डिकी बर्ड का आखिरी टेस्ट :
क्रिकेट में ऐसा बहुत कम होता है जब दो खिलाड़ी एक ही दिन टेस्ट में डेब्यू करें और दोनों आगे चलकर इतने महान खिलाड़ी बन जाएं जिन्हें क्रिकेट जगत की प्रतिमूर्ति कहा जाने लगे। भारतीय क्रिकेट इतिहास में लॉर्ड्स ने दो ऐसे ही हीरे का उदभव देखा। साल 1996, तारीख 20 जून.संयोग से टीम इंडिया के इंग्लैंड दौरे का यह दूसरा टेस्ट मैच था,दोनों टीमें लॉर्ड्स में बनी वुडेन गेट के पास पंक्तिबद्ध होकर खड़े थे। सभी खिलाड़ियों ने हेरॉल्ड 'डिकी' बर्ड (इस मैच के अंपायर) को गार्ड ऑफ ऑनर दिया, मैदान में सभी दर्शक अपने पैरों पर खड़े थे और डिकी की आँखें नम थी क्योंकि एक अंपायर के रूप में यह उनका आखिरी मैच था। क्रिकेट जगत में इन्हें आज भी बेस्ट ऑफ बेस्ट अंपायर की कैटेगरी में रखा जाता है। यह आईडिया इंग्लैंड के कप्तान माइक एथर्टन का था।
दिग्गजों की जगह शामिल हुए थे दादा और द्रविड़:
साल 1996 में कोलकाता के ईडन गार्डन्स में टीम इंडिया के विश्व कप जीतने का सपना धूमिल हो चुका था। सिंगापुर की ट्राई सीरीज से ठीक पहले मनोज प्रभाकर को खराब फॉर्म और विनोद कांबली को 'अनुशासनहीन' होने की वजह से टीम से ड्रॉप किया गया था। इंग्लैंड दौरे पर जाने वाली टीम में 23 साल के जिस खिलाड़ी को शामिल किए जाने की चर्चा हो रही थी उनका नाम था राहुल शरद द्रविड़। लेकिन टीम इंडिया में ठीक उसी समय एक और खिलाड़ी की जोरदार चर्चा थी वो कोई और नहीं बल्कि क्रिकेट के महराज सौरव चंडीदास गांगुली थे। लॉर्ड्स पर आयोजित दूसरे टेस्ट में इन दो खिलाड़ियों ने ऐसी शानदार पारियां खेली जो आज भी क्रिकेट जगत में एक मिसाल के रूप में दी जाती है।
संदीप पाटिल ने दी द्रविड़ को डेब्यू करने की खबर :
तब शायद ही किसी ने यह सोचा होगा कि टीम इंडिया की ओर से खेलने वाला यह खिलाड़ी भारतीय टेस्ट की 'दीवार' बन जाएगा। लॉर्ड्स टेस्ट से पहले वार्मअप मैचों में ग्लॉसेस्टशायर और ससेक्स के खिलाफ द्रविड़ ने 44 और 22 रनों की शानदार पारी खेली थी। डर्बीशायर के खिलाफ सौरव गांगुली ने 64 रनों की पारी खेली और लॉर्ड्स टेस्ट के एक दिन पहले यह सूचित किया गया था कि वो कल (20 जून) अपना टेस्ट डेब्यू कर रहे हैं। संजय मांजरेकर को उस मैच से पहले चोट लगी थी और अपने टखने की देखभाल करने में जुटे थे, राहुल द्रविड़ को यह जानकारी दी गई कि टेस्ट मैच वाले दिन मांजरेकर को फिटनेस टेस्ट देना होगा अगर वो फिट नहीं होते हैं तो आप यह टेस्ट खेलेंगे। मांजरेकर फिटनेस टेस्ट में फेल हो गए। टॉस से ठीक 10 मिनट पहले संदीप पाटिल ने द्रविड़ को जाकर कहा "तुम यह टेस्ट खेल रहे हो'. पाटिल ने द्रविड़ की आत्मकथा में भी इस बात का जिक्र किया है कि "जैसे ही मैं ने राहुल से कहा कि आप यह टेस्ट खेल रहे हो, उसका चेहरा खिल उठा. मैं वो पल जीवन में कभी नहीं भूल सकता', कुछ इस तरह हुई थी क्रिकेट के एक लिविंग लीजेंड के टेस्ट क्रिकेटर बनने का सफर।
