महेंद्र सिंह धोनी : एक ब्रांड
महेंद्र सिंह धोनी एक ब्रांड हैं। इस ब्रांड के बनने के पीछे एक मिडिल क्लास व्यक्ति के अपने सपनों के लक्ष्य के लिए कभी न थकने और खुद को पूर्ण समर्पित कर देने की कहानी है। एक लंबे बालों वाला लड़का एक छोटे से शहर से भारतीय क्रिकेट टीम में आता है और निचले क्रम में बल्लेबाजी करता है। विकेट के पीछे रहता है और खामोशी से चीजों को समझता जाता है। एक दिन उसे नंबर तीन के पोजिशन पर भेजा जाता है वो भी पाकिस्तानी टीम के खिलाफ, और ये बंदा क्रिकेट के कथित शास्त्रीय कौशल के बगैर ग्राउंड में 'दीवाली' मनवा डालता है। हर तरफ बस धोनी, धोनी की गूंज सुनाई देती है। जब धोनी से पूछा जाता है कि आपने इतनी विस्फोटक बल्लेबाजी कैसी की तो वो कहते हैं कि गेंदे मेरे एरिये में गिरेंगी तो मैं मारूंगा ही। धोनी ने अपना यही वसूल अपनी कप्तानी सहित पूरे क्रिकेट में बनाए रखा। चाहे मामला पहली बार हो रहे टी-20 विश्वकप में कप्तानी मिलने के दायित्व का हो या फिर बाद में एकदिवसीय और टेस्ट मैचों में।
कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धोनी
धोनी क्रिकेट में पले, बढ़े और उसे जिये फिर भी खेल में प्रोफेशनल रहे। ना जीत में अतिरेक उत्साह का प्रदर्शन ना हार में ऐसा कि लगे मनोबल ही टूट गया। यह 'सम स्थिति' ही धोनी को 'कैप्टन कूल' का खिताब दे गया जिस 'कूलनेस' का कायल पूरा क्रिकेट बिरादरी रहा है। खेल के तनाव भरे क्षण में कैसे खेल की गरिमा बनी रहे, इस फन के भी माहिर रहे हैं माही। याद कीजिए कोई सा भी मैच जिसमें कांटों की टक्कर रहा हो और धोनी ने अपना आपा खोया हो। आपको ऐसा कुछ याद नहीं आएगा। आपको याद आएगी तो धोनी की जीवटता, उनका इन तनाव भरे क्षणों में मिली हार या जीत दोनों में औदात्य सी गरिमा। इतना ही नहीं बल्कि जब-जब उन्हें लगा कि खेल को आगे बढ़ने के लिए नए खिलाड़ियों की जरूरत है तब-तब उन्होंने खुद को पीछे किया भले इस प्रतिस्पर्धी खेल में व्यवसायिक पहलू अहम हो गए हों। पहले टेस्ट मैचों की कप्तानी फिर एकदिवसीय मैचों की बागडोर खुद से छोड़कर टीम में बने रहना माही की क्रिकेट के प्रति सही मायने में प्रतिबद्धता ही थी।
धोनी के बचपन के दोस्त ने बताया, माही ने स्वतंत्रता दिवस पर क्यों लिया संन्यास का फैसला
महेंद्र सिंह धोनी और विवाद
ऐसा नहीं है कि महेंद्र सिंह धोनी को लेकर थोड़े बहुत विवाद नहीं हुए हैं। बड़े और सीनियर खिलाड़ियों से संबंध को लेकर बातें भी हुईं हैं। टीम में सीनियर खिलाड़ियों की जगह को लेकर लिए गए फैसलों पर भी धोनी की आलोचनाएं हुई हैं। लेकिन परिणाम में धोनी चैंपियन रहे हैं। वैसे भी इन तथाकथित विवादों को किसी खिलाड़ी ने भी तूल नहीं दिया है। इसके इतर भी जब कहीं किसी ने भी धोनी की आलोचना की है, वे चुप ही रहे हैं। बस सब सुन भर लिया ठीक जैसे विश्वकप में न्यूजीलैंड के हाथों सेमीफाइनल में भारत की हार का ठीकरा बहुत से लोगों ने धोनी के सर फोड़ा था और धोनी सब सह गए थे। किसी ने यह नहीं देखा कि टर्न होती पिच पर जब सब बल्लेबाज आ और जा रहे थे तब धोनी ही थे जो एक छोर को संभाले हुए थे। चंद इंच के फासले से रनआउट होने के बाद पवैलियन लौटते हुए उनकी आंखों में पहली बार आंसू थे। आज बस फर्क इतना है कि आंसू धोनी के चाहने वालों की आंखों में हैं जब वे पवैलियन से ही लौट रहे हैं।