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सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ ने एक दूसरे के बारे में बताईं वो बातें जो शायद ही किसी को पता हों

ये दोनों खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट के लिविंग लीजेंड हैं, एक ने भारतीय क्रिकेट में कप्तान रहते हुए खिलाड़ियों को क्रिकेटर, कप्तान और सफल खिलाड़ी बनाया तो दूसरे ने क्रिकेटर्स की फेहरिश्त खड़ी करने का बीड़ा उठा

By गौतम सचदेव

नई दिल्ली : ऐसा कहा जाता है कि जिंदगी में दो चीजें नसीब वाले लोगों को मिलती हैं। अच्छे दोस्तों का साथ और जीवन में शानदार लाइफ पार्टनर, क्रिकेट हो या जीवन एक अच्छा लाइफ पार्टनर आपकी पूरी तकदीर बदल सकता है। खेल के मैदान में, खासकर क्रिकेट में भी पार्टनरशिप की बड़ी अहम भूमिका होती है। क्रिकेट के अनसुने किस्से की किश्त में आज कहानी टीम इंडिया के एक ऐसे पार्टनर और दो ऐसे शानदार इंसानों की जिन्होंने पार्टनरशिप की नई परिभाषा गढ़ी थी।

लिविंग लीजेंड हैं दादा और द्रविड़

लिविंग लीजेंड हैं दादा और द्रविड़

ये दोनों खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट के लिविंग लीजेंड हैं, एक ने भारतीय क्रिकेट में कप्तान रहते हुए खिलाड़ियों को क्रिकेटर, कप्तान और सफल खिलाड़ी बनाया तो दूसरे ने क्रिकेटर्स की फेहरिश्त खड़ी करने का बीड़ा उठा लिया है। टीम इंडिया के इस जानदार खिलाड़ी के स्कूल से निकले प्रतिभाशाली युवा क्रिकेटर्स हर दूसरे दिन चयनकर्ताओं के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हों। ये दो महान दिग्गज कोई और नहीं बल्कि सौरव गांगुली-राहुल द्रविड़ हैं। इन दोनों नामों के बीच और की जगह - उपयुक्त लगता है। क्रिकेट की शब्दावली का शब्द 'लिविंग लीजेंड' मानो इन दो दिग्गजों के लिए किसी बौने जैसा लगता है। हाल में ही इन दो दिग्गजों ने टेस्ट क्रिकेट में अपने 22 साल पूरे किए हैं, जानिए इनकी एक ऐसी कहानी जो कम सुनी या बताई गई हैं।

कैलाश की वजह से बने दोस्त

कैलाश की वजह से बने दोस्त

वैसे तो आपने क्रिकेट में कई अनसुने किस्से सुने और पढ़े होंगे लेकिन राहुल और दादा की दोस्ती का किस्सा इन सबसे अलग है। भले ही इन दोनों खिलाड़ियों ने लॉर्ड्स में 20 जून 1996 को डेब्यू किया लेकिन ये दोनों एक दूसरे को साल 1989 से जानते थे। वो कोई और नहीं बल्कि कैलाश खटानी थे जो द्रविड़ के पहले सबसे अच्छे दोस्त और दादा के दूसरे सबसे पसंदीदा साथियों में से एक थे, राहुल और सौरव उन दिनों स्कूल क्रिकेट से निकले थे और इंग्लैंड के दौरे पर इनके साथ गए थे।

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कैसे मिले थे द्रविड़ और गांगुली

कैसे मिले थे द्रविड़ और गांगुली

दादा ने एक साक्षात्कार में बताया कि 'राहुल से मेरी पहली मुलाकात उसी दौरे पर हुई थी, हम सब युवा थे मैं ने द्रविड़ को शायद स्कॉटलैंड के किसी ग्राउंड में बहुत ही टफ पिच पर शतक जड़ते देखा। राहुल ने बताया कि उनकी पहली मुलाकात भी गांगुली से खास रही थी। उन्होंने कहा कि 'वो जूनियर क्रिकेट में काफी नाम कर चुके थे इसलिए उनकी चर्चा चारों ओर हो रही थी'। दादा ने बताया दूसरी बार द्रविड़ से मेरी मुलाकात रणजी ट्रॉफी में हुई, साल 1990 था, राहुल ने कर्नाटक के लिए डेब्यू किया था और शतक जड़े थे और उस साल हमने रणजी ट्रॉफी जीती थी, मैंने भी अपनी टीम के लिए करीब 80 रन बनाए थे। द्रविड़ का युवा चेहरा, वो उस समय भी काफी गंभीर दिखता था और देखिए आज वो अपनी प्रतिभा के दम पर भारत के सबसे शानदार क्रिकेटर हैं। आप इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, वेस्टइंडीज, न्यूजीलैंड कहीं भी जाओ, आप चाहेंगे कि राहुल जैसे खिलाड़ी आपके लिए जीवन भर बल्लेबाजी करें। हम भाग्यशाली थे कि हमें नंबर-3 पर द्रविड़ जैसा खिलाड़ी बल्लेबाजी करने के लिए मिला था।

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गांगुली के अंकल के यहां खाना खाते थे द्रविड़

