अगर आप दौरे पर हैं तो खेलने का मौका जरूर मिलेगा
इस बीच भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ ने बतौर कोच अपनी सफलता का राज खोला है और ईएसपीएन क्रिकइंफो से बात करते हुए बताया कि उन्होंने एक कोच के तौर पर ऐसा क्या किया कि उन्हें इतनी कामयाबी मिली और भारतीय टीम के पास इतनी मजबूत बेंच स्ट्रेंथ हो गई है।
उन्होंने कहा,'मैं उन्हें साफ-साफ कह देता हूं कि अगर आप मेरे साथ दौरे पर आ रहे हैं तो आप बिना एक भी मैच खेले वापस नहीं आयेंगे। एक युवा खिलाड़ी के तौर पर यह मेरा निजी अनुभव रहा है कि आप किसी दौरे पर जाते हैं आपको खेलने का मौका नहीं मिलता है बहुत खराब महसूस होता है। आपने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है, 700-800 रन बनाये हैं और फिर आप दौरे के लिये चुने जाते हैं जिसके बाद आपको वो करने का मौका नहीं मिलता जिसमें आप सबसे अच्छे हैं। इसके बाद फिर से वहीं पर आ जाते हैं जहां से शुरू किया था।'
नये सीजन में फिर से बनाने होते हैं 800 रन
राहुल द्रविड़ ने आगे बात करते हुए कहा कि जब खिलाड़ी बिना मैच खेले वापस आता है तो उसके लिये मुश्किलें बढ़ जाती हैं और उसे फिर से शुरूआत करनी पड़ती है।
उन्होंने कहा,'बिना वापस खेले आने के बाद खिलाड़ियों को फिर से शुरुआत करनी पड़ती है क्योंकि चयनकर्ताओं के हिसाब से नया सीजन शुरू हो रहा होता है जिसमें आपको फिर से 800 रन बनाकर खुद को साबित करना होता है। यह आसान नहीं होता है तो ऐसे में कोई गारंटी नहीं है कि आपको फिर से मौका मिल सकेगा। इस वजह से आप लोगों को साफ बता गेते हो कि यह हमारी बेस्ट 15 है और हम इन्हीं के साथ खेलेंगे। यह अंडर 19 की बेस्ट इलेवन ढूंढने के लिये नहीं है, हम चाहें तो मैच के दौरान 5-6 बदलाव कर सकते हैं।'
बदल गया है निचले स्तर तक का क्रिकेट
गौरतलब है कि मौजूदा समय के क्रिकेट और राहिल द्रविड़ के जमाने के क्रिकेट में जमीन आसमान का अंतर आ गया है । 90 और 2000 के दशक में न तो तकनीक इतनी एडवांस थी और न ही भारत के पास इतने जमीनी स्तर पर क्रिकेट खेलने के अच्छे साधन मौजूद थे। हाल ही में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व सलामी बल्लेबाज वीरेंदर सहवाग ने इस पर बात करते हुए कहा था कि अगर उनके जमाने में आज जैसी सुविधायें होती तो उन्होंने भारत के लिये काफी पहले डेब्यू कर लिया होता। इस पर बात करते हुए द्रविड़ ने भी अपनी राय रखी है।
उन्होंने कहा,'नदी के किनारे और सड़क पर खेलकर कोई भी क्रिकेटर नहीं बनता है। क्रिकेटर बनने के लिये आपके अंदर खेल के प्रति प्यार होना जरूरी है। यही हमारे अंदर भी था, हमारे साथ कई ऐसे लोग थे जिन्हें इस खेल से प्यार था लेकिन जब तक आप उन्हें एक मैटिंग विकेट या टर्फ विकेट न दो , जिस पर कम से कम आधे तरीके से खेल के बारे में कोचिंग न दी गई हो, कुछ आधा सा फिटनेस प्रोग्राम...1990 और 2000 के दशक में यह कहां था। लोगों के पास इस तक पहुंचना ही आसान नहीं था। हमें ज्ञान की भूख थी, फिटनेस की बात करें तो हम ऑस्ट्रेलियाई और साउथ अफ्रीकी खिलाड़ियों के फिटनेस ट्रेनर की ओर देखा करते थे और हमें क्या मिला। ज्यादा जिम मत करो, तुम्हारा शरीर ज्यादा सख्त हो जायेगा, सिर्फ गेंदबाजी, गेंदबाजी और गेंदबाजी करो और लैप्स में दौड़ लगाओ।'