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क्रिकेट छोड़ प्रादेशिक सेना की ट्रेनिंग में क्यों गये धोनी ?

नई दिल्ली। क्या महेन्द्र सिंह धोनी ने सेलेक्शन कंट्रोवर्सली से बचने के लिए सेना की ट्रेनिंग का विकल्प चुना था ? क्या सेना के प्रति धोनी का समर्पण इतना गहरा है कि वे खेल से फौरी छुट्टी लेने का फैसला कर लें? पूर्व के अनुभव के आधार कहा जा सकता है कि धोनी के लिए क्रिकेट ही पहली प्राथमिकता रही है। वॉलंटरी कंट्रिब्यूशन के कारण प्रादेशिक सेना में उनकी सक्रियता बहुत कम थी। लेकिन जब उनके संन्यास को लेकर क्रिकेट पंडितों में बहस छिड़ गयी और चयनकर्ता उलझन में पड़ गये तो धोनी ने एक सेफ रास्ता चुना। उन्होंने किसी विवाद से बचने के लिए प्रादेशिक सेना की ट्रेनिंग में जाने फैसला किया। धोनी क्रिकेट से दो महीने के लिए दूर हो गये। ऐसे में धोनी के चयन और संन्यास का मसला ही खत्म हो गया। जब किसी अगली श्रृंखला के लिए चयन का सवाल आएगा तब तक सोचने-समझने के लिए बहुत वक्त मिल जाएगा।

लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में धोनी

लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में धोनी

2011 में क्रिकेट विश्वकप जीतने के बाद उसी साल नवम्बर में धोनी को प्रादेशिक सेना के पैराशूट रेजिमेंट में मानद लेफ्टिनेंट कर्नल बनाया गया था। विश्वविजेता टीम का कप्तान होने के कारण धोनी यूथ अइकॉन बन चुके थे । इस लिए प्रादेशिक सेना में उन्हें ऑनरेरी कमिशंड अफसर का रैंक दिया गया था ताकि अधिक अधिक नौजवान सेना से जुड़ने के लिए प्रेरित हो सकें। धोनी आठ साल से प्रदेशिक सेना में मानद लेफ्टिनेंट कर्नल हैं। इसके पहले उन्होंने कभी भी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच को छोड़ कर सेना की ट्रेनिंग करना मुनासिब नहीं समझा था। 2012 में तो रक्षा मंत्रालय ने धोनी के गैरजिम्मेदाराना रवैये पर नाराजगी भी जाहिर की थी। दरअसल वे संन्यास के विवाद से विचलित थे। धोनी का टीम में चयन हो कि नहीं, इसके लेकर अनिश्चय का माहौल बन गया था। चयनकर्ता धोनी से भविष्य की योजनाओं पर चर्चा करना चाहते थे ताकि उनके लिए विदाई मैच के बारे में सोचा जा सके। लेकिन धोनी इन बातों के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे। उन्हें कुछ वक्त चाहिए था। चयन के लिए खुद को अनुपलब्ध बताने का उन्हें कोई ठोस कारण चाहिए था। इसी मकसद से धोनी ने प्रादेशिक सेना में ट्रेनिंग के लिए अर्जी डाल दी थी जो मंजूर हो गयी। धोनी को मोहलत मिल गयी। वे वेस्टइंडीज दौरे के लिए अनुपलब्ध हो गये। चयनकर्ता भी चयन को लेकर किसी धर्मसंकट से बच गये। धोनी ने ऐसा रास्ता निकला कि सबका सम्मान बच गया।

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रक्षा मंत्रालय नाराज हो चुका है धोनी पर

