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गांगुली की बैठक में बीसीसीआई संविधान बदलने का प्लान दुर्भाग्यपूर्ण : जस्टिस लोढ़ा

नई दिल्ली: बीसीसीआई में सुधार के लिए 2015 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आरएम लोढ़ा ने कहा है कि उन्होंने जो संविधान बनाया था, उसमें संशोधन के लिए बोर्ड का कदम "दुर्भाग्यपूर्ण" था। इस संविधान में भारतीय क्रिकेट को चलाने के तरीके में बदलाव करने का प्रावधान है। अगस्त 2018 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही यह संविधान पास किया गया था।

"तो गांगुली कभी बीसीसीआई अध्यक्ष ना बन पाते"

लोढा ने बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली का जिक्र किया और कहा कि कोई पूर्व क्रिकेटर इसलिए ही अध्यक्ष बन पाया है क्योंकि उन्होंने (लोढ़ा) ही सुधार की तहत ऐसा प्रावधान किया था।

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कूलिंग-ऑफ अवधि से संबंधित नियमों में फेरबदल को काफी गंभीर माना जा रहा है, इस नियम के तहत वर्तमान में कार्यालय में छह साल की अवधि की सर्विस करने के बाद तीन साल के लिए ऑफिस से बाहर रहेंगे। इतना ही नहीं बीसीसीआई ने यह भी प्रस्ताव किया है कि विभिन्न अयोग्यता से संबंधित मामलों में भी ढील दी जाए और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आखिरी अनुमोदन (Approval) करने की शर्त से भी बचा जाए।

गांगुली और बीसीसीआई सचिव जय शाह वर्तमान में केवल जून 2020 तक सेवा कर सकते हैं क्योंकि वे अपनी वर्तमान भूमिकाओं से पहले पांच साल से अधिक समय तक अपने संबंधित राज्य बोर्डों के प्रमुख रहे हैं।

"यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है"

बीसीसीआई बोर्ड द्वारा प्रस्तावित अन्य संशोधनों में "हितों के टकराव का संघर्ष" है जो संविधान में मौजूद है और बोर्ड सचिव को और अधिक शक्ति प्रदान कर रहा है।

"यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है," लोढ़ा ने हिंदुस्तान टाइम्स से एक साक्षात्कार में कहा था। "मुझे लगा कि एक क्रिकेटर मामलों की गंभीरता समझेगा।

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लोधा ने कहा, "अगर पहले की व्यवस्था होती थी, तो शायद कोई भी क्रिकेटर बीसीसीआई को हेड करने का सपना नहीं देखता।"

"क्रिकेट प्रशासन में जिस तरह से राजनीति खेली जाती है, मुझे नहीं लगता कि कोई भी क्रिकेटर इन सुधारों की स्थिति को पाने में सक्षम होगा।

लोढ़ा ने कहा कि इन प्रशासन को सुधारों से संबंधित सभी प्रावधानों का आदर करना चाहिए ना की उनको बदलना चाहिए।

लोढ़ा ने माना कि बोर्ड के पूर्व सदस्यों के परिवार के सदस्यों को चुनाव लड़ने से रोकना कानूनी रूप से असंभव था। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि लंबे समय में और अधिक "स्वतंत्र" लोग सामने आएंगे।

"सीओए को बहुत पहले करना था फैसला"

लोढ़ा ने यह भी कहा कि वे चाहते थे कि विनोद राय के नेतृत्व में प्रशासकों की समिति सुधारों को तेजी से पहले ही लागू करती। "उन्होंने कार्यान्वयन में बहुत समय लिया," उन्होंने कहा।

"उनका काम कोर्ट के आदेश को लागू करना था। इसे बहुत समय पहले किया जाना चाहिए था। उन्हें तीन साल लग गए।

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"वास्तव में, दूसरा चुनाव इस समय तक होना चाहिए था क्योंकि पहला आदेश जुलाई, 2016 में पारित किया गया था। सुधारों के बाद पहला चुनाव 2019 में हुआ है।"

बता दें कि 2015 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त लोढ़ा समिति की अध्यक्षता लोढ़ा ने की थी, जिसमें साथ ही भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, पूर्व सुप्रीम कोर्ट जस्टिस आरवी रवींद्रन और अशोक भान भी थे।

Story first published: Wednesday, December 11, 2019, 16:35 [IST]
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