1992 वर्ल्डकप. साउथ अफ़्रीका बनाम इंग्लैंड के बीच सेमीफ़ाइनल मुक़ाबला.
इंग्लैंड को हराने के लिए अफ़्रीका को 13 गेंदों में 22 रन बनाने थे. लेकिन तभी आसमान ने गिरती बारिश ने खेल को रोक दिया.
10 मिनट बाद जब बारिश रुकी और दक्षिण अफ़्रीकी बल्लेबाज़ मैदान पर लौटे तो स्कोरबोर्ड पर नया लक्ष्य फ्लैश किया. जीत के लिए एक गेंद पर 22 रन. हालांकि ये एक टाइपो था और दक्षिण अफ़्रीकी बल्लेबाज़ों को जीत के लिए एक गेंद पर 22 नहीं, 21 रन बनाने थे.
उस वक़्त के नियम से मिला ये नया लक्ष्य सभी के लिए चौंकाने वाला था. रेडियो पर कमेंट्री कर रहे क्रिस्टोफ़र मार्टिन जेंकिस ने हैरानी भरी आवाज़ में कहा, ''मेरा यक़ीन है कहीं न कहीं से कोई तो इस मुश्किल का रास्ता खोज निकालेगा.''
रेडियो पर ये कमेंट्री एक ब्रिटिश स्टेटिशियन (सांख्यिकीविद) फ्रैंक डकवर्थ भी सुन रहे थे.
डकवर्थ ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बताया था, ''मुझे ये अहसास हुआ कि ये एक गणित से जुड़ी दिक़्क़त है जिसका समाधान करना ज़रूरी है.''
डकवर्थ ने 1992 में ही रॉय स्टेटस्टिकल सोसाइटी में एक पेपर पेश किया था जिसका टाइटल था- 'ख़राब मौसम में निष्पक्ष खेल.'
इस पेपर को आगे बढ़ाकर एक मुकम्मल नियम बनाने की राह में अभी कुछ कसर बाकी थी. यूनिवर्सिटी ऑफ द वेस्ट ऑफ इंग्लैंड के लेक्चरर टोनी लुईस ने ये मुश्किल आसान की.
दोनों गणितज्ञों ने फैक्स के ज़रिए नियम को आख़िरी रूप दिया. इन्हीं दोनों के साथ बनाए फॉर्मूले को डकवर्थ लुईस नियम कहा जाता है.
कई कोशिशों के बाद वाया इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड ये नियम आईसीसी तक पहुंच पाया.
लुईस ने बीबीसी से कहा था, ''ये देखना कितना सुकून भरा है कि अब हमारे बनाए नियम से हुए फ़ैसलों को खिलाड़ी आमतौर पर स्वीकार कर लेते हैं. खेल के विकास में हमारा बनाया नियम काफ़ी काम का साबित हुआ है.''
1997 में पहली बार डकवर्थ लुईस नियम को लागू किया गया था. मैच था ज़िम्बॉब्वे बनाम इंग्लैंड. ये मैच ज़िम्बॉब्वे जीता था.
इसके बाद साल 1998 में न्यूज़ीलैंड, वेस्टइंडीज़, इंडिया, पाकिस्तान और साउथ अफ़्रीका में भी इस नियम का इस्तेमाल हुआ.
आईसीसी ने वर्ल्डकप में डकवर्थ लुईस नियम को साल 1999 में शामिल किया. लेकिन तब इंग्लैंड में मौसम 2019 जैसा नहीं था. नतीजा ये रहा कि ये नियम 1999 के वर्ल्ड कप में इस्तेमाल नहीं हो पाया.
आईसीसी ने 2001 में औपचारिक रूप से डकवर्थ लुईस नियम को अपना लिया. इसे ट्रायल के तौर पर क्रिकेट के सभी फॉरमेट्स में इस्तेमाल किया जाने लगा.
2004 में स्थायी तौर पर डकवर्थ लुईस नियम आईसीसी का हिस्सा बन गया. हालांकि इस नियम की आलोचनाएं भी होती रही हैं.
डकवर्थ और लुईस रिटायर होने के बाद प्रोफ़ेसर स्टीव स्टर्न इसके सरंक्षक बनाए गए. 2014 में इस नियम का नाम बदलकर डकवर्थ लुईस स्टर्न (DLS)हो गया. आज तक ये नियम 220 से ज़्यादा मैचों में इस्तेमाल हो चुका है.
अगर 10 जुलाई को भारत बनाम न्यूज़ीलैंड के बीच होने वाले मैच में भी पानी बरसा तो डकवर्थ लुईस नियम से कितने रन बनाने होंगे?
इसका जवाब ये है:
मैच में डकवर्थ लुईस नियम को लागू किए जाने की चर्चा सोशल मीडिया पर छाई हुई है.
पूर्व क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने ट्विटर पर लिखा, 'अगर बारिश में भी एम्पलॉयी ऑफिस आ रहा है तो एचआर लोग क्या कहेंगे. बारिश के दिनों में डकवर्थ लुईस नियम से कर्मचारियों को सैलरी दी जाने लगे तो सही रहेगा.'
Will it be advantage employees if Salary is given by Duckworth Lewis in rainy months. If baarish mein bhi employee is coming to office. What do HR log think?
— Virender Sehwag (@virendersehwag) 9 July 2019
निकुंज ने लिखा, डकवर्थ लुईस नियम को 10वीं क्लास के सलेबस में शामिल किया जाना चाहिए.
Duckworth–Lewis–Stern method should be included in the CBSE class 10 syllabus #INDvNZ @BCCI
— Nikunj Choudhari (@Nikunj_nixu) 9 July 2019
विनय लिखते हैं- इंडिया में सभी लोग जिन दो लोगों से नफरत कर रहे होंगे, वो डकवर्थ और लुईस है.
Two most hated people in India right now are "Duckworth Lewis"#INDvNZ pic.twitter.com/p9eBzEWBo8
— Vinay (@bugg2501) 9 July 2019
#INDvNZ
— Rohan (@rohan_marwari) 9 July 2019
Duckworth & Lewis on their way pic.twitter.com/fdYpOdBZZ9
एक ट्विटर हैंडल ने डकवर्थ लुईस नियम के जटिल होने पर यूं चुटकी ली.
Duckworth Lewis method explained 🤣🤣
— नमस्ते OldMonker 🍷 (@Namastey_) 9 July 2019
Glass 1 - New Zealand score
Glass 2 - #NZ Wickets
Glass 3 - Overs played
Glass 4 - RunRate
Glass 5 - DLS Target for #TeamIndia
Glass 6 - D/L Overs for #IND#INDvNZ #SemiFinal1 #NZvIND#indiavsNewzealand 🤪 pic.twitter.com/hJK0hmVV2h