नई दिल्ली: क्रिकेट में पिचों पर हालातों पर अति निर्भरता घातक मानी जाती है। एक आदर्श खेल वह माना जाता है जिसमें टॉस की भूमिका कम से कम रहे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है और अधिकतर मैचों में टॉस ही असली बॉस साबित होता है। कम से कम क्रिकेट के सबसे बड़े टूर्नामेंट विश्व कप 2019 में तो यही हो रहा है। इस विश्व कप में टॉस किस तरह से मैचों का परिणाम तय कर रहे हैं यह जानकर आपको हैरानी भी हो सकती है लेकिन यही सच है कि अधिकतकर मैचों में टॉस मैच के नतीजों को प्रभावित कर रहा है।
लेकिन यहां मामला यह नहीं है कि जिस कप्तान ने टॉस जीता उसकी टीम भी मैच जीत गई बल्कि इससे उल्टा है। इसकी गवाही आंकड़े दे रहे हैं कि मौजूदा विश्व कप के 32 मैचों में से 21 मैच ऐसे रहे हैं जिसमे टीमों के कप्तानों ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग करने का फैसला किया लेकिन उनके हाथ केवल 8 बार ही जीत लग सकी। जबकि 12 मैचों में उनको हार का सामना करना पड़ा।
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ऐसा ही एक ताजा मामला हमने ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच हुए बहुचर्चित मैच में देखा। इस मैच में इंग्लिश कप्तान इयान मोर्गन ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का निर्णय लिया जो उनके लिए घातक साबित हुआ। एक अन्य बड़ा मुकाबला भारत और पाकिस्तान का भी था जिसने पाक कप्तान सरफराज अहमद ने भी पहले गेंदबाजी चुनी और मुकाबला हार गए। इस फैसले के चलते सरफराज ने अपने क्रिकेट करियर की सबसे बड़ी आलोचनाओं में से एक भुगती है।
ऐसा नहीं है कि टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने में कोई खामी है। खासकर इंग्लैंड जैसी टीम का रनों का पीछा करने में ट्रैक रिकॉर्ड पिछले दो सालों में जबरदस्त रहा है लेकिन इस विश्व कप में यही टीम रनों का पीछा करते हुए 4 मैचों में तीन हारी है। ये स्थिति साफ बताती है कि विश्व कप का दबाव अलग किस्म का होता है और यहां सब कुछ टॉस और परिस्थितियों से ही तय नहीं होता। ऐसे में जो टीम सबसे बेहतर दबाव झेलेगी वह इस प्रतियोगिता में ट्रॉफी उठाएगी।