रक्षा मंत्रालय नाराज हो चुका है धोनी पर

अक्टूबर 2012 में प्रादेशिक सेना की सालाना परेड आयोजित की गयी थी। इस कार्यक्रम में धोनी शामिल नहीं हुए थे। सालाना परेड में प्रादेशिक सेना के सभी सदस्यों का शामिल होना अनिवार्य है। धोनी को एक साल पहले ही मानद लेफ्टिनेंट कर्नल बनाया गया था। धोनी ने सेना के अनुशासन को भंग किया था। उनकी गैरमौजूदगी पर तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटोनी को भी जवाब देना पड़ा था। इससे कुछ समय पहले एयर फोर्स ने ग्रुप कैप्टन सचिन तेंदुलकर और लेफ्टिनेंट कर्नल धोनी को सुखोई विमान में उड़ान भरने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन दोनों क्रिकेटरों ने वायुसेना के इस प्रस्ताव पर कोई ध्यान नहीं दिया। सचिन और धोनी के इस रवैये पर रक्षा मंत्रालय ने नाराजगी जाहिर की थी। यानी धोनी अपने सैन्य कर्तव्यों को लेकर गंभीर नहीं रहे हैं। सचिन को 2010 में मानद ग्रुप कैप्टन का रैंक दिया गया था। वे भी अपना दायित्व नहीं निभा पाते। इसके बाद बहस चल पड़ी कि मशहूर हस्तियों को सेना में ऑनरेरी रैंक दिया जाना चाहिए या नहीं। दूसरी तरफ पूर्व कप्तान कपिल देव, पूर्व केन्द्रीय मंत्री सचिन पायलट और साउथ सिनेमा के सुपर स्टार मोहन लाल ऐसे मानद सैन्य अधिकारी हैं जो नियमित रूप से सालाना परेड में भाग लेते रहे हैं।

क्या है प्रादेशिक सेना ?

क्या है प्रादेशिक सेना ?

टेरिटोरियल आर्मी या प्रादेशिक सेना, सेना की स्वैच्छिक इकाई है। मुख्य सेना की यह दूसरी पंक्ति है। इसका गठन 1949 में हुआ था। सामान्य मजदूर हो या कोई विशिष्ट हस्ती, इसमें कोई सिविलियन शामिल हो सकता है। उसकी उम्र 18 से 35 वर्ष के बीच हो और वह स्वस्थ हो। इन वॉलेंटियर सैनिकों को हर साल कुछ दिनों के लिए सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है। ये आर्मी ट्रेनिंग इस मकसद के लिए दी जाती है ताकि किसी आपातकालीन स्थिति में देशी की रक्षा के लिए इनकी सेवाएं ली जा सकें। ट्रेनिंग के दौरान या किसी आपातकालीन सेवा के समय इन स्वैच्छिक सैनिकों को मानद पद के हिसाब से वेतन और भत्ता दिया जाता है। ट्रेनिंग के बाद ये सैनिक फिर अपने अपने मूल काम पर लौट जाते हैं। ये सैन्य गतिविधियों से जुड़े रहें इस लिए उन्हें हर साल अनिवार्य रूप से आर्मी ट्रेनिंग दी जाती है। युद्ध के समय प्रादेशिक सेना की बड़ी भूमिका होती है। उस समय ये इंडियन आर्मी की सेकेंड लाइन होती है। 1962, 1965 और 1971 के युद्ध में टेरियोरियल आर्मी ने अपना योगदान दिया था। जम्मू कश्मीर में आज भी यह अपनी उपयोगिता साबित कर रही है।

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पैराशूट बटालियन से जुड़े हैं धोनी

पैराशूट बटालियन से जुड़े हैं धोनी

धोनी ट्रेंड छाताधारी सैनिक (पैराट्रूपर) हैं। उन्होंने पैराशूट से नीचे उतरने का बेसिक कोर्स कर रखा है। उनकी ट्रेनिंग आगरा में हुई थी। उनकी वर्दी पर जो बैज लगा रहता है उस पर पैराशूट का चित्र अंकित रहता है। इस दो महीने की ट्रेनिंग में धोनी अब बेसिक कोर्स से आगे का प्रशिक्षण लेंगे। धोनी अब 38 साल के हो चुके हैं फिर उन्होंने हाइयर ट्रेनिंग के लिए दिलचस्पी दिखायी है। युद्ऱ के समय या किसी कवर्ड ऑपरेशन में पैराशूट सैनिकों का महत्व बहुत बढ़ जाता है। ये सैनिक 11 हजार फुट की ऊंचाई से भी पैराशूट के जरिये जंगल, समुद्र या निर्जन पहाड़, कहीं भी उतर सकते हैं। हाल ही में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जो एयर स्ट्राइक किया था उसमें पैराशूट सैनिकों का बहुत बड़ा योगदान था।

Story first published: Wednesday, July 24, 2019, 15:38 [IST]
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