गांगुली के अंकल के यहां खाना खाते थे द्रविड़

वैसे तो क्रिकेट जगत में फैब-4 की चर्चा होती थी लेकिन एक दोस्ती की कहानी ऐसी भी है जिसे अभी कम लोग जानते हैं। राहुल द्रविड़ ने अपनी और सौरव के बीच दोस्ती का एक और मजेदार वाकया सुनाया। उन्होंने कहा 'उन दिनों (1989-90) जब हम लंदन जाते थे तो इंडियन फूड नहीं मिलते थे सौरव के एक अंकल थे। एक युवा के तौर पर हमें भारतीय खाना नहीं मिलता था तो हम परेशान हो जाते थे। हम उनके यहां हमेशा जाते थे और खूब जमकर खाना खाते थे'। राहुल और सौरव की दोस्ती अंडर-15 से शुरू हुई थी, इन दो खिलाड़ियों की दोस्ती इतनी शानदार थी कि संयोग से इन दोनों दिग्गजों का टेस्ट में भी ड्रीम डेब्यू एक ही दिन हुआ। लॉर्ड्स के मैदान पर क्रिकेट के दो दिग्गजों का जन्म हुआ था और वो भला कोई क्रिकेट प्रशंसक कैसे भूल सकता है।

लॉर्ड्स के डेब्यू में दादा का धमाका

लॉर्ड्स के डेब्यू में दादा का धमाका

गांगुली ने इस मैच की पहली पारी में नंबर-3 पर बल्लेबाजी की थी और 435 मिनट की मैराथन पारी में 301 गेंदों का सामना कर 131 रन बनाए लेकिन द्रविड़ 95 रन पर आउट हो गए थे। दादा ने इस मौके को याद करते हुए बताया कि " मैं जब 70 पर बैटिंग कर रहा था तब राहुल सातवें नंबर पर आया मैंने 131 रन बनाए और आउट होकर चला गया, जब मैंने कवर ड्राइव मारकर शतक जड़ा तो द्रविड़ नॉनस्ट्राइकर एंड पर खड़ा था, वो अगले दिन फिर खेलने आया और मैं लॉर्ड्स की बालकनी में खड़े होकर इंतजार कर रहा था कि वो भी शतक करे लेकिन वो आउट हो गया ' मैं ने उसे अंडर-15 से देखा था, साथ में रणजी ट्रॉफी मैच खेले फिर ईडन गार्डन्स में ODI डेब्यू करते देखा और फिर लॉर्ड्स में टेस्ट डेब्यू, अच्छा होता उस दिन अगर हम दोनों शतक कर पाते। द्रविड़ ने अपने डेब्यू टेस्ट का जिक्र करते हुए बताया कि " सौरव उस मैच में नंबर-3 पर बल्लेबाजी करने गए थे और मैं नंबर-7 पर तो मेरे पास काफी समय था कि मैं ने लंबे समय तक उन्हें बल्लेबाजी करते देखा, मैं गांगुली के उस मैच में शतक के लिए काफी खुश था और उसके आउट होने के बाद उस पारी से मोटिवेट होकर और प्रेरणा लेकर अच्छा करने की कोशिश की।

ऐतिहासिक थी टॉन्टन में खेली पारी

ऐतिहासिक थी टॉन्टन में खेली पारी

जब भी कभी द्रविड़ और सौरव के पार्टनरशिप की चर्चा होती है तो एक और मैराथन पारी की याद आंखों के सामने आ जाती है। साल 1999 के वर्ल्ड कप में सौरव-द्रविड़ की जोड़ी ने श्रीलंका के खिलाफ दूसरे विकेट के लिए क्रिकेट इतिहास की सबसे बड़ी पारी खेली थी। राहुल और सौरव ने दूसरे विकेट के लिए 318 रनों की साझेदारी की जो लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लंबे समय तक एक रिकॉर्ड रहा था। उस मैच में द्रविड़ ने 145 और दादा ने 183 रनों की शानदार पारी खेली थी। क्रिकेट इतिहास में आज भी इन दो दिग्गजों की इस पारी को मिसाल के तौर पर देखा जाता है।

दोस्ती अब भी बनी है खास

दोस्ती अब भी बनी है खास

ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि सौरव और द्रविड़ 22 गज की पिच से दोस्त बने और क्रिकेट प्रशंसकों को दो दिग्गज मिले। टेस्ट डेब्यू के 22 साल बाद जब द्रविड़ ने एक दूसरे से मिलने-जुलने की बात कही तो उन्होंने बताया अब वो क्रिकेट के प्रशासनिक विभाग में ज्यादा व्यस्त हैं। लेकिन हम जब कभी मिलते हैं कहीं भी मिलते हैं उनसे जमकर बातें होती हैं और वो भी कई चीजें सुनाते हैं वहींगांगुली ने बताया कि लोग उन्हें कहते हैं, द्रविड़ ने जो किया, जब भी किया उसमें अपना 100 फीसदी दिया। युवा खिलाड़ी भाग्यशाली हैं कि उनके आस-पास द्रविड़ एक कोच की भूमिका में होते हैं।

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Story first published: Friday, January 11, 2019, 13:27 [IST]
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