नई दिल्ली। भारत और इंग्लैंड के बीच खेले गए पहले टेस्ट मैच में सबकुछ अभूतपूर्व था, टेस्ट मैच का रोमांच अपने चरम पर था। गेंद और बल्ले के बीच का मुकाबले में जीत किस करवट जाएगी यह आखिरी गेंद तक तय नहीं था। बर्मिंघम के इस पिच पर घास भी थी और विकेट ज्यादा सूखा भी नहीं था। मैदान के इस समीकरण के चलते यह मैच इतने दिन तक नहीं चला बल्कि इसके पीछे कुछ और ही कारण था,कारण गेंद थी और हम आपको गेंद बनाने वाली की कहानी बता रहे हैं।
इंग्लैंड में ड्यूक्स पसंदी की जाती है,ऑस्ट्रेलिया में कॉकबूरा और इंडिया में एसजी टेस्ट पसंद किया जाता है। बर्मिंघम में जो गेंद इस्तेमाल की गई जिस गेंद से अश्वविन ने कुक को दोनों पारी में आउट किया जिस गेंद से आदिल राशिद ने विकेट निकाले वो गेंद इस भारतीय के हाथ की ही बनी है।
जी हां , हम बात कर रहे हैं दिलीप जजोडिया की।
दिलीप जजोडिया 73 साल के हैं। 1962 में इंग्लैंड में खुद के लिए जीवन की नई बुलंदिया छूने के लिए वह भारत छोड़कर चले गए। वहां उन्होंने अपनी मॉरेंट कंपनी के लिए क्रिकेट के सामान का निर्माण किया। ड्यूक्स ब्रांड को खरीदने का अवसर आया तो उन्होंने मौका नहीं छोड़ा।जजोडिया से मिलना कोई कठिन काम नहीं है ।आप जब चाहें उनसे जाकर मिल सकते हैं।
दुनिया में एक प्रमुख क्रिकेट-बॉल निर्माता की पहचान करने वाला कोई बोर्ड नहीं है, कोई रिसेप्शन डेस्क नहीं है लेकिन जजोडिया की नजरें पैनी है वह गेंद को पहचान लेते हैं।
पहले पैड के लिए मशहूर और अब बॉलमैन:
दिलीप जब इंग्लैंड आए तो उनकी कंपनी के लेग-गार्ड और पैड में काफी सुधार हुआ। उनके बनाए हुए लेग गार्ड से सुनील गावस्कर खेले फिर सचिन तेंदुलकर ने खेला।दिलीप अब इंग्लैंड में बॉलमैन बन चुके हैं उनके द्वारा चुनी गई 12 गेंदों से ही भारत को टेस्ट मैच खेलना है।
तीन घंटे में बनती है एक गेंद:
दिलीप बताते हैं कि एक सिंगल बॉल बनाने में साढ़े तीन घंटे लगते हैं। और फिर, जब मैं इसे देखता हूं, महसूस करता हूं, सीम की सिलाई देखता हूं, मुझे पता है कि किस कारीगर का काम है गेंद की सिलाई भी हस्तकला की तरह हैं।
"लोग बल्ले के लिए हजार पाउंड का भुगतान करेंगे, लेकिन वे पांच पाउंड के लिए गेंद चाहते हैं। मैं किसी को पाकिस्तान या भारत में 7 पाउंड के लिए गेंद बनाने और इसे 10 के लिए बेचने के लिए भुगतान कर सकता हूं।