हार की ओर जा रहा था भारत
यह वाक्या देखने को मिला था 1996 के विश्व कप में। 13 मार्च को भारत-श्रीलंका के बीच यह सेमीफाइनल मुकाबला कोलकाता के ईडन गार्डन में हुआ। भारत ने टाॅस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का निर्णय लिया। भारतीय टीम की कमान थी मोहम्मद अजहरुद्दीन के हाथों में। श्रीलंका ने पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत के सामने 8 विकेट पर 252 रनों का लक्ष्य रखा। फैंस को उम्मीदें थीं कि 1983 वर्ल्ड कप का खिताब जीतने वाली भारतीय टीम श्रीलंका को हराएगी, लेकिन सब इसके उलट हुआ। 252 रनों का लक्ष्य करने उतरी भारतीय टीम ने पहला विकेट टीम के 8 स्कोर पर नवजोत सिद्धू के रूप में गिरा। उसके बाद सचिन तेंदुलकर और संजय मांजरेकर ने टीम का स्कोर आगे बढ़ाया, लेकिन जैसे ही सचिन 65 रन बनाकर आउट हुए उसके बाद भारतीय टीम ताश के पत्तों की तरह बिखरने लगी।
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गुस्से में लगा दी थी आग
टीम का स्कोर 120 रन पर 8 विकेट हो गया। ऐसे में दर्शकों को लगा कि अब भारत का यह मैच जीत पाना मुश्किल है। गुस्साए दर्शकों ने स्टेडियम में बवाल करना शुरु कर दिया और मैदान पर बोतलें फेंकना शुरू कर दीं, जिसके कारण तुरंत मैच को रोकना पड़ा। हद तो तब हो गई थी, जब दर्शकों ने स्टेडियम में आग लगा दी। कुछ दर्शकों ने सीटों को आग के हवाले कर दिया। इस घटना के बाद भारतीय क्रिकेट को बदनामी सहनी पड़ी और क्रिकेट जगत में इसकी आलोचना होने लगी।
श्रींलका हुआ था विजयी घोषित
हंगामा ज्यादा बढ़ता देख मैच रेफरी ने खेल को वहां ही रोक दिया और कुछ ही मिनटों में श्रीलंका को विजेता घोषित कर दिया। इसी के साथ भारतीय टीम फाइनल में प्रवेश करने से चूक गई, वहीं श्रीलंका ने फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हराकर पहली बार वर्ल्ड कप का खिताब अपने नाम कर लिया। हार से निराश पूरी भारतीय टीम मैदान पर फूट-फूट कर रोने लगी। दुख विनोद कांबली को भी लगा था क्योंकि उन्होंने उस समय कम उम्र में वर्ल्ड कप खेलने का अपना सपना पूरा किया था। कांबली 10 रनों पर नाबाद थे, उन्हें तभी भी जीत की उम्मीद थी। लेकिन दर्शकों के विवाद ने उनके सपनों पर पानी फेर दिया।
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