युवराज सिंह
युवी निश्चित तौर पर वर्ल्ड कप के हीरो थे। युवराज सिंह भारत के लिए 2011 वर्ल्ड कप के अकेले दम पर मैच जिताने वाले विजेता के तौर पर उभर कर सामने आए। वर्ल्ड कप से पहले युवराज का फॉर्म कुछ खास नहीं था क्योंकि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में 5 मैच खेलकर केवल 18.20 की औसत से 91 रन बनाए थे लेकिन जब बात लाइफ टाइम का परफॉर्मेंस करने की आई तो बाएं हाथ का यह बल्लेबाज किसी शेर की तरह दहाड़ा। उनको बांग्लादेश के खिलाफ बैटिंग करने की जरूरत नहीं पड़ी लेकिन उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ 77 गेंदों पर 58 रन बनाए। इसके बाद उन्होंने आयरलैंड और नीदरलैंड के खिलाफ लगातार अर्धशतक लगाए और भारत को उसकी आसान जीत दिलाई।
युवराज का अगला मैच काफी प्रभावशाली रहा जो कि वेस्टइंडीज के खिलाफ था जिसमें युवी ने अपना पहला विश्व कप शतक जमाया और भारत को 268 रन बनाने का मौका दिया। उस मैच में भारत की हालत ठीक नहीं थी और एक समय 2 विकेट पर 51 रन बने थे। भारत में इसके बाद आस्ट्रेलिया को क्वार्टर फाइनल में खेला जिसमें 261 रनों को चेज करते हुए टीम इंडिया के 5 विकेट 187 रनों पर गिर चुके थे। तब युवराज ने रैना के साथ 74 रनों की नाबाद साझेदारी की जिसमें ऑलराउंडर ने 65 गेंदों पर 70 रन बनाए और 8 चौके लगाए। आपको बता दें वे गेंदबाजी से भी काफी बढ़िया रहे थे और उन्होंने टूर्नामेंट में 15 विकेट चटकाए थे जो कि संयुक्त तौर पर तीसरे सर्वाधिक विकेट थे।
सचिन तेंदुलकर-
सचिन तेंदुलकर का विश्व कप जीतने का सपना आखिरकार 23 साल के कैरियर और 5 विश्वकप के बाद पूरा हो गया। उन्होंने 1996 और 2003 में क्रमशः 523 और 673 रन वर्ल्ड कप में बनाए थे लेकिन उनकी टीम को जीत नहीं मिली। 1996 में भारत श्रीलंका के खिलाफ सेमीफाइनल में हारा था और 2003 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हमको हार मिली। 2011 विश्व कप में सचिन तेंदुलकर ने 482 रन बनाए और वे श्रीलंका के तिलकरत्ने दिलशान के बाद प्रतियोगिता में सर्वाधिक रन बनाने वाले दूसरे बल्लेबाज थे। इतना ही नहीं उस समय भारत को केवल साउथ अफ्रीका ने हराया था और सचिन ने उस मुकाबले में भी शतक लगाया था जो कि उनका काफी बढ़िया मनोरंजक अंदाज रहा था। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ क्वार्टर फाइनल मुकाबले में भी वीरेंद्र सहवाग के साथ अच्छी साझेदारी करते हुए 53 रन बनाए थे। पाकिस्तान के खिलाफ उनके 85 रन काफी बढ़िया मौके पर आए थे।
हालांकि बड़े फाइनल मुकाबले में सचिन सस्ते में आउट हो गए लेकिन इससे फर्क नहीं पड़ा क्योंकि तब गौतम गंभीर और महेंद्र सिंह धोनी जैसे बल्लेबाजों ने काफी नाम कमाया था। बड़ी बात है यह थी कि सचिन अपने करियर में एक बार 50 ओवर का वर्ल्ड कप उठाने का सपना जी सके।
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जहीर खान-
