रविंद्र जडेजा का सेलेक्शन दे गया जरूरी सबक-
इतना ही नहीं अगर रविंद्र जडेजा की जगह मोहम्मद सिराज को भी टीम में लिया जाता तो परिस्थितियों के अनुसार चार तेज गेंदबाज होते और भारत कहीं अधिक बेहतर गेंदबाजी संयोजन के साथ उतरता जो कि भारी पड़ सकता था। जडेजा ना बल्लेबाजी कर सके और ना ही ठीक से गेंदबाजी।उन्होंने पहली पारी में 15 और दूसरी पारी में केवल 16 रन बनाए जबकि पूरे मैच में उन्होंने 15.2 ओवर फेंके जिसमें 45 रन खर्च किए और मात्र एक ही विकेट ले पाए। उन्होंने अन्य भारतीय गेंदबाजों की तुलना में कम बॉलिंग की और इस पिच पर बेअसर साबित हुए।
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विराट कोहली का बेस्ट दौर कहां गायब हो गया है-
विराट कोहली व जसप्रीत बुमराह जैसे खिलाड़ी भी अपने बेस्ट दौर से बाहर होते नजर आ रहे हैं। दोनों ही टुकड़ों में परफॉर्मेंस कर रहे हैं जिसके चलते कई बार आलोचकों की नजरों से बच जाते हैं लेकिन विराट कोहली के बल्ले से बड़े मौकों पर रन आए अरसा बीत चुका है और बुमराह ने नाजुक मौकों पर विकेट निकाले हुए काफी समय लगा दिया है। विराट कोहली लॉकडाउन के बाद से उस दर्जे के बल्लेबाज नहीं दिखाई दे रहे हैं जिस तरह का प्रदर्शन वे आज से 2 साल पहले किया करते थे। वे हालांकि अभी भी निरंतर रन बना रहे हैं लेकिन बड़ी पारियां पूरी तरह से गायब हो चुकी है। इस मैच की पहली पारी में विराट कोहली ने अपना विकेट तब गवाया जब वे 44 रन बनाकर खेल रहे थे जबकि उनके दर्जे के बल्लेबाज से केन विलियमसन की तरह अंत तक टिककर अपनी टीम का बेड़ा पार लगाने की उम्मीद की जा रही थी। इसमें कोई शक नहीं कोहली बनाम विलियमसन की इस रेस में भारतीय कप्तान को मात मिली है।
विराट कोहली ने दूसरी पारी में विकेट गंवाया जब भारत को अंतिम दिन उनसे टिकने की उम्मीद थी लेकिन वे केवल 13 रन बनाकर चलते बने। हम लंबे समय से कोहली का यह बल्लेबाजी अंदाज देख रहे हैं। यहां हम वो विराट कोहली देख रहे हैं जिसने उस तरह का कलात्मक आक्रामक व निडर खेल नहीं दिखाया है जिसके लिए पूरी दुनिया उनको जानती है। इस बात को काफी अरसा हो चुका है जब आपने विराट कोहली को उनके रौद्र रूप में देखा था।
कब देखने को मिलेगी बुमराह की पुरानी 'राह'-
ठीक ही स्थिति जसप्रीत बुमराह की है जो टुकड़ों में परफॉर्मेंस कर रहे हैं वह आईपीएल में कभी यादगार स्पैल करते हैं तो कभी सीमित ओवर के क्रिकेट में अच्छी गेंदबाजी कर लेते हैं लेकिन निरंतरता से विकेट लेने व बल्लेबाजों में खौफ पैदा करने की क्षमता फिलहाल गायब है। वे पटकी हुई गेंद ज्यादा फेंक रहे हैं, उनके पास अभी भी अच्छी गति मौजूद है लेकिन ना स्विंग है और ना ही स्ट्रेस फ्रैक्टर से पहले का वो पैनापन। भले वे इस समय भी सटीक हैं लेकिन अपने नाम के अनुरूप सक्षम नहीं है। टेस्ट चैम्पियनशिप फाइनल में बुमराह ने ना तो इशांत शर्मा को सपोर्ट किया ना ही मोहम्मद शमी को। उन्होंने पहली पारी में 26 ओवर फेंके और 57 रन देकर एक भी विकेट नहीं लिया। दूसरी पारी में भी देर से ही लय में दिखाई दिए लेकिन यहां पर भी उन्होंने 10.4 ओवर में 35 रन देकर कोई विकेट नहीं लिया। भारत ने बुमराह को ट्रम्कार्ड की तरह पेश किया था लेकिन वह कुछ भी साबित नहीं हुए।