ऑटो बायोग्राफी में सुरेश रैना का खुलासा-
जब ग्रेग चैपल को लाया गया तो बीसीसीआई की नजरें 2007 के वर्ल्ड कप पर थी जो वेस्टइंडीज में होने वाला था। लेकिन जब भारतीय टीम वेस्टइंडीज में पहले ही राउंड में बाहर हो गई तो भारतीय क्रिकेट के नीति नियंता ओं ने चैपल को विदाई देने में ही अपनी भलाई समझी। चैपल मई 2005 में आए थे और उनकी विदाई के समय तक भारतीय टीम में अनिश्चितता का माहौल था। सीनियर और जूनियर खिलाड़ियों के बीच बहुत अच्छे संबंध शायद नहीं थे। उस समय सुरेश रैना एक युवा खिलाड़ी थे और एक ऐसे क्रिकेटर थे जिन्होंने जिसने उस दौर में अपने आप को टीम में फिट किया। रैना ने हाल ही में अपनी ऑटो बायोग्राफी रिलीज की है जिसका नाम बिलीव है।
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चैपल का नजरिया टीम के लिए गलत नहीं था- रैना
इस पुस्तक में बात करते हुए रैना ने बताया है कि उनको चैपल से कभी भी कोई दिक्कत नहीं थी और चैपल हमेशा भारतीय क्रिकेट के लिए ही काम कर रहे थे। वे किसी खिलाड़ी को खास तवज्जो नहीं देते थे और सभी को एक मानते थे, साथ ही उनका नजरिया केवल और केवल जीतने का प्रयास करना था। सुरेश रैना लिखते हैं, "चैपल का तरीका नतीजे पर फोकस था और वह हमेशा कोशिश करते थे कि हम केवल अपने लक्ष्य की ओर ही टारगेट करें चाहे कुछ भी हो जाए। इस तरह का उनका रवैया मुझे पसंद आया और जब मैंने अपने करियर की शुरुआत की तो मैं उनसे निर्देश लेने में खुश रहता था।" कई भारतीय पूर्व क्रिकेटर के विपरीत सुरेश रैना ने कहा है कि चैपल का नजरिया भारतीय क्रिकेट के लिए कभी गलत नहीं था।
'खिलाड़ियों से तमीज से बात करनी चाहिए थी'
हालांकि रैना भी मानते हैं कि ग्रेग चैपल को भारत के सीनियर खिलाड़ियों से तमीज से बात करनी चाहिए थी। वे लिखते हैं, "भारतीय टीम के सीनियर खिलाड़ी काफी अलग थे और उनके साथ समीकरण भी अलग थे। मुझे लगता है कि चैपल को शायद सीनियर खिलाड़ियों के साथ थोड़े अलग तरीके से पेश आना चाहिए था लेकिन वे उनसे ऐसे ही पेश आते थे जैसे कि हम युवाओं से पेश आते थे। जहां तक मेरा देखना है तो चैपल गलत नहीं थे क्योंकि उनका विचार था कि जीत के लिए टीम को एक पैर पर खड़े रहना चाहिए और किसी भी खिलाड़ी को विशेष तवज्जो नहीं देनी चाहिए। चैपल तब काफी गुस्सा होते थे जब हम हार जाते थे लेकिन यह गुस्सा सीनियर खिलाड़ियों पर ही ज्यादा फूटत था। तो मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि वह सचिन और दादा जैसे अनुभवी खिलाड़ियों के साथ थोड़ा और अच्छा बर्ताव कर सकते थे।" रैना मानते हैं कि उस समय ड्रेसिंग रूम का माहौल ठीक नहीं था और एक टेंशन सी रहती थी क्योंकि खिलाड़ी एक दूसरे के साथ ज्यादा घुल मिल नहीं पा रहे थे।