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मेरे टीम में होने की वजह लोग धोनी से दोस्ती को मान लेते थे, तब बहुत तकलीफ होती थी- सुरेश रैना

नई दिल्लीः जब सुरेश रैना ने महेंद्र सिंह धोनी के साथ अपने संन्यास की घोषणा की तो कई लोगों के लिए यह एक भावुक फैसला प्रतीत हुआ होगा। लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में संन्यास लेने के फैसले किसी भावना की प्रधानता के तहत नहीं लिए जाते बल्कि काफी सोच विचार कर और अनेक चीजों से तटस्थ रहकर किए जाते हैं। ऐसे फैसले अमूमन पूरी तरह से व्यक्तिगत होते हैं जहां खिलाड़ी तय करता है कि वह अपने देश के लिए आगे खेल पाएगा या फिर नहीं, या आगे उसको खेलने के मौके मिलने की संभावनाएं कितनी है या कितनी नहीं। हालांकि धोनी के साथ सुरेश रैना के संबंध बहुत गहरी दोस्ती वाले हैं। दोनों चेन्नई सुपर किंग्स टीम की ओर से एक साथ खेलते हैं।

हमेशा खुशनुमा नहीं रहा धोनी के साथ मेरा सफर- रैना

हमेशा खुशनुमा नहीं रहा धोनी के साथ मेरा सफर- रैना

क्रिकेट में ऐसा कम देखा जाता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चोटी के दो खिलाड़ी आपस में इतनी अच्छी बॉन्डिंग शेयर करते हो लेकिन भारतीय क्रिकेट में सुरेश रैना और धोनी के बीच दोस्ती की यह मिसाल अपने आप में अद्भुत है और शायद आगे भी रहेगी। रैना ने हाल ही में रिलीज हुई अपनी ऑटो बायोग्राफी 'बिलीव' के जरिए धोनी के साथ अपने संबंधों पर कुछ अहम बातें की है। यह ऑटो बायोग्राफी वरिष्ठ खेल पत्रकार भरत सुदर्शन ने लिखी है। रैना ने लिखा है कि धोनी यह निश्चित तौर पर जानते थे कि उनसे बेस्ट प्रदर्शन कैसे करवाना है लेकिन ऐसा नहीं था कि उन दोनों के बीच की मजबूत दोस्ती का यह सफर हमेशा खुशनुमा रहा। कई बार ऐसी चीजें हुई जब रैना के टीम में बने रहने की वजह भी उनकी धोनी के साथ दोस्ती को मान लिया गया।

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'बहुत तकलीफ होती थी जब लोग ऐसा मान लेते थे..'

'बहुत तकलीफ होती थी जब लोग ऐसा मान लेते थे..'

रैना मानते हैं कि इस बात ने उनको बहुत आहत भी किया। रैना लिखते हैं धोनी जानते थे कि मुझसे किस तरीके से बेस्ट परफॉर्मेंस कराई जाए और मैं उन पर विश्वास करता था। लेकिन जब लोग भारतीय टीम में मेरी जगह की वजह धोनी की दोस्ती के कारण मानते थे तो यह बहुत ही ज्यादा तकलीफ देता था। मैंने भारतीय टीम में अपना स्थान बनाए रखने के लिए बहुत ही कठिन मेहनत की है, जैसी कि मैंने धोनी का विश्वास और इज्जत जीतने के लिए की।"

अगर इन दो दिग्गज बल्लेबाजों के सफर की बात करें तो धोनी का डेब्यू पहले हुआ था जो दिसंबर 23 दिसंबर 2004 को था और यह मुकाबला बांग्लादेश के खिलाफ एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच था जहां पर वे 0 रन पर आउट हो गए थे। इसके 7 महीने बाद भारतीय क्रिकेट में रैना का भी आगमन हो गया जब जुलाई जब 30 जुलाई 2005 को उन्होंने दांबुला में श्रीलंका के खिलाफ एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मुकाबला खेला।

रैना-धोनी की संक्षिप्त क्रिकेट जुगलबंदी-

रैना-धोनी की संक्षिप्त क्रिकेट जुगलबंदी-

इसके बाद की कहानी भारतीय क्रिकेट में सुनहरा इतिहास है क्योंकि धोनी और रैना ने मिलकर एक मजबूत मध्यक्रम को बनाया जिसमें युवराज सिंह जैसे दिग्गज की मौजूदगी चार चांद लगाती थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि 2006 में सुरेश रैना को घुटने में चोट लगी और उनको सर्जरी करवानी पड़ी जिसके चलते वे 6 महीने क्रिकेट से बाहर रहे और 2007 का T20 विश्व कप भी नहीं खेल पाए। यह वही वर्ल्ड कप था जिसने भारतीय क्रिकेट को आगे बढ़ाने में मील के पत्थर का काम किया। धोनी की कमान में खेली गई वो प्रतियोगिता भारत ने जीती थी। रैना फिट होकर फिर से भारतीय टीम में आए और उन्होंने 2009 में हुआ T20 वर्ल्ड कप खेला और वे T20 इंटरनेशनल में सबसे पहले भारतीय शतक वीर भी बने।

सुरेश रैना पहले भारतीय बल्लेबाज हैं जिन्होंने क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में भारत के लिए शतक लगाया। धोनी ,रैना की यह साझेदारी 2011 वर्ल्ड कप में भी जारी रही उसके बाद 2013 चैंपियंस ट्रॉफी भी इन दोनों दोस्तों ने एक फतेह की। समय के साथ धोनी व रैना की जोड़ी रुपहले पर्दे की जय-वीरू के समान हो गई। इन दोनों खिलाड़ियों ने साथ में एक यादगार दौर साझा किया और एक साथ ही 15 अगस्त 2020 को अपने संन्यास की घोषणा कर दी।

Story first published: Friday, June 11, 2021, 15:56 [IST]
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