किसकी टीम है टीम इंडिया?
90 के दशक में अक्सर ऐसा कहा जाता था कि भारतीय गेंदबाजी में इतना पैनापन नहीं है जिसके दम पर विदेशी दौरों पर टेस्ट सीरीज में जीत दर्ज की जा सके। उस दौर में टीम इंडिया की अपनी कमियां थी और मौजूदा दौर में भी भारतीय टीम नंबर-1 के पायदान पर काबिज होने के बावजूद कई ऐसी ही कमियों से जूझ रही है। सवाल यह भी पैदा होता है कि क्या BCCI की टीम इंडिया को सिर्फ विराट कोहली और रवि शास्त्री मिलकर चला रहे हैं या वाकई टीम जीत के लक्ष्य और खासकर विदेशी दौरों पर जीत के लिए चुनी जाती है। चयनकर्ता इस बात का हवाला देते हैं कि रणजी में रन बनाने वाले खिलाड़ी को टीम में जगह मिलेगी तो एक सीजन में सबसे अधिक रन बनाने वाले मयंक अग्रवाल को आखिर ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर टीम में जगह क्यों नहीं और अगर जगह मिली भी तो तब क्यों जब पृथ्वी शॉ चोटिल होने के बाद टीम से बाहर हो गए। पिछले दो सालों टीम इंडिया ने एक नहीं ऐसी कई गलतियां की हैं जिसकी वजह से सीरीज में टुकड़ों में बेहतर प्रद्रर्शन करने के बावजूद नतीजा वैसा नहीं मिला जैसी अपेक्षा थी। उन सभी गलतियों को आंकड़ों के माध्यम से जानिए और तय करिए यह टीम इंडिया विराट-शास्त्री की टीम इंडिया है या किसी भी विदेशी दौरे पर जाने वाली वो बेस्ट जो किसी भी टीम को हराने का माद्दा रखती है।
ओपनिंग जोड़ी बनी सबसे बड़ा 'सिरदर्द'
भारतीय बल्लेबाजी दशकों से बेहतर मानी जाती रही है और हाल में भी ODI में स्थिति कुछ ऐसी ही है। ODI में टीम इंडिया के टॉप-3 ने पिछले एक साल में किसी भी टीम के मुकाबले सबसे अधिक रन बनाए हैं लेकिन जब बात टेस्ट की होती है तो विराट की टीम इंडिया के सीरीज न जीत पाने पर सवाल उठने लगे हैं।किसी भी टीम की जीत में ओपनिंग जोड़ी की सबसे बड़ी भूमिका रहती है लेकिन मौजूदा दौर में टीम इंडिया के लिए टेस्ट क्रिकेट में उनकी ओपनिंग जोड़ी सबसे बड़ा सिरदर्द बनकर सामने उभरी है। विदेशी दौरों पर पिछले तीन सालों में खेले गए टेस्ट मैचों में सिर्फ दो ऐसे मौके आए जब भारतीय ओपनिंग जोड़ी ने पहले विकेट के लिए 10 या उससे अधिक ओवर एक साथ खेले हों और अर्धशतकीय साझेदारी की हो। इंग्लैंड दौरे पर एजबेस्टन टेस्ट (अगस्त) में मुरली विजय-शिखर धवन के बीच 13.4 ओवर में 50 रनों की साझेदारी हुई थी वहीं ऑस्ट्रेलियाई दौर पर एडिलेड टेस्ट की दूसरी पारी में मुरली विजय-लोकेश राहुल के बीच 18.2 ओवर में 63 रनों की साझेदारी हुई। यह लगभग दो साल बाद भारतीय ओपनर्स के बीच किसी भी विदेशी दौरे पर सबसे बड़ी दो साझेदारी है। घर के शेर कहे जाने वाले बल्लेबाज स्विंग और सिम होती गेंदों पर घुटने टेक देते हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्रिकेट के सबसे बेस्ट प्रारूप में क्या राजनीति की तरह विकल्प नहीं हैं या रणजी में शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद किसी भी खिलाड़ी को इतना प्रतिभाशाली नहीं माना जाता है कि उन्हें मिचेल स्टार्कम, जेम्स एंडरसन और स्टुअर्ट ब्रॉड सरीखे गेंदबाजों के सामने चुनौती देने के लिए न आजमाया जाए। टीम इंडिया घूम फिरकर विजय, लोकेश और धवन के इर्द-गिर्द घूमती दिखती है और नतीजे ढाक के तीन पात होते हैं। टीम इंडिया की ओपनिंग जोड़ी विदेशी दौरों पर मिल रही करारी हार का सबसे बड़ा कारण बनकर उभरी है।
कौन हैं टीम इंडिया में पृथ्वी शॉ की जगह शामिल हुए मयंक अग्रवाल
चयन की 4 बड़ी गलतियां
दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर रोहित शर्मा को टीम में जगह दी गई, पाटा विकेट पर भले उनके नाम दुनिया के सारे रिकॉर्ड हों लेकिन जैसे ही टेस्ट की बात आती है वो पिच पर 'तारे जमीन पर' के उस बाल कलाकार की तरह नजर आते हैं जिसके आगे गेंद 'शब्द' की तरह नाचने लगते हैं। दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर उनका क्या हश्र हुआ ये सभी जानते हैं। वो टीम से बाहर हुए, ODI में लगातार दो तीन शतक जड़ दिए। शास्त्री ने उन्हें ऑस्ट्रेलियाई दौरे में फिर से शामिल किया और बैक फुट का बेस्ट खिलाड़ी बताया, एडिलेड टेस्ट में उन्हें तेज गेंदबाजों से बचाकर नंबर-6 का खिलाड़ी बताया गया लेकिन हश्र फिर भी वही हुआ। क्या वो वाकई इतने प्रतिभाशाली हैं कि टेस्ट टीम में जगह बनाएं। आप सोचिए ! टीम इंडिया ने दक्षिण अफ्रीका, इग्लैंड और अब ऑस्ट्रेलिया के कई मैचों में ऐसे चयन की एक नहीं कई बड़ी गलतियां की हैं जिसके बाद मैच में करीबी हार मिली। दक्षिण अफ्रीका में रहाणे को टीम के लिए पहले 2 टेस्ट में उपयुक्त नहीं माना गया। कभी पुजारा को टीम में शामिल नहीं किया गया। इंग्लैंड दौरे में फॉर्म में होने के बावजूद जडेजा को जगह नहीं मिली। पर्थ टेस्ट में 135 से अधिक रफ़्तार से गेंद नहीं फेंक पाने वाले उमेश यादव को जगह मिली लेकिन किसी स्पिनर को नहीं, इस पिच पर क्या जडेजा को शामिल नहीं किया जाना चाहिए था। उमेश अपनी लाइन और लेंथ खोजने में ही मैच गंवा बैठे। विराट अब धोनी के नक्शे कदम पर हैं, उनके चहेते लोकेश राहुल पिछली 19 पारियों से विफल हैं,आखिर इन्हें अब कितने मौके देंगे आप ? मुरली विजय अगर भारत के विंडीज दौरे के लिए फॉर्म में नहीं थे तो ऑस्ट्रेलिया की तेज पिचों के लिए कब फॉर्म में लौट गए। क्या 'फेवरेट खिलाड़ियों' के साथ खेलने से भारतीय टीम बेस्ट बनेगी या वाकई विराट को अपने पावर को ताख पर रखकर बेस्ट टीम चुननी चाहिए जो सिर्फ मैच नहीं सीरीज जीत सके। धोनी की तरह विराट भी हार के बाद मैच से पॉजिटिव लेकर आगे निकल जाते हैं और कुछ रेडीमेड बहाने पर क्रिकेट एक्सपर्ट को डिस्कस करने के लिए छोड़ देते हैं।
रहाणे का बेतुका शॉर्ट सेलेक्शन
अजिंक्य रहाणे जब भारतीय टीम में शामिल हुए थे तब उन्हें भारतीय टीम के मिडिल ऑर्डर के रीढ़ के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा था लेकिन पिछले दो सालों में उन्होंने अपने विकेट फेंककर चले आने की ऐसी लत पकड़ ली है जिसकी वजह से पहले वो धोनी की 'थिंक टैंक से ODI से बाहर हुए और अब विराट की स्कीम ऑफ थॉट में सिर्फ टेस्ट बल्लेबाज हैं। वो पिछले दो सालों में कोई भी बड़ा स्कोर करने में नाकमयाब रहे हैं। क्रिकेट प्रशंसक रहाणे में द्रविड़ का अश्क देखते हैं वो द्रविड़ की तरह शांत और शर्मीले भी हैं, उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। खराब दौड़ से गुजर रहे रहाणे ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर जाने से पहले राहुल द्रविड़ से भी मिले लेकिन उनसे भी कई बड़े मैचों में बड़ी चूक हो रही है। द्रविड़ के "Best wishes" लिखे हुए बल्ले से उन्होंने उतने रन नहीं बनाए जो टीम इंडिया को एक बड़ी जीत दिला सके और वो टीम में अपनी उपकप्तान की भूमिका को वैसे निभा सकें जिसे आदर्श माना जाए। एडिलेड टेस्ट में उन्होंने पहली पारी में 13 और दूसरी पारी में 70 रनों की पारी खेली। दूसरी पारी के लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए कम है लेकिन पर्थ टेस्ट में दो शानदार पारी खेलने के बाद उसे बड़े स्कोर में तब्दील करने में नाकाम रहे। एडिलेड टेस्ट में तो उन्होंने रिवर्स स्वीप मारकर अपना विकेट गंवाया जो उनके मिजाज और अंदाज से बिल्कुल परे है वहीं पर्थ टेस्ट की पहली पारी में 105 गेंदों में 51 रन बनाकर नाथन लियोन की गेंद पर आउट हुए तो दूसरी पारी में चौथे दिन की विकेट पर 47 गेंद खेलने के बाद 30 रन बनाकर अपने करियर में सबसे अटपटे शॉर्ट खेलकर आउट हुए। आत्मविश्वास से जूझ रहे रहाणे क्रिकेट की "Attack is the best Defence" मोड में भले खेलकर कुछ रन जुटा ले रहे हैं। विपरीत परिस्थितियों में खेली गई उनकी यह पारी काबिल के तारीफ है लेकिन अगर इन पारियों से वो जीत के करीब या जीत में बदल पाते तो वो कहीं और भी प्रशंसा के हकदार होते।
