गरीबी से लड़ कर बड़े हुए बुमराह
जसप्रीत बुमराह के पूर्वज पंजाब के रहने वाले थे। उनके दादा संतोष सिंह बुमराह रोजी रोटी के लिए अहमदाबाद आ गये थे। उन्होंने अपनी मेहनत से अहमदाबाद में तीन फैक्ट्रियां खड़ी कर ली थीं। सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन हंसते खेलते परिवार पर 2001 में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। जसप्रीत बुमराह के पिता जसबीर सिंह बुमराह का असामयिक निधन हो गया। उस समय बुमराह की उम्र 8 साल और उनकी बहन जुहिका की उम्र 5 साल थी। बुमराह के पिता के निधन के बाद परिवार में कई तरह की समस्याएं शुरू हो गयीं। बिजनेस चौपट होने लगा। घर में मतभेद बढ़ने लगे। बुमराह की मां दलजीत कौर अकेली पड़ गयीं। घर के लोगों ने उनका साथ नहीं दिया। ऐसे में दलजीत कौर जसप्रीत और जुहिका को लेकर अलग रहने लगीं। अब उन पर दो छोटे बच्चों की परवरिश की जिम्मेवारी थी। आमदनी का कोई जरिया नहीं था। शुरू में उनके मायके वालों ने कुछ मदद की। लेकिन इससे जिंदगी की गाड़ी चलनी मुश्किल थी। अंत में बुमराह की मां ने घर चलाने के लिए छोटे-छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। फिर कुछ दिनों के बाद एक निजी स्कूल में शिक्षक की नौकरी मिल गयी।
बुमराह को हुई क्रिकेट से मोहब्ब्त
मां किसी तरह घर चला रही थी। उनकी पूरी उम्मीद एकलौते बेटे जसप्रीत बुमराह पर टिकी थी। वे बेटे का पढ़ा-लिखा बड़ा आदमी बनाना चाहती थीं। जब बुमराह दस बारह साल के हुए तो एक दिन उन्होंने अपनी मां से क्रिकेटर बनने की इच्छा जाहिर। यह सुन कर वे बहुत नाराज हुईं। उन्होंने कहा कि लाखों बच्चे यह सपना देख कर बर्बाद होते रहे हैं। तुम पढ़ो और घर की जिम्मेदारी संभालो। लेकिन बुमराह तो क्रिकेट के पीछे पागल थे। वे जब टीवी पर एलेन डोनाल्ड, वकार यूनूस और ब्रेट ली जैसे तेज गेंदबाजों को बॉलिंग करते देखते तो जोश में आ जाते। उनके मन में भी तेज गेंदबाज बनने का जुनून पैदा हो गया। वे कभी डोनाल्ड, तो कभी ब्रेट ली तो कभी वकार यूनुस की तरह गेंदबाजी करने की कोशिश करने लगे। इस मिली जुली कोशिश में उनका एक्शन अजीबोगरीब हो गया। उनकी मां जिस स्कूल में पढ़ाती थीं उसकी टीम से बुमराह क्रिकेट खेलने लगे। स्कूली क्रिकेट में ही बुमराह ने अपनी तेज गेंदबाजी का सिक्का जमा लिया था। उनकी गेंदें इतनी तेज होती कि 13-14 साल के बच्चों को दिखायी नहीं पड़तीं। ऐसी तेज गेंदबाजी देख कर दूसरे स्कूल की टीमें उन्हें गेस्ट प्लेयर के रूप में बुलाने लगीं। अहमदाबाद की स्कूली क्रिकेट प्रतियोगिता में बुमराह का ऐसा नाम हो गया कि उन्हें कुछ मैच फीस भी मिलने लगी। हालांकि ये रकम बहुत मामूली होती लेकिन बुमराह ये पैसा अपनी मां के हाथों पर ऐसे रखते जैसे कोई बड़ी सेलरी मिली हो। बुमराह के पास न क्रिकेट किट था न ढंग के जूते। एक पुरानी साइकिल थी जिस पर चढ़ कर वे दस-दस किलोमीटर दूर मैच खेलने जाया करते थे।
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कैसे सीखी यॉर्कर ?