2003 वर्ल्ड कप फाइनल के दौरान जहीर खान ने आस्ट्रेलिया को जो पहला ओवर फेंका था उसको इतना खराब बताया जाता है की कंगारूओं की लय वहीं से बननी शुरू हो गई थी और फिर भारत को 125 रनों की करारी हार मिली। उस मैच के बाद ना सिर्फ जहीर खान ने अपने आपको काफी बदला और एक नए बॉलर के तौर पर तराशा। 2011 वर्ल्ड कप तक आते-आते जहीर भारत के लीडिंग पेस बॉलर बन चुके थे। वे एक ऐसे अनुभवी गेंदबाज थे जो भारत को जल्दी सफलता दिलाते थे और उन्होंने इस वर्ल्ड कप में भी निराश नहीं किया।
विश्व कप 2011 में जहीर खान ने चार मैचों में 3 विकेट लिए और यह सभी अहम मौके थे। विश्व कप में इंग्लैंड के खिलाफ मुकाबले में जहीर खान का योगदान काफी सराहनीय रहा था और इसमें कोई भी शक नहीं है कि इस विश्व कप की में बाएं हाथ का यह तेज गेंदबाज काफी अहम भूमिका में रहा था।
गौतम गंभीर
अब बात करते हैं बाएं हाथ के एक और खिलाड़ी गौतम गंभीर की जिन्होंने फाइनल मुकाबले में मैच विजेता 97 रनों की पारी खेली थी लेकिन कई लोग यह बात भूल जाते हैं कि सचिन तेंदुलकर के बाद गौतम गंभीर भारत की ओर से विश्व कप में सर्वाधिक रन बनाने वाले स्कोरर भी थे। उन्होंने नौ मैच खेलते हुए 393 रन बनाए थे और जब भारत चुनिंदा मौकों पर जल्दी विकेट खो देता था तब गौतम गंभीर काफी काम आते थे। फाइनल मुकाबले से पहले गौतम गंभीर की तीन हाफ सेंचुरी इंग्लैंड, साउथ अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमों के साथ के खिलाफ खेलते हुए आई थी। फाइनल में भी सचिन और सहवाग जब सस्ते में आउट हो गए थे तब गंभीर ने पहले विराट कोहली के साथ 83 रनों की भागीदारी की और फिर महेंद्र सिंह धोनी के साथ शानदार साझेदारी पूरी की। गंभीर 97 रनों पर आउट हो गए थे और महेंद्र सिंह धोनी ने स्टाइल में छक्का लगाकर मैच फिनिश किया था लेकिन गौतम गंभीर की जीनियस पारी के बिना भारत को मैच जीतना इतना आसान नहीं होता।
महेंद्र सिंह धोनी-
बात करते हैं भारत के तत्कालीन कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की जो कपिल देव के बाद भारत के दूसरे कप्तान बने जिन्होंने 50 ओवर के विश्व कप को उठाया। उस दिन से 4 साल पहले भारत ने धोनी की कप्तानी में ही 2007 का वर्ल्ड कप जीता था। धोनी ने भारतीय टीम को वह पल दिया जो 1983 के यादगार अवसर को मैच कर सका। अहम बात यह थी कि धोनी पूरे टूर्नामेंट में संघर्ष करते हुए नजर आए लेकिन फाइनल मुकाबले में उन्होंने खुद को युवराज सिंह से ऊपर भेजा जो कि एक ट्रम्कार्ड साबित हुआ।
प्रतियोगिता में अब तक 1 अर्धशतक भी नहीं लगा सके धोनी की किस्मत ऐसा लगता है जैसे फाइनल मुकाबले के लिए बचा कर रखी गई थी उन्होंने कट, पुल, स्मैश करते हुए अपने ही अंदाज में नाबाद 91 रन बनाए। जहां सचिन तेंदुलकर के जल्दी आउट होने के बाद पूरा देश अपना दिल टूटा हुआ महसूस कर रहा था तो वहीं मैच के अंत में सब को केवल धोनी का छक्का याद रहा जिसके दम पर भारत ने खुद को एक बार फिर से विश्व विजेता बना लिया था। यह धोनी के करियर की सबसे प्रोलिफिक इमेज भी है।