नई दिल्ली। महान हॉकी खिलाड़ी और तीन बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता बलबीर सिंह सीनियर ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। 96 वर्षीय बलबीर पिछले कई महीनों से बीमार चल रहे थे। उन्होंने मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में दम तोड़ा जिसकी जानकारी अस्पताल के डायरेक्टर अभिजीत सिंह ने दी। बलवीर को 13 मई की सुबह दिल का दौरा पड़ा जिससे उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी। वह आईसीयू में भर्ती थे और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था।
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बलबीर अपनी बेटी सुशबीर और कबीर के साथ रहते थे। बलबीर सीनियर को अस्पताल में 108 दिन बिताने के बाद पिछले साल जनवरी में पीजीआईएमईआर से छुट्टी मिली थी। इस अस्तपाल में उनका निमोनिया के लिए उपचार चल रहा था। उन्होंने लंदन (1948), हेलसिंकी (1952) और मेलबर्न (1956) ओलंपिक में भारत के स्वर्ण पदक जीतने में अहम भूमिका निभाई थी। हेलसिंकी ओलंपिक में नीदरलैंड के खिलाफ 6-1 से मिली जीत में उन्होंने पांच गोल किये थे और यह रिकॉर्ड अभी भी बरकरार है। वह 1975 विश्व कप विजेता भारतीय हॉकी टीम के मैनेजर भी रहे।
जब 1948 में भारत और इंग्लैंड के बीच लंदन के वेम्बली स्टेडियम में हॉकी का फ़ाइनल शुरू हुआ तो सारे दर्शकों ने एक सुर में चिल्लाना शुरू किया, "कम ऑन ब्रिटेन, कम ऑन ब्रिटेन!" धीरे-धीरे हो रही बारिश से मैदान गीला और रपटीला हो चला था। नतीजा ये हुआ कि किशन लाल और केडी सिंह बाबू दोनों अपने जूते उतार कर नंगे पांव खेलने लगे।
पहले हाफ़ में ही दोनों के दिए पास पर बलबीर सिंह ने टॉप ऑफ़ डी से शॉट लगा कर भारत को 2-0 से आगे कर दिया।खेल ख़त्म होने के समय स्कोर था 4-0 और स्वर्ण पदक भारत का था. जैसे ही फ़ाइनल विसिल बजी ब्रिटेन में भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त कृष्ण मेनन दौड़ते हुए मैदान में घुसे और भारतीय खिलाड़ियों से गले मिलने लगे।
बाद में उन्होंने भारतीय हॉकी टीम के लिए इंडिया हाउज़ में स्वागत समारोह किया जिसमें लंदन के जाने-माने खेल प्रेमियों को आमंत्रित किया गया। जब ये टीम पानी के जहाज़ से वापस भारत पहुंची तो बंबई के पास उनका जहाज़ कमज़ोर ज्वार-भाटे में फंस गया. उस ओलंपिक में स्टार बने बलबीर सिंह अपने जहाज़ से अपनी मातृ-भूमि को देख पा रहे थे। उस हालत में उन्हें पूरे दो दिन रहना पड़ा। जब ज्वार ऊँचा हुआ तब जा कर उनका जहाज़ बंबई के बंदरगाह पर लग सका।