Honours बोर्ड पर नाम के लिए हुई थी डील:
वेंकटेश (वेंकी) प्रसाद शुरुआती दिनों में राहुल द्रविड़ के रूम-पार्टनर हुआ करते थे। उन्होंने यह खबर सुनते ही द्रविड़ को शुभकामनाएं दी, लेकिन राहुल की निगाहें लॉर्ड्स की ड्रेसिंग रूम में लगे उस Honours बोर्ड पर थी जिस पर उन विदेशी खिलाड़ियों का नाम लिखा था जिन्होंने टेस्ट मैच में या तो इस मैदान पर या तो 5 विकेट झटके हों या फिर अपनी टीम के लिए शतक जड़ा हो। वेंकी और राहुल के बीच इस मैच से पहले एक डील हुई थी, उन्होंने कहा "तुम पांच विकेट लेकर इस गेंदबाजी बोर्ड पर अपना नाम दर्ज करो मैं एक शतक जड़ बल्लेबाजों के बोर्ड पर अपना नाम दर्ज करवाऊंगा " दोनों के बीच डील डन हुई। वेंकटेश प्रसाद ने इस डील में बाजी मार ली और शानदार गेंदबाजी करते हुए पांच विकेट झटके और अपना नाम उस बोर्ड पर दर्ज कर लिया जिसकी चाह हर खिलाड़ी में होती है लेकिन द्रविड़ अपनी इस डील में महज 5 रन से चूक गए।
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नासिर हुसैन थे दादा का पहला टेस्ट विकेट :
टीम के कप्तान अजहर ने इस टेस्ट में टॉस जीतकर पहले फील्डिंग का फैसला लिया, राहुल और गांगुली के लिए इससे शानदार टेस्ट डेब्यू क्या हो सकता था। टीम इंडिया को शानदार शुरुआत मिली। माइक एथर्टन बिना खाता खोले पवेलियन लौट चुके थे और अंग्रेजों ने महज 1 रन के स्कोर पर अपना पहला विकेट गंवा दिया था। जवागल श्रीनाथ और वेंकटेश प्रसाद की धारदार गेंदबाजी के बदौलत टीम इंडिया ने इंग्लैंड को पहली पारी में महज 344 रनों पर समेट दिया। गांगुली ने अपने डेब्यू टेस्ट की दोनों पारियों में कुल 18 ओवर की गेंदबाजी की थी और तीन विकेट झटके थे। दादा का पहला टेस्ट विकेट कोई और नहीं बल्कि नासिर हुसैन थे। विक्रम राठौड़ ने सेकेंड स्लिप पर डाइव मारकर कैच पकड़ा था, गेंद एक बार उनके हाथ से निकल गई लेकिन दूसरे प्रयास में उन्होंने यह कैच पूरा किया।
नंबर तीन पर दादा का धमाका :
क्रिकेट जगत में नंबर-3 के स्लॉट को दुनिया में बल्लेबाजी करने की सबसे शानदार जगह मानी जाती है। डेब्यू टेस्ट में दादा को यही स्लॉट मिला था। टीम इंडिया ने अपने दो शुरूआती विकेट जल्दी-जल्दी गंवा दिए थे। इस टेस्ट मैच में अजय जडेजा की जगह विकेटकीपर नयन मोंगिया को प्रमोट कर ओपनिंग करने के लिए भेजा गया था क्योंकि जडेजा पहले टेस्ट में इंग्लैंड के गदंबाजों की घूमती गेंदों को आराम से नहीं खेल पा रहे थे। विक्रम राठौड़ और मोंगिया के जल्दी आउट होने के बाद पूरा फोकस दादा पर था। कांबली की जगह दादा को टीम में शामिल किए जाने की आलोचना हो रही थी लेकिन उन्होंने अपनी पारी से सबका दिल जीत लिया। ऐसा लग रहा था मानो गांगुली ने दुनिया को यह साबित करने की कसम खा ली थी