रहाणे का फॉर्म
लॉर्ड्स टेस्ट में साल 2014 में जब अजिंक्य रहाणे ने दूसरे टेस्ट में बल्लेबाजी के लिए कदम रखा था तब भारत 86/3 था, इस बल्लेबाज ने अपने जीवन की सबसे शानदार पारी खेली और इन्होंने दुनिया की बेस्ट गेंदबाजी आक्रमण के सामने 103 रनों की धुंआधार पारी खेली और तब ऐसा लगने लगा था कि टेस्ट में टीम इंडिया का मिडिल आर्डर सुरक्षित हाथों में है। इस दौरे से पहले भी दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड में भी वो अपने जीवन के प्राइम फॉर्म में थे जब उन्होंने 69.66 और 54.00 की औसत से रन बनाए थे। लेकिन 2016 के बाद रहाणे ने छोटी-छोटी कई महत्वपूर्ण पारियां खेली हैं लेकिन उसे एक बड़ी पारी में कंवर्ट करने में नाकाम दिखे हैं। विदेशी जमीन और विपरीत परिस्थितियों में शानदार क्रिकेट खेलने वाले इस खिलाड़ी को अपना खोया लय वापस हासिल करना होगा।
अड़ियल विराट की बड़ी कमजोरी
टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली को उनके अड़ियल रवैए के लिए नसीरुद्दीन शाह से लेकर माइकल हसी तक ने उनके व्यवहार पर सवाल उठा दिया लेकिन इस खिलाड़ी के व्यवहार से अधिक जिस चीज पर सवाल उठना चाहिए वो है इनकी कमजोरी। टीम इंडिया की उपलब्धियों में विराट की असफलता की चर्चा बहुत कम होती है। दुनिया के किसी भी गेंदबाज के छक्के छुड़ाने वाला यह खिलाड़ी स्पिन गेंदबाजी को खेलने में असमर्थ दिखता है। दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर केशव महराज, इंग्लैंड दौरे पर आदिल रशीद और ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर नाथन लियोन ने उन्हें काफी परेशान किया है। इंग्लैंड दौरे पर तो रशीद ने उन्हें 3 बार आउट किया। 7 साल बाद क्रिकेट में कोहली स्टंप आउट हुए थे वहीं लियोन ने टेस्ट क्रिकेट में सबसे अधिक 7 बार उन्हें आउट किया है। एडिलेड टेस्ट और पर्थ टेस्ट की दूसरी पारी में वो लियोन की नाचती गेंद पर बेबस दिखे वहीं पैट कमिंस के खिलाफ उन्होंने सबसे अधिक 37 फीसदी गलत शॉर्ट खेले और दोनों टेस्ट की पहली पारी में बाहर जाती गेंदों को छेड़ते हुए आउट हुए। क्या विराट शतक लगाने के बावजूद अपनी कमजोरी को दूर कर पाए हैं। उनके आउट होने के तरीके को अगर आप याद करेंगे तो आपको लगेगा इनकी कमजोरी अब भी दुनिया के सामने है।
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कौन है BCCI का बॉस
महान गेंदबाज बिशन सिंह बेदी ने सही कहा था "एक शख्स है वो वही कर रहा है जो वह चाहता है" क्या उनकी कही यह बात सच नहीं है। विराट के अख्खड़ रवैए के बाद सवाल यह उठता है कि आखिर BCCI का बॉस है कौन, खुद विराट, शास्त्री या ये दोनों खुद को क्रिकेट और अपनी टीम से भी ऊपर मानते हैं। क्या COA को इतनी पावर है कि वो विराट-शास्त्री की मनमानी पर लगाम लगा सके। जो टीम विराट के पास अभी है वह किसी भी बेहतर कप्तान को मिले तो परिणाम ऐसे ही आएंगे। टीम सिर्फ कप्तान से बेस्ट नहीं बनती है उसे बेस्ट बनाना होता है। अकेले न तो विराट के शतक से मैच जीता जा सकता है और न ही किसी एक खिलाड़ी के प्रदर्शन से, यह विराट को जितनी जल्दी समझ आ जाए उतना बेहतर होगा। विराट की उपलब्धियों के बाद उनसे सवाल पूछने में लोग डरते हैं कि आखिर उनका जवाब क्या होगा लेकिन क्रिकेट पंडितों की राय में जानिए इन दो लोगों की 'मनमानी' से टीम को किस टेस्ट में और कब-कब नुकसान हुआ और हार झेलनी पड़ी।