ऋषभ पंत
यूं तो पंत की तुलना श्रेयस अय्यर से करना अब ज्यादा तार्किक नहीं है, क्योंकि पंत विकेटकीपर बल्लेबाज हैं। और अब इनमें भारतीय टीम के थिंक टैंक, महेंद्र सिंह धोनी का विकल्प तलाश रहे हैं। हाँ, ऐसी बातें तब तार्किक जरूर रही थी जब नंबर चार स्लॉट के लिए एक बल्लेबाज की खोज जारी थी। तब पंत को इस स्लॉट के लिए सबसे उम्दा चयन समझा गया था। लेकिन पंत का नैसर्गिक गुण जो उनकी ताकत भी है, वही उन पर भारी पड़ा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पंत प्रतिभावान हैं। लेकिन यह स्लॉट काफी महत्वपूर्ण और चुनौतियों से भरा है जिसकी न्यूनतम योग्यता, किसी भी खिलाड़ी में बल्लेबाजी के हुनर के साथ ही धैर्य, विवेक और परिस्थितियों से तालमेल कर चलने का मिश्रण होना है। इसी कसौटी पर श्रेयस अय्यर ने मिले मौके को दोनों हाथों से लपका है। उनके उम्दा प्रदर्शन में इन सारी चीजों का समावेश दिखा है। लेकिन अभी भी भारतीय टीम के थिंक टैंक चार नंबर पर पंत को ही तरजीह देते दिखते हैं। बातें होने पर कह देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार वो नंबर चार और नंबर पांच को लचीला बनाने चाहते हैं। लेकिन इसी लचीलेपन में किसी और की प्रतिभा के साथ ज्यादती भी हो जाती है। इसका ख़्याल भी प्रबंधन को रखना चाहिए।
चुनौती देते अन्य युवा खिलाड़ी
खैर, बात विकेटकीपर बल्लेबाज की हो रही है तो महेंद्र सिंह धोनी की छवि उभर आना स्वाभाविक है। इसी क्रम में अतिरेक तब हो जाता है जब हम किसी खिलाड़ी की तुलना धोनी से करने लगते हैं। धोनी बल्लेबाजी, विकेटकीपिंग से लेकर खेल की समझ में धैर्य और आक्रामकता जैसे दो विपरीत गुणों के शानदार मिश्रण हैं। पंत से इतनी अपेक्षा रखना अभी उचित नहीं है लेकिन अब धोनी के विकल्प के रूप में यहां सिर्फ पंत ही नहीं हैं। राहुल द्रविड़, जहीर खान आदि ने नए युवा खिलाड़ियों को उभारने में जो मेहनत की है, वह अब दिखने लगा है। संजू सैमसन, ईशान किशन जैसे युवा खिलाड़ी पंत को चुनौती देते दिख रहे हैं। किसी की भी प्रतिभा के साथ अन्याय नहीं हो, यह ध्यान रखा जाना चाहिए। पंत को बहुत मौके मिले हैं, लेकिन अधिक मौकों पर उनका लापरवाही भरा शॉट चयन टीम पर भारी पड़ा है। कोई खिलाड़ी किस तरीके से आउट हो रहा है, यह काफी मायने रखता है। अगर वह बहुतों बार शानदार गेंदबाजी पर आउट हो रहा है तो उसे जरूर मौके मिलने चाहिए। लेकिन बार बार शॉट चयन का गलत तरीका सवाल तो खड़े करेगा ही।
प्रतिभा होना ही काफी नहीं होता है, उसे डिलीवर करना बड़ी चुनौती है। प्रतिभा कर्नाटक के रोबिन उथप्पा में भी शानदार थी, लेकिन वह सही मंच और मिले मौक़ों पर अपनी प्रतिभा को बेहतर तरीके से डिलीवर नहीं कर पाए। ऐसे कई खिलाड़ी हैं। टेस्ट क्रिकेट की बात करें तो एकदिवसीय और टी-20 के शानदार खिलाड़ी रोहित शर्मा आज तक टेस्ट टीम में अपने स्थान के लिए जूझ रहे हैं। उनमें प्रतिभा कितनी है, यह बताने की बात नहीं है। लेकिन टेस्ट क्रिकेट में उनकी यह प्रतिभा अभी तक उस रूप में डिलीवर नहीं हो पाई है। वह बाहर रहें टीम से, यह उचित ही था। राहुल द्रविड़, जो लीजेंड हैं, उनकी प्रारंभिक राह भी आसान नहीं रही थी। उनमें प्रतिभा भी थी और जुनून भी। बार बार असफल हुए लेकिन उनका जुनून कम नहीं हुआ। वह असफल होते, टीम से बाहर होते, फिर खुद को साबित करते, फिर टीम के अंदर होते। और आज वो लीजेंड हैं।
प्रोफेशनल रवैया
ऐसा ही पंत के साथ होना चाहिए। इस स्तर पर पहुँचने वाला हर खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर का होता है। प्रोफेशनल गेम में प्रोफेशनल रवैया ही कायदे से उचित भी है। ऐसे में खिलाड़ियों के बीच स्वस्थ्य प्रतियोगिता रहेगी, खिलाड़ी खुद ब खुद जिम्मेदार होगें। क्रिकेट में शानदार टीम रही ऑस्ट्रेलिया इसका उदाहरण है। ऐसा कहना कि इस तरीके से खिलाड़ियों में असुरक्षा की भावना रहेगी और वो उम्दा प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे, इस खेल के प्रोफेशनल होने पर प्रश्न खड़े करेगा। जो अच्छा करेगा वह टीम में जगह पाएगा, ऐसी सोच हर प्रतिभा के साथ न्याय करेगी।
किसी खिलाड़ी में बेलौसपन का होना उसका 'एक्स फैक्टर' जरूर हो सकता है लेकिन यह उसकी ताकत नहीं हो सकती है। अब जब खेल पहले की तुलना में और ज्यादा प्रतिस्पर्धी और प्रोफेशनल हो चुका है तब खिलाड़ियों को हर परिस्थिति में खुद को ढालने की चुनौती लेनी ही होगी। जरूरत पड़ने पर बगैर किसी बड़े शॉट के भी रन बनाने का हुनर विकसित करना होगा। पंत अबतक इसपर खरे नहीं उतरे हैं। यह टीम हित और खुद पंत के हित में ही होगा अगर टीम में बने रहने के लिए सिर्फ प्रदर्शन को ही मुख्य आधार माना जाय। पंत इससे और निखरेंगे ही। अवसर के खुले रहने पर अन्य युवाओं में भी प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ेगी। ऐसा करना सभी के प्रतिभा के साथ न्याय करना भी होगा।