आखिर उन्हें टेस्ट टीम में जगह क्यों मिली है और उन्होंने 435 मिनट की मैराथन पारी में 301 गेंदों में 131 रनों की शानदार शतकीय पारी खेली। जब गांगुली ने अपने 17वें चौके से शतक पूरा किया तो स्टेडियम में मौजूद भारतीय प्रशंसक झूम उठे और शायद ही ऐसा कोई खिलाड़ी उस दौर में हुआ था जिसने अपने आलोचकों का मुंह इस तरह बंद किया हो। उनकी इस पारी में एक से बढ़कर एक ऑफ और कवर ड्राइव पर लगाए कुल 20 चौके शामिल थे। दादा ने अपनी पहली टेस्ट पारी में ही धमक दिखा दी और बाद में वो न सिर्फ भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल कप्तान बने बल्कि टीम इंडिया में एग्रेसिव क्रिकेट की नींव रख दी। दादा ने माइक एथर्टन की गेंदों पर उनकी जमकर धुनाई की थी।
द्रविड़ के दीवार बनने की शुरुआत :
टीम इंडिया की 'दीवार' कहे जाने वाले राहुल द्रविड़ को अपने जीवन के पहले (लॉर्ड्स) टेस्ट में सातवें नंबर पर बल्लेबाजी करने का मौका मिला। अजय जडेजा ने 1996 के विश्व कप में शानदार प्रदर्शन किया था और ऐसा माना जा रहा था कि यह पोजिशन उनके लिए 'लकी' है इसलिए उन्हें द्रविड़ से पहले भेजा गया और रणजी में प्राइम फॉर्म में रहे राहुल को उनके बाद। राहुल के लिए टेस्ट में डेब्यू उनके बचपन का सपना था, लेकिन वो उस वक्त नर्वस थे। क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले इस मैदान पर लगे wooden गेट को खोलकर जैसे ही द्रविड़ ने मैदान में प्रवेश किया उन्हें ऐसा लगा मानो उनके शरीर में सिहरन पैदा हो गया हो। उनके दिमाग में सचिन तेंदुलकर की कही एक बात घूम रही थी " नर्वस होना कोई गलत बात नहीं है, मैं भी टेस्ट डेब्यू में नर्वस था, मैदान पर 15 मिनट तक खड़े रहो और चीजें तुम्हारे पक्ष में होने लगेंगी" सचिन की कही यह बात द्रविड़ के आत्मविशवास को बढ़ा रही थी और वो क्रिकेट के अदभुत और अकल्पनीय खिलाड़ी बनने की नींव क्रिकेट के सबसे खूबसूरत मैदान में रख रहे थे।
द्रविड़ बने थे 207वें टेस्ट क्रिकेटर :
द्रविड़ ने जब मैदान पर प्रवेश किया तब टीम इंडिया की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। 296 के स्कोर पर टीम इंडिया के 6 विकेट गिर चुके थे और मैदान में द्रविड़ की एंट्री हुई। उप-कप्तान सचिन की सलाह को मानते हुए उन्होंने 15 मिनट क्रीच पर बिताने की कोशिश की और खुद से उन्होंने एक बात कही " अभी के बाद चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन मुझसे कोई यह छीन नहीं सकता कि मैं एक टेस्ट क्रिकेटर हूँ, भारतीय टीम का टेस्ट क्रिकेटर नंबर-207" और उन्होंने एक साक्षात्कार में यह भी बताया था कि मैं सिर्फ एक आम क्रिकेटर के रूप में अपनी पहचान नहीं बनाना चाहता था जो आया और एक दो टेस्ट खेला हो, मैं देश के लिए लंबे समय तक और लंबी पारी खेलना चाहता था '. अगर ऐसा दृढ संकल्प और विश्वास किसी खिलाड़ी में हो तभी वह राहुल द्रविड़ बनता है। रूनी ईरानी वो पहले गेंदबाज थे जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में राहुल को पहली गेंद फेंकी थी।
