क्या हुआ था 50वें ओवर में ?
इंग्लैंड को जीत के लिए अंतिम ओवर में 15 रन चाहिए थे। पहली दो गेंदों पर कोई रन नहीं बना। तीसरी गेंद को स्टोक्स ने छक्का मार दिया। चौथी गेंद को स्टोक्स ने डीप मिडविकेट क्षेत्र में खेला। मार्टिन गुप्टिल ने फुर्ती से गेंद उठा कर विकेटकीपर की तरफ थ्रो किया। स्टोक्स स्ट्राइक अपने पास रखना चाहते थे इस लिए उन्होंने आदिल रशीद को दूसरे रन के लिए कॉल किया। दूसरा रन पूरा करने के लिए स्टोक्स ने लंबी डाइव लगायी। इस क्रम में गुप्टिल द्वारा फेंकी गयी गेंद विकेटकीपर के पास जाने से पहले स्टोक्स के बल्ले से लग कर थर्डमैन बाउंड्री के पार चली गयी। अम्पायर धर्मसेना ने साथी अम्पायर से बात की और इंग्लैंड के खाते में छह रन दर्ज करने का संकेत दे दिया। मार्टिन गुप्टिल और कप्तान केन विलिमसन इस फैसले से हैरान रह गये। वे विस्मय के साथ अम्पायर की तरफ देखने लगे। पांचवीं गेंद पर स्टोक्स दो रन के लिए दौड़े लेकिन आदिल रशीद रन आउट हो गये। अब आखिरी गेंद पर इंग्लैंड को जीत के लिए दो रन चाहिए थे। अंतिम गेंद पर स्टोक्स एक रन ही बना सके और मार्क वुड रनआउट हो गये। इस तरह इंग्लैंड की टीम 241 पर ऑलआउट हो गयी और मैच टाई हो गया। अगर चौथी गेंद पर पांच रन ही मिलते तो इंग्लैंड का स्कोर 240 रन जाता और वह 1 रन से फाइनल हार जाता।
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6 की बजाय 5 रन क्यों मिलना चाहिए था ?
क्रिकेट के रुल बुक की धारा 19.8 ओवरथ्रो और फील्डर की इरादन गतिविधि से जुड़ी है। इस नियम में कहा गया है कि अगर ओवर थ्रो से गेंद सीमारेखा से बहर चली जाए तो दूसरा रन तभी मान्य होगा जब फील्डर के थ्रो से पहले ही बल्लेबाज दूसरे रन के लिए एक दूसरे को क्रॉस कर लें। वीडियो फुटेज देखने के बाद ये साफ हो जाता है कि जब मार्टिन गुप्टिल ने थ्रो किया था उस समय बेन स्टोक्स और आदिल रशीद ने दूसरे रन के लिए एक दूसरे को क्रॉस नहीं किया था। इसलिए बेन स्टोक्स को दो नहीं, एक रन मिलना चाहिए था। नियम यह भी कहता है कि अगर ओवरथ्रो में बल्लेबाज इरादन गेंद को टच करने की कोशिश करता है तो रन की पेनाल्टी उस पर भी लग सकती है। इस लिए देखा गया था कि स्टोक्स बार बार बाहें फैला कर अपने को निर्दोष बताने की कोशिश कर रहे थे। ओवर थ्रो से इंग्लैंड को जो चार रन मिले वो किसी फील्डर की गलती से नहीं, बल्कि स्टोक्स की गलती से। अम्पायरों ने यह मान लिया कि स्टोक्स ने जानबूझ कर गेंद को टच नहीं किया था। इस पूरे मामले में शायद न्यूजीलैंड के साथ न्याय नहीं हुआ।
रूल बुक में 'थ्रो' और 'एक्ट' परिभाषित नहीं
इस मामले में क्रिकेट विशेषज्ञों का कहना है कि नियमों की किताब में फील्डर के 'थ्रो' और 'थ्रो एक्ट' को पूरी तरह परिभाषित नहीं किया गया है। अगर दूसरे रन की प्रकिया फील्डर के थ्रो एक्ट पर तय होगी तो इसका समय बदल जाएगा। एक फील्डर जब गेंद को बहुत तेजी से एक ही एक्शन में थ्रो करता है तो बहुत देर तक उसको हवा में ये मैदान में मोमेंटम मिलती रहती है। अपनी गति को समायोजित करने के लिए वह दूर तक दौड़ते रहता है। जब तक वह दौड़ता है तब तक उसके समय को 'थ्रो एक्ट' मान लिया जाता है। अब अम्पायर की मर्जी पर है कि वह फैसला थ्रो के टाइम पर देता है या फिर थ्रो एक्ट के टाइम पर। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में संदेह का लाभ न्यूजीलैंड को मिलना चाहिए था क्यों कि ओवर थ्रो के लिए वह जिम्मेवार नहीं था।
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