आधी हो जायेगी बचे हुए मैचों की व्यूअरशिप
भारत ने लीग स्टेज के बाकी 2 मैचों में शानदार प्रदर्शन कर अपने आपको अच्छा मौका दिया था लेकिन न्यूजीलैंड के 4 मैचों में जीत हासिल करते ही वह रेस से बाहर हो गया। इसके चलते भारत और नामिबिया के बीच खेला गया आखिरी मैच पूरी तरह से डेड रबर बन गया था और इसका असर उसकी व्यूअरशिप पर भी पड़ा। आईसीसी टी20 विश्वकप में सबसे ज्यादा व्यूअरशिप की बात करें तो हमेशा भारतीय टीम के मैचों में होती है जिसका सबसे बड़ा कारण है भारत की आबादी और लोगों के बीच क्रिकेट का क्रेज।
आईसीसी टी20 विश्वकप में हिस्सा ले रहे सभी 12 देशों की कुल आबादी को जोड़ें तो टारगेट व्यूअरशिप करीब 199 करोड़ पहुंचती है, जिसमें से 135 करोड़ लोग सिर्फ भारत से होते हैं। ऐसे में भारतीय टीम के मैचों की व्यूअरशिप ज्यादा होना लाजमी लगता है। हालांकि भारत के बाहर हो जाने के बाद नामिबिया के साथ खेले गये उसके आखिरी लीग मैच की व्यूअरशिप में 40 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई। ऐसे में सेमीफाइनल में भारत का न होना इसकी व्यूअरशिप पर सीधे असर डालेगा जिसमें 50 से 60 प्रतिशत तक गिरावट होने की आशंका है और ऐसा होने का मतलब है कि एडवरटाइजिंग कंपनियों को बड़ा घाटा होने वाला है।
व्यूअरशिप से कैसे पड़ता है फर्क
अब आपके मन में यह सवाल आ सकता है कि व्यूअरशिप के कम होने से सिर्फ उसके देखने वालों की संख्या में कमी हुई है इसका पैसों से संबंध कैसे है। तो आइये एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। दरअसल व्यूअरशिप का असर सीधे उस मैच में बेचे जाने वाले एडवर्टाइजिंग स्लॉटस की कीमत से पड़ता है। उदाहरण के लिये इस टी20 विश्वकप में खेले गये भारत और पाकिस्तान के मैच की व्यूअरशिप ने रिकॉर्ड तोड़ा है और क्रिकेट इतिहास में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला मैच बना। आप इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि इस मैच के दौरान एडवर्टाइजिंग के लिये बेचा गया 10 सेकेंड का स्लॉट करीब 25-30 लाख रुपये का बेचा गया था। वहीं भारत के बचे हुए अन्य मैचों में यह स्लाट करीब 10 लाख रुपये का था।
ऐसे में भारत के बाहर हो जाने के बाद इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के बीच खेले जाने वाले सेमीफाइनल मैच का व्यूअरशिप टारगेट करीब 7 करोड़ ही रह जायेगा, तो वहीं पर पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले जाने वाले दूसरे सेमीफाइनल की व्यूअरशिप 25 करोड़ रह जायेगी। जबकि भारत और पाकिस्तान के बीच खेले गये मैच की टारगेट व्यूअरशिप 157 करोड़ थी और आंकड़ों में यह करीब 167 करोड़ रही। उल्लेखनीय है कि यहां पर हम व्यूअरशिप के आंकडे़ उन देशों की जनसंख्या के आधार पर ले रहे हैं। ऐसे में बचे हुए मैचों में एडवरटाइजिंग स्लॉट की वह कीमत मिलना नामुमकिन है जिसकी निवेशकर्ताओं को उम्मीद थी।
भारत के बाहर होने से किसे होगा नुकसान
यहां पर अगला सवाल यह है कि भारत के सेमीफाइनल में न पहुंच पाने से किसे सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। दरअसल आईसीसी ने 2015 से 2023 तक होने वाले सभी टूर्नामेंट के लिये पहले ही अपने ब्रॉडकास्टिंग और डिजिटल राइटस की नीलामी कर दी थी, जो कि स्टार स्पोर्टस के पास है जिसे उसने करीब 14.8 हजार करोड़ रुपये में खरीदे थे, जिसमें 2015, 2019 और 2023 का वनडे विश्वकप, 2017 की चैम्पियन्स ट्रॉफी, आईसीसी विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप फाइनल और 2016, 2020 और 2021 का टी20 विश्वकप शामिल है। ऐसे में आईसीसी को भारत के बाहर होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है।
वहीं स्टार इंडिया को भी इससे कुछ खास नुकसान नहीं होने वाला है क्योंकि उसने टूर्नामेंट की शुरुआत में ही अपने मैचों के एडवर्टाइजिंग स्लॉट बेच दिये थे। भारतीय खिलाड़ियों की मौजूदा फॉर्म को देखते हुए किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि वो सेमीफाइनल तक नहीं पहुंचेगी, जिसके चलते सेमीफाइनल तक के सभी स्लॉट बिक गये थे, वहीं फाइनल मैच का प्रभाव अलग रहता है तो स्टार इंडिया के लिये उस मैच के भी स्लॉट बिक चुके थे। ऐसे में उसे भी कोई नुकसान नहीं हुआ। हालांकि असल नुकसान उन कंपनियों को हुआ जो इन स्लॉट को खरीदकर रिजर्व में रखती है और बाद में अच्छा पैसा कमाती हैं।
हर मैच में हो सकता 300 से 400 करोड़ का नुकसान
इन बाइंग एजेंसियों ने नॉकआउट मैचों के अपने कुल स्लॉट के करीब 15 से 20 प्रतिशत बचाकर सिर्फ इस उम्मीद से रखा था कि भारतीय टीम के पहुंचने के बाद वह इसे ऊंचे दाम में बेचकर अच्छा पैसा कमायेंगे, हालांकि भारत के बाहर हो जाने के बाद उनका यह सपना टूट गया है। भारत के बाहर हो जाने के बाद बाइंग एजेंसियों के इन प्रीमियम स्लॉट की कीमत में 80 प्रतिशत तक का नुकसान उठाना पड़ेगा, इसका मतलब है कि जिन प्रीमियम स्लॉट्स से कंपनियां भारतीय टीम की मौजूदगी से 200-300 करोड़ तक कमा सकती थी उससे वह सिर्फ 30-50 करोड़ ही कमा पायेगी। वहीं अगर भारतीय टीम फाइनल में पहुंच जाती तो इन स्लॉट्स की कीमत लगभग दोगुनी हो जाती और अब उसकी कीमत औसत से भी कम रहने वाली है। ऐसे में बाइंग कंपनियों को औसतन प्रति मैच 300 से 400 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।