पिंक बनाम रेड बॉल-
बीसीसीआई का पूरा फोकस इस बात पर है कि यह गुलाबी गेंद किसी भी स्थिति में लाल गेंद जैसा ही बर्ताव करे। टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए एसजी कंपनी के निदेशक आनंद ने कहा, 'हमने खिलाड़ियों से फीडबैक लिया है। हमारी कोशिश पिंक बॉल को भी रेड बॉल जैसा ही बर्ताव कराने पर है।' पिंक बॉल की सबसे बड़ी समस्या उसके रंग और शेप को लेकर है जो बरकरार रखना मुश्किल साबित होता है जिसके चलते रिवर्स स्विंग कराना दूर की कौड़ी साबित होती है। कंपनी के अनुसार लाल गेंद का रंग गहरा होता है जिसके चलते खिलाड़ियों को गेंद चमकाने और पूरे दिन स्विंग हासिल करने में मदद मिलती है। पिंक बॉल पहले ही चमकीले रंग के में आती है। इस बात को ठीक करने पर हम काम कर रहे हैं। बता दें कि जब गेंद की ऊपरी चमकीली परत टूटने लगती है तब टीमें एक सतह से गेंद को चमकाने का प्रयास करती हैं और दूसरी सतह को उसका रंग उड़ने देती हैं। जो टीम जितनी बढ़िया गेंद बनाती है, उसको उतनी अच्छी रिवर्स स्विंग हासिल होती है।
मैदान की भी होती है अहम भूमिका-
यह सबने देखा है कि दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पिछली सीरीज में भारतीय टीम प्रबंधन ने भारतीय पिचों पर भी अपनी आक्रामक गति से अटैक करते हुए रिवर्स स्विंग हासिल की है जिसने पेसर्स के शानदार प्रदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ईडन गार्डन की पिच पर सामान्य से अधिक घास होने की संभावना है और ओस के साथ शाम को कुछ प्रभाव पड़ने की संभावना है। जिसके चलते स्पिनरों की मुख्य भूमिका निभाने की उम्मीद नहीं होगी। अगले हफ्ते तक गेंदों को बीसीसीआई तक पहुंचा दिया जाएगा। इसके बाद बोर्ड टेस्ट विशेषज्ञों - जैसे कि मोहम्मद शमी, उमेश यादव, ईशांत शर्मा, चेतेश्वर पुजारा, को गेंदों का इस्तेमाल करने के लिए पर्याप्त समय देगा। भारतीय टीम ने पिछले साल लाल एसजी गेंदों की गुणवत्ता को लेकर शिकायत की थी। हालांकि, आनंद मानते हैं कि उन्होंने इस मुद्दे को सुलझा लिया है। आनंद ने दावा किया, "हमने गेंदों को ज्यादा हार्ड बना दिया है और भारतीय टीम ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। हमने गुलाबी गेंदों में भी यही कठोरता को दोहराने की कोशिश की है।"
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अभी तक खराब रहा है भारत में गुलाबी गेंद का प्रदर्शन-
जब बीसीसीआई ने 2016 में दलीप ट्रॉफी में गुलाबी गेंदों का उपयोग करने का फैसला किया था, तो नतीजे बहुत उत्साहजनक नहीं थे। गुलाबी गेंद से खेलने वाली भारतीय टीम के एक सदस्य ने टीओआई को बताया, "गेंद ने रंग बहुत खो दिया था। इसे पकड़ना काफी मुश्किल हो रहा था। खासकर शाम ढलने के बाद स्पिनरों ने इसे 30 ओवरों के बाद बहुत नरम पाया। उनके लिए गेंद से उछाल पाना काफी मुश्किल था।" आनंद का दावा है कि एसजी ने दो साल तक गुलाबी गेंदों के व्यवहार का अध्ययन किया है और समय के साथ उसने गेंदों में काफी सुधार कर लिया है। उन्होंने कहा, "मेजबान देशों में उपलब्ध परिस्थितियों के अनुसार हर ब्रांड की अपनी ताकत और कमजोरी होती है। हमने गेंदों पर लगने वाले पॉलिस और कोटिंग की मात्रा को संतुलित करने की कोशिश की है।"