रुपिंदर ने कहा- लड़कियों ने दी प्रेरणा
रुपिंदर ने इंडिया टुडे के हवाले से बातचीत करते हुए बताया, "जब हमारी मीटिंग होती थी तो हम कहा करते थे कि हमें लड़कियों की तरह खेलना चाहिए। उन्होंने अपने शुरू के तीन मैच हार दिए लेकिन फिर वापस आते हुए पलटवार किया और क्वार्टर फाइनल, फिर सेमीफाइनल में जगह बनाई। इसने वास्तव में हमें प्रेरणा दी कि अच्छा प्रदर्शन कर सकें। बता दें कि भारतीय महिला हॉकी टीम ने टूर्नामेंट में काफी खराब शुरुआत करते हुए 1-5 से नीदरलैंड के खिलाफ मुकाबला हारा, फिर उनको अगले मुकाबले में 0-2 से जर्मनी के खिलाफ हारना पड़ा। 1-4 से रियो ओलंपिक के गोल्ड मेडलिस्ट ग्रेट ब्रिटेन से भी हार मिली।
लेकिन, यहां से टीम का खेल बदलना शुरू हुआ और उन्होंने लगातार तीन जीत दर्ज की। जो अंतिम जीत मिली, वह आस्ट्रेलिया के खिलाफ थी और इसको टोक्यो ओलंपिक का सबसे बड़ा अपसेट माना जा सकता है।
सविता पुनिया का खुलासा- हार के बाद कोच ने हमारे साथ लंच नहीं किया था, यहीं से हमारा खेल बदला
दोनों टीमों में पूरे ओलंपिक में सूचनाओं को शेयर किया-
पुरुष हॉकी टीम के कोच ग्राहम रीड भी कह चुके हैं कि पुरुष और महिला टीमों में सूचनाओं का आदान-प्रदान पूरे टूर्नामेंट में होता रहा। यहां तक कि दोनों टीमों की कोचिंग स्टाफ भी आपस में रूम शेयर करते थे जो कि काफी अच्छी चीज थी। दोनों टीमें होटल में ऊपर नीचे के फ्लोर पर रहती थी।
पुरुष हॉकी टीम को भी अपने दूसरे लीग मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भयंकर हार का सामना करना पड़ा था जब वे 1-7 से हार गए थे। इस पर बात करते हुए 30 साल के रुपिंदर ने कहा, "हम वाकई में काफी दुखी थे, निराश थे। हम इतना बुरा नहीं खेले। इसके बाद हमने जब वीडियो एनालिस किया तो महसूस हुआ कि हमने वाकई में अच्छा खेल दिखाया और काफी मौके भी बनाए लेकिन वह आस्ट्रेलिया का दिन था। जब भी ऑस्ट्रेलियाई हमारे सर्कल में आते, वे गोल करके चले जाते थे।
"हम ने सुनिश्चित किया कि हम एकजुट होकर बने रहेंगे। हमने अगले मैच में दिखा दिया कि हम एक परिवार हैं, हम एक साथ हैं। अगर बाहर से लोग खिलाड़ियों की बुराई करते हैं तो हम ऐसे लोगों को इग्नोर करेंगे।"
'क्या पता फिर मेडल का ऐसा मौका मिले या ना मिले'
वे कहते हैं कि हम जानते हैं कि हार जीत लगी रहती है लेकिन हार के बाद बहुत ज्यादा आलोचना मिलती है तो हमने उसको इग्नोर करने का फैसला किया। रुपिंदर कहते हैं कि हॉकी टीम को लंबे समय बाद मेडल मिला है इसमें कहीं ना कहीं ईश्वर ने भी टीम को आशीर्वाद दिया है। भारत ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भयंकर हार से जल्द ही उभर गया और उसने लगातार मुकाबले जीते।
कांस्य पदक मैच में चार बार के चैंपियन जर्मनी को 5-4 से हराया गया। इस मैच में भारत ने 1-3 से पिछड़ने के बावजूद जबर्दस्त वापसी की थी और यह हॉकी प्रेमियों को लंबे समय तक याद रहेगी। जर्मनी के खिलाफ भारतीय टीम पिछड़ रही थी तो टीम की मनोदशा के बारे में बात करते हुए रुपिंदर बताते हैं कि हम नहीं जानते थे कि मेडल का चांस दोबारा आने वाला है या फिर नहीं या फिर यह इतना करीबी होगा या फिर नहीं होगा। इसलिए हमने सोचा कि हम अपना सब कुछ दांव पर लगा देंगे।
ये खूबसूरत मेडल पैसे देकर खरीदा नहीं जा सकता- रुपिंदर
रुपिंदर कहते हैं कि उनको यकीन नहीं हुआ था जब उन्होंने ओलंपिक मेडल अपने हाथ में लिया और ऐसा लगा कि जैसे यह एक सपना हो। वे कहते हैं, जब मैंने मेडल हाथ में लिया तो देखा कि यह कितना खूबसूरत था। हमने इस को हासिल करने के लिए कोई पैसा खर्च नहीं किया लेकिन यह बहुत बड़े समर्पण और जबरदस्त हार्ड वर्क से हासिल हुआ है। आप जितनी भी शारीरिक और मानसिक पीड़ा झेलते हैं, जितने भी त्याग करते हैं यह सब चीज आपके दिमाग में चलनी शुरू हो जाती हैं।
रविंद्र मानते हैं कि पुरानी पीढ़ी के टीम के खिलाड़ियों ने भी बहुत अच्छा योगदान दिया क्योंकि वह एक ऐसे समय में थे जब भारत के पास कुछ भी नहीं था और वे मानते हैं कि मौजूदा टीम लकी है कि भारत की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाने में कामयाब रही।