गावस्कर ने एक शब्द में किया द्रविड़ को परिभाषित :
गांगुली के आउट होने के बाद द्रविड़ ने पारी की जिम्मेदारी संभाली, खराब रोशनी की वजह से मैच समय से 22 मिनट पहले बंद करना पड़ा, द्रविड़ जब 56* पवेलियन लौट रहे थे तब उन्हें दर्शकों ने स्टैंडिंग ओवेशन दिया था। वो उस समय कुंबले के साथ बल्लेबाजी कर रहे थे। टेस्ट के दो बड़े दिग्गज ने अपने डेब्यू टेस्ट में ही डिटरमिनेशन शब्द को परिभाषित कर दिया था। 9 साल बाद जब सुनील गावस्कर से द्रविड़ की डेब्यू पारी को एक शब्द में परिभाषित करने को कहा गया तो उन्होंने एक शब्द कहा 'Soilditiy'. कुंबले और श्रीनाथ के साथ बल्लेबाजी करते हुए एक पल ऐसा भी आया जब द्रविड़ ने 79 रनों पर ही लगभग 50 मिनट तक गेंदबाजी की।
द्रविड़ का फेमस वॉक और तालियों की गूंज :
वेंकटेश प्रसाद ने तो द्रविड़ से किया अपना वादा पूरा कर दिया था लेकिन अब जिम्मेदारी राहुल की थी. वह शानदार बल्लेबाजी कर रहे थे और 90s में प्रवेश कर चुके थे लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। 95 रन के स्कोर पर क्रिस लुईस ने उन्हें आउट किया और वो अंपायर के बिना सिग्नल दिए ही पवेलियन की ओर चल दिए. पूरा स्टेडियम खड़े होकर तालियों की गड़गड़हाट से इस अदभुत खिलाड़ी का स्वागत कर रहा था। लॉर्ड्स में क्रीज से पवेलियन तक द्रविड़ के 'फेमस वॉक' तक सभी दर्शक खड़े होकर उनका अभिवादन करते रहे। उनके आउट होने के बाद वेंकटेश प्रसाद क्रीज पर जा रहे थे जो उतने ही उदास थे जितने कि खुद द्रविड़ क्योंकि उनके सबसे अच्छे दोस्त उनसे लगाई बाजी हार गए थे। उन्होंने 363 मिनट तक बल्लेबाजी की और 267 गेंदों में 6 चौके की मदद से 95 रन बनाए। क्रिकेट विश्लेषकों की मानें तो द्रविड़ की इस शानदार पारी के लिए गांगुली के शतक से अधिक तालियां और प्रशंसा मिली थी। दादा और द्रविड़ की शानदार पारी की बदौलत 22 साल पहले खेला गया लॉर्ड्स टेस्ट मैच ड्रॉ हुआ था।
Honours बोर्ड पर 15 साल बाद मिली जगह :
द्रविड़ को लॉर्ड्स के Honours बोर्ड पर टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करने के 15 साल बाद जगह मिली। साल 2011 में उन्होंने यह अदभुत पारी खेली थी जिसमें 15 चौके शामिल थे। उन्होंने 220 गेंदों में 103 रनों की नाबाद पारी खेली थी और टीम इंडिया को फॉलो ऑन से बचाया था। ऐसा कहा जाता है कि धैर्य ही एक शानदार टेस्ट पारी की बुनियाद होती है। द्रविड़ की इस पारी में ऐसा ही धैर्य देखने को मिला। यह उनका 33वां टेस्ट शतक था। उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ कुल 7 टेस्ट शतक जड़े जो उनका किसी भी टीम के खिलाफ सबसे अधिक शतक हैं