25 जून 1983, लॉर्ड्स का मैदान
फाइनल से पहले टीम मीटिंग हुई। दुनिया की सबसे मजबूत टीम वेस्टइंडीज से मुकाबला करना था। कप्तान कपिल उत्साह में थे। लेकिन टीम के बाकी सदस्य दबाव में थे। कपिल ने कहा कि हम वेस्टइंडीज को तीन महीने के अंदर दो बार हरा चुके हैं। हमने पहली बार मार्च 1983 में इस ताकवर टीम को उसके घर में हराया था। दूसरी बार वर्ल्डकप के पहले मैच में हमने ये कारनामा फिर कर दिया। लीग मुकाबलों में एक बारे हारे हैं तो क्या हुआ, हम फाइनल में भी इनको हरा सकते हैं। हम लोग फाइनल तक अपने खेल की बदौलत पहुंचे हैं। किसी ने भी भारतीय टीम को तवज्जौ नहीं दी थी। फिर भी हम फाइनल खेल रहे हैं। यही हमारी ताकत है। हम फाइनल जीत कर इतिहास बना सकते हैं। बस, सभी को हौसला रखना होगा। कपिल के जोश और तार्किक बातों से टीम के मनोबल पर सकारात्मक असर पड़ा।
क्या हुआ मैदान में ?
जब भारतीय टीम 183 के स्कोर पर आउट हो गयी तो एक बार फिर निराश ने घेर लिया। लंच ब्रेक में कपिल ने दोबारा मोर्चा संभाला। उन्होंने सभी खिलाड़ियों की तारीफ की और कहा कि 183 का स्कोर भी कम नहीं है। इससे टीम के सभी सदस्य तनाव मुक्त हो गये। कपिल ने कहा कि 183 के स्कोर की तभी रक्षा हो सकती है जब हम वेस्टइंडीज को 50 ओवर के पहले ऑलआउट कर लें। अगर हम किफायती गेंदबाजी से रन रोकने के चक्कर में रहे और वेस्टइंडीज के कम विकेट गिरे तो 60 ओवर में 184 रन बन ही जाएंगे। इस लिए हर हाल में हमें विकेट लेने के लिए आक्रामक गेंदबाजी करनी है। हम पूरे मैच में स्लिप के साथ बॉलिंग करेंगे। ऐसे में विकेट मिलेगी, या फिर मार पड़ेगी। चाहे कितनी भी मार पड़े, ध्यान विकेट लेने पर रहे। वेस्टइंडीज की टीम जवाबी पारी के लिए मैदान पर उतरी। भारतीय गेंदबाजों ने रणनीति के हिसाब से बॉलिंग शुरू। मैच का टर्निंग प्वाइंट था विव रिडर्ड्स का विकेट। कपिल का गुरुमंत्र काम आया। मदन लाल के एक ओवर में रिडर्ड्स ने लगातार तीन चौके जड़ दिये। एक बार फिर बाउंड्री मारने के चक्कर में रिचर्ड्स गेंद को हवा में खेल बैठे। अब कप्तान कपिल ने अपने कहे के मुताबिक दिखाया कि हौसला हो तो नामुमकिन भी मुमकिन है। कपिल पीछे की तरफ करीब 22 गज दौड़े और एक कठिन कैच हाथों में कैद कर लिया। इस कैच को देख कर सभी लोग हक्केबक्के रह गये। अब यहां से मैच भारत की तरफ मुड़ गया। जब सातवें विकेट के रूप में मार्शल और डुजॉन की जोड़ी जमने लगी तो मोहिंदर अमरनाथ ने दोनों कि विकेट लेकर भारत की जीत पक्की कर दी।
जीत के बाद शैम्पेन की बोतल
जब भारत की टीम फाइनल में पहुंची थी तब लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड के मुलाजिम भी भारत को भाव नहीं दे रहे थे। उन्होंने मान लिया था कि वेस्टइंडीज की टीम तीसरी बार विश्वकप जीत रही है। इस लिए उन्होंने सेलिब्रेशन के लिए शैम्पेन की सभी बोतलें वेस्टइंडीज के ड्रेसिंग रूम में रखे फ्रीज में रख दीं थीं। जब भारत ने ये मुकाबला जीत लिया तो कपिल ने अपने साथियों को बताया कि वे शैम्पेन की बोतल साथ लाये हैं, लेकिन एक बोतल से क्या होगा ? तब कपिल दौड़ते हुए वेस्टइंडीज के ड्रेसिंग रूम के पास पहुंचे। टीम के कप्तान क्लाइव लॉयड दरवाजे पर ही मिल गये। कपिल ने कहा कि वे शैम्पेन की बोतलें लेने आये हैं। उदास लॉयड ने सिल हिला कर सहमति दे दी। सारे वेस्टइंडियन खिलाड़ी हार के सदमे में खामोश खड़े थे। किसी को शैम्पेन की जरूरत भी नहीं थी। कपिल ने फ्रीज खोला। एक बार में जितनी बोतलें उठा सकते थे, लिया और वापस लौटे। जब तक सभी बोतलें खत्म नहीं हो गय़ीं वे ढोते रहे। फिर शैम्पेन की बारिश में सब भिगते रहे। बाद में कपिल ने बताया था कि वो शैम्पेन की एक बोतल इस लिए लाये थे कि जश्न तो हर हाल में मनाएंगे। अगर हार भी जाते तो फाइनल में पहुंचने का जश्न मनाते। फाइनल खेलना भी भारत के लिए उस समय एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।