कॉन्ट्रैक्टर के इंटरनेशनल करियर को खत्म करने वाला वो भयावह दौरा-
ये तब की बात है जब मार्च 1962 में टीम इंडिया वेस्टइंडीज के खिलाफ दो टेस्ट मैच हारने के बाद एक चार दिनी मैच खेलने के लिए बारबाडोस में गई थी। 27 साल के कॉन्ट्रैक्टर उस समय टीम के कप्तान थे लेकिन अब तक सीरीज में उनका बल्ला नहीं चला था। वे बारबाडोस में होने वाला मैच भी नहीं खेलने वाले थे लेकिन भारतीय कैंप में पहले से ही कुछ खिलाड़ी फिटनेस से जूझ रहे थे इसलिए नारी खेले। बारबाडोस ने पहली पारी में 394 रनों का स्कोर खड़ा किया। इस मैच में कॉन्ट्रैक्टर और दिलीप सरदेसाई ने ओपनिंग की शुरुआत की थी। कॉन्ट्रैक्टर तब अपनी लोकप्रियता के चरम पर थे। उन्होंने पिछले साल इंग्लैंड पर भारत की पहली सीरीज जीत के लिए भी नेतृत्व किया था और तेज गेंदबाजी के खिलाफ उनकी तकनीक आला दर्जे की थी। इतना ही नहीं, वह लाला अमरनाथ के सबसे अधिक टेस्ट मैचों (15) में कप्तानी करने के रिकॉर्ड की बराबरी करने की दहलीज पर भी खड़े थे। उन्हें एक ऐसे कप्तान के रूप में देखा जाता था जो आने वाले कई सालों में भारत की कप्तानी करने वाले थे।
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वह गेंद जिसने कॉन्ट्रैक्टर को भगवान के पास लगभग पहुंचा दिया था-
लेकिन ये सब उम्मीदें केवल एक मैच ने ढेर कर डाली और यह बारबाडोस के खिलाफ यही चार दिन वाला साइड मैच था। कॉन्ट्रैक्टर जब बैटिंग कर रहे थे उस समय चार्ली ग्रिफिथ नाम का एक 23 वर्षीय कैरेबियाई गेंदबाज विपक्षी टीम में खेल रहा है। यह तेज गेंदबाज उन दिनों अपनी संदिग्ध गेंदबाजी एक्शन के चलते विवादों में था। चार्ली ने अपने जोड़ीदार वेस्ले हॉल के साथ गेंदबाजी अटैक की शुरुआत की। कॉन्ट्रैक्टर ने उस समय के कई प्रतिष्ठित तेज गेंदबाजों को खेला था लेकिन इस बार उनको नहीं पता लगा कि उनके सामने कौन आ रहा हैं। बता दें कि कि सीरीज शुरु होने से पहले ही भारतीय बल्लेबाजों को इस बारे में चेतावनी दे दी गई थी। ग्रिफिथ की जिस घातक गेंद का कॉन्ट्रैक्टर ने सामना किया, उसको पढ़ने में वे पूरी तरह से चूक गए। डिक्की रत्नागुर जो इस गेंद के चश्मदीद गवाह थे, ने बाद में कहा- इस गेंद ने कॉन्ट्रैक्टर की मुलाकात फरिश्तों से करा दी थी। क्रिकेट की बाइबिल कही जाने वाली विजडन ने भी इस गेंद के बारे में बात करते हुए बताया है- "वह (कॉन्ट्रैक्टर) गेंद की ऊंचाई को नहीं भांप सके और इससे बचने के लिए उन्होंने अपनी कमर झुका ली। कॉन्ट्रैक्टर ने गेंद को छोड़ने का दो बार तेजी से प्रयास किया लेकिन गेंद उनके दाहिने कान के ठीक ऊपर जाकर लगी।
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तब किसी चमत्कार से कम नहीं था कॉन्ट्रैक्टर का बचना
सबसे पहले तो चोट को बहुत गंभीर नहीं माना गया था लेकिन मैदान छोड़ने के तुरंत बाद, कॉन्ट्रैक्टर की हालत बिगड़ गई और रात होते-होते उनके सिर के अंदर फट चुकी नसों से खून निकलना शुरू हो गया जिससे उनका बायाँ हिस्सा लकवाग्रस्त होने लगा। एक सामान्य सर्जन को तुरंत कॉन्ट्रैक्टर की देखरेख में लगाया गया क्योंकि सबसे पास में भी न्यूरोसर्जन त्रिनिदाद में मौजूद था। सर्जन ने उनके खून के थक्कों को हटाने का काम किया। अगली सुबह न्यूरो-सर्जन आए और उन्होंने एक दूसरा थक्का जमने का पता लगाया और तब तक आधे लकवाग्रस्त हो चुके कॉन्ट्रैक्टर को दूसरी सर्जरी के लिए ऑपरेशन थियेटर में वापस ले जाया गया। रात से पूरी भारतीय टीम अस्पताल में थी, अपने कप्तान के ठीक होने की प्रार्थना कर रही थी। इसके बाद लंबी जद्दोजहद के बीच डॉक्टरों ने कॉन्ट्रैक्टर को खतरे से बाहर निकाल लिया। उस समय उनका बचना किसी चमत्कार से कम नहीं था क्योंकि तब के बल्लेबाजों के पास आधुनिक बल्लेबाजों की तरह हैलमैट इत्यादि जैसे साजो-सामान नहीं होते थे ( यहां तक की फिलिप ह्यूज को तो हेलमेट भी नहीं बचा सका था)
खोपड़ी में लगी स्टील प्लेट, फिर कभी नहीं खेल पाए भारत के लिए-
कॉन्ट्रैक्टर की जान किसी तरह से बचा ली गई और उनकी खोपड़ी में एक स्टील प्लेट लगाई गई थी। हालांकि वह फिर खेलने की हालत में नहीं रहे। उसके बाद भारतीय क्रिकेट की कप्तानी मंसूर अली खान पटौदी के पास चली गई और भले ही कॉन्ट्रैक्टर इस दुर्घटना के बाद भी 1963-64 में बल्लेबाजी में लौटे और घरेलू क्रिकेट में शतक बनाए, लेकिन उन्हें फिर से भारतीय क्रिकेट टीम में खेलने का मौका नहीं मिल सका। इस त्रासदी के बाद बाउंसरों पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव थे लेकिन कॉन्ट्रैक्टर खुद इसके खिलाफ थे क्योंकि उन्होंने कहा था कि बाउंसरों पर सिर्फ इसलिए प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए क्योंकि उसने उनको चोट पहुंचाई और करियर का उस तरह से खात्मा कर दिया जैसे वह नहीं चाहते थे।
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