नई दिल्लीः भारतीय हॉकी टीम ने इतिहास रच दिया है क्योंकि उन्होंने 41 साल के बाद ओलंपिक में एक मेडल अपने देश के नाम किया है। भारत के लिए यह मुकाबला कतई भी आसान नहीं था क्योंकि जर्मनी ने तेजतर्रार खेल दिखाते हुए शुरुआत में ही ऐसी बढ़त बनाई की करोड़ों देशवासियों के दिल अपने धड़कनों को पकड़ नहीं पा रहे थे, लेकिन यहां इतिहास रचने वाली वापसी करते हुए मनप्रीत सिंह की टीम ने यह मैच 5-4 से जीतने में कामयाबी हासिल की।
यह कांस्य पदक हासिल करना इतना मुश्किल था कि अंतिम क्षणों में भी जर्मन खिलाड़