बुमराह जब छोटे थे तो घर की दीवारों पर पेंसिल से विकेट बना कर बॉलिंग करने लगते। टेनिस बॉल जब दीवारों पर टकराती तो बहुत शोर होता जिससे उनकी मां गुस्सा हो जातीं। एक दिन उन्होंने खीज में कह दिया कि या तो बाहर खेले या फिर ऐसी बॉलिंग करो की घर में आवाज न हो। बुमराह सोच में पड़ गये कि क्या करें। तब उन्होंने तय किया कि वे गेंद को वहां पटकेंगे जहां जहां दीवार का निचला सिरा फर्श से मिलता हो। दीवार की जड़ में गेंद पटकने से आवाज कम होने लगी। फिर तो वे दीवारों पर विकेट जरूर बनाते लेकिन गेंदों को वहीं टप्पा खिलाते जहां दीवार की जड़ होती। इस प्रैक्टिस के बाद बुमराह जब स्कूली क्रिकेट में बॉलिंग के लिए मैदान पर उतरे तो उनकी अधिकतर गेंदें बल्लेबाज के पैरों पर गिरतीं। हड़बड़ी में बल्लेबाज या तो बोल्ड हो जाता या फिर एलबीडब्ल्यू। बुमराह में सटीक यॉर्कर फेंकने की कला यहीं विकसित हुई थी। गरीबी से लड़ने वाले बुमराह ने सब कुछ खुद सीखा। वे टीवी पर मैच देखते और बड़े गेंदबाजों से प्रेरणा लेते। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में आने के बाद ही उन्हें ढंग की कोचिंग मिली।
प्रगति की तरफ कदम
अहमदाबाद की स्थानीय क्रिकेट प्रतियोगिताओं में जब बुमराह का नाम गूंजने लगा तो 2011 में गुजरात की अंडर -19 टीम में उनका चयन हुआ। उस समय वे 17 साल के थे। बुमराह की क्षमता को देख कर 2013 में उनको गुजरात की सीनियर टीम में शामिल किया गया। वे गुजरात की टी-20 टीम का हिस्सा बने। गुजरात का दूसरा मैच मुम्बई से था। उस समय जॉन राइट मुम्बई इंडियंस के कोच थे। संयोग से वे भी इस मुकाबले को देख रहे थे। 18 मार्च 2013 को अहमदाबाद के मोटेरा ग्राउंड पर ये मैच चल रहा था। मुम्बई के कप्तान आदित्य तारे और शोएब शेख की सलामी जोड़ी मैदान पर थी। बुमराह ने पहले ओवर में अपनी रफ्तार वाली यॉर्कर गेंदों से आदित्य तारे को हैरान कर दिया। दूसरे ओवर में भी बुमराह ने यॉर्कर से हमला जारी रखा और तारे का विकेट झपट लिया। जब लंच ब्रेक हुआ तो जॉन राइट गुजरात के कप्तान पार्थिव पटेल के पास गये और जसप्रीत बुमराह के बारे में पूछा। फिर उन्होंने अपना टेलीफोन नम्बर दिया और बुमराह को फोन करने के लिए कहा। बुमराह ने फोन किया। दूसरे दिन ही उनको मुम्बई इंडियंस से बुलावा आ गया। इस तरह वे आइपीएल की सबसे धनी टीम का हिस्सा बन गये। जॉन राइट ने सचिन तेंदुलकर को बुमराह के बारे में पहले ही बता दिया था। अगले दिन प्रैक्टिस सेशन में तेंदुलकर की मुलाकात बुमराह से हुई। तेंदुलकर ने जब बुमराह का अनोखा एक्शन और उनकी गेंदों में तेजी देखी तो हैरान रह गये। कुछ गेदें खेलने के बाद तेंदुलर ने कहा,बुमराह की गेदों को समझना बहुत मुश्किल है। 4 अप्रैल 2013 को मुम्बई का मुकाबला रॉयल चैलैंजर्स बेंगलुरु से होना था। तेंदुलकर ने बिना समय गंवायेबुमराह को प्लेइंग इलेवन में शामिल करा दिया। फिर तो बुमराह मुम्बई इंडियंस की जान बन गये। आइपीएल में झंडा गाड़ने के बाद जसप्रीत बुमराह अब टीम इंडिया की शान हैं।