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धोनी नहीं यह खिलाड़ी है क्रिकेट इतिहास का असली 'फिनिशर' जिसे देखकर बना था शब्द

नई दिल्ली। क्रिकेट के मैदान पर रनों का पीछा करना और उसे हासिल कर टीम के लिये जीत के साथ वापस लौटने की कला हर खिलाड़ी के पास नहीं होती। मैच के दौरान ऐसा करने को कोशिश करने वाले खिलाड़ियों को अक्सर रन रेट और विकेटों का दबाव झेलना पड़ता है। सीमित ओवर्स प्रारूप में अक्सर खिलाड़ियों को ऐसी परिस्थिति से गुजरते देखा जाता है जहां इन सबको झेलते हुए अपनी टीम को जिताने के लिये खिलाड़ी को धैर्य और शांति के साथ पारी को खेलना पड़ता है। क्रिकेट की भाषा में इस तरह की पारी खेलने वाले खिलाड़ी को फिनिशर कहा जाता है।

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फिनिशर शब्द सुनते ही दिमाग में युवराज सिंह, महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली जैसे बल्लेबाजों का नाम जेहन में आता है जिन्होंने कई बार भारतीय टीम को ऐसी परिस्थितियों से निकाल कर मैच जिताया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि धोनी से बहुत पहले भी एक ऐसा खिलाड़ी हुआ जिसने अपने करियर के दौरान कई ऐसी पारियां खेली। आइये हम आपको उस खिलाड़ी के बारे में बताते हैं जिसकी वजह से क्रिकेट की डिक्शनरी में फिनिशर शब्द का जन्म हुआ।

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बेवन की बल्लेबाजी देखकर ही क्रिकेट में फिनिशर जुड़ा

बेवन की बल्लेबाजी देखकर ही क्रिकेट में फिनिशर जुड़ा

हम बात कर रहे हैं क्रिकेट के असली फिनिशर और ऑस्ट्रेलिया के पूर्व खिलाड़ी माइकल बेवन की जो आज अपना 50 वां जन्मदिन मना रहे हैं। माइकल बेवन के ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में वनडे के बेस्ट बल्लेबाजों में गिना जाता है। वनडे क्रिकेट के हिसाब से माइकल बेवन बेहद दमदार बल्लेबाज थे। मैदान पर कितने भी दबाव की स्थिति क्यों न हो लेकिन बायें हाथ का यह खिलाड़ी शांति और संयम के साथ बल्लेबाजी करता था और गेंदों को गैप में धकेल कर विकेटों के बीच रनों की गति को बरकरार रखता था।

विपक्षी टीम के लिये माइकल बेवन उस खिलाड़ी की तरह थे जो मैच का पासा कभी भी पलट सकता था। यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्हीं की बल्लेबाजी को देखकर फिनिशर शब्द को क्रिकेट में जोड़ा गया।

ऐसा रहा था बेवन का करियर

ऐसा रहा था बेवन का करियर

माइकल बेवन ने साल 1994 में अपना पहला वनडे मैच खेला था और 10 साल तक देश के लिये क्रिकेट खेला। इस दौरान उन्होंने 232 वनडे मैचों में शिरकत की और 53.78 के औसत से 6912 रन बनाए। यह वो औसत है जिसे आज के दौर में भी बल्लेबाज आसानी से हासिल नहीं कर सकते और बेवन ने यह कमाल 90 के दशक में किया। वह ऑस्ट्रेलिया के लिये निचले मध्यक्रम में बल्लेबाजी करते थे इसलिये उनकी बल्लेबाजी का मौका तभी आता था जब ऑस्ट्रेलिया की टीम मुश्किलों का सामना कर रही होती थी। अपने करियर में वह 67 बार नाबाद रहे। इस दौरान उन्हें 18 टेस्ट मैच खेलने का भी मौका मिला।

3 साल इंतजार के बाद लिया संन्यास

3 साल इंतजार के बाद लिया संन्यास

उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी अलग पहचान बनाने वाले इस खिलाड़ी को वो सम्मानजनक विदाई नहीं मिल सकी जिसके वो हकदार थे। करियर के दौरान दसियों बार ऑस्ट्रेलिया को मुश्किल से निकालने वाले माइकल बेवन ने अपने करियर का आखिरी वनडे मैच साल 2004 में खेला था।

अपने करियर के दौरान गेंदबाजों पर भारी पड़ने वाले इस बल्लेबाज की कमजोरी के रूप में गेंदबाजों ने शॉर्ट बॉल को अपना हथियार बनाया, जिसके खिलाफ वह थोड़ा असहज महसूस करते थे। कुछ वक्त बाद यह उनकी ज्यादातर पारियों के दौरान होने लगा। अंत में टीम से 3 साल तक बाहर रहने के बाद 2007 में वापसी के सभी दरवाजे बंद देखते हुए उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया।

Story first published: Saturday, May 9, 2020, 6:14 [IST]
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