर बनाने का सपना उसके पिता का था जिसे मैंने पूरी करने की कोशिश की।
वैदेही ने कहा, ‘अथर्व के पापा का सपना था कि वह क्रिकेटर बने और उनके जाने के बाद मैने उसे पूरा किया। वह हमेशा नाइट शिफ्ट करते थे ताकि दिन में उसे प्रेक्टिस करा सके लेकिन उसकी कामयाबी देखने के लिए वह नहीं है।'
अपने संघर्ष के दौर को याद करते हुए उन्होंने बताया, ‘वह काफी कठिन दौर था। मैं उसे मैदान पर ले जाती लेकिन दूसरे बच्चे अभ्यास के बाद जूस पीते या अच्छी चीजें खाते लेकिन मैं उसे कभी ये नहीं दे पाई। लेकिन अथर्व के दोस्तों के माता पिता और उसके कोचों ने काफी मदद की।'
उन्होंने कहा, ‘अब हमारे हालात पहले से बेहतर है लेकिन अपने बुरे दौर को हममें से कोई नहीं भूला है। आज भी खुशी के मौके पर उसे छप्पन पकवान नहीं बल्कि वही खाना चाहिए जिसे खाकर वह बड़ा हुआ है।'
प्रियम गर्ग (Priyam garg)
अंडर-19 विश्व कप में भारतीय टीम की कप्तानी करने वाले प्रियम गर्ग के पिता एक स्कूल में बच्चों को लाने ले जाने वाली वैन को चलाते हैं। अथर्व की तरह प्रियम गर्ग को भी अपने माता-पिता का साथ में प्यार नसीब नहीं हुआ। बचपन में ही प्रियम की मां गुजर गई जिसके बाद अपने 3 बहनों और 2 भाईयों के परिवार को उनके पिता नरेश गर्ग ने संभाला। इस दौरान उन्होंने हर तरह के छोटे से बड़े काम किये जैसे दूध बेचना, अखबार फेंकना और स्कूल के लिये वैन चलाना। हालांकि उन्होंने प्रियम के सपने को पूरा होने में कोई रुकावट नहीं आने दी।
मेरठ के पास किला परीक्षित गढ़ के रहने वाले प्रियम गर्ग ने भी पिता की मेहनत को बेकार जाने नहीं दिया और पूरी मेहनत और लगन से उनके सपने को पूरा किया और आज टीम के लिये विश्व कप का खिताब जीतने की दहलीज पर हैं।
दोस्तों से उधार लेकर बेटे को सिखाया क्रिकेट
प्रियम गर्ग के कोच संजय रस्तोगी ने बताया कि उनके पिता संजय गर्ग ने दोस्तों से उधार लेकर बेटे की क्रिकेट किट और कोचिंग का इंतजाम किया था और उनकी मेहनत ने उसका फल भी दिया। यह उनका त्याग और मेहनत ही थी जब 2018 में प्रियम रणजी टीम के लिये चुने गये।
कोच ने कहा, ‘प्रियम ने अपने पापा का संघर्ष देखा है जो इतनी दूर से उसे लेकर आते थे। यही वजह है कि वह शौकिया नहीं बल्कि पूरी ईमानदारी से कुछ बनने के लिए खेलता है। यह भविष्य में बड़ा खिलाड़ी बनेगा क्योंकि इसमें वह संजीदगी है।'
यशस्वी जायसवाल (Yashasvi Jaiswal)
भारत की अंडर-19 टीम के सलामी बल्लेबाज यशस्वी जायसवाल ने अपनी मेहनत से सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल में शतक जमाने वाले यशस्वी जायसवाल की गोलगप्पे बेचने की कहानी तो अब क्रिकेट की प्रेरणा दायी कहानियों में शुमार हो चुकी है। उत्तर प्रदेश के भदोही जिला के रहने वाले यशस्वी जायसवाल का क्रिकेट का प्रति इतना जुनून था कि वह घर छोड़कर मुंबई आ गये।
मुंबई पहुंचे यशस्वी के पास न रहने की जगह थी और न ही खाने के पैसे, बावजूद इसके खेल के प्रति उसका जुनून कम नहीं हुआ और रात में गोलगप्पे बेचकर दिन में क्रिकेट खेलने वाला यह खिलाड़ी आज के समय में जहां चाह वहा राह की जीती जागती मिसाल बन गया है।
विराट कोहली से बेहतर गति से रन बना रहे हैं यशस्वी
क्रिकेट में नाम कमाने मुंबई आए यशस्वी की पहचान अब ‘गोलगप्पा बॉय' के नाम से होने लगी है। जब वह सड़कों पर गोल गप्पे बेचकर दिन में क्रिकेट खेला करते थे तो उस वक्त उनके कोच ज्वाला सिंह ने मौका दिया और यहीं से शुरु हुई उनकी कामयाबी की कहानी।
यशस्वी ने अब तक अंडर-19 विश्व कप में खेले गए पांच मैच में उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ नाबाद 105 रन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 62, न्यू जीलैंड के खिलाफ नाबाद 57, जापान के ख़िलाफ़ नाबाद 29 और श्रीलंका के खिलाफ 59 रन बनाए।
इतना ही नहीं अंडर-19 में कप्तान विराट कोहली और यशस्वी के करियर की तुलना की जाये (कम से कम 25 मैच) तो यशस्वी उनसे बहुत आगे नजर आते हैं। यशस्वी ने इस दौरान 62.40 की औसत से रन बनाये हैं जबकि विराट कोहली ने 42 की औसत से रन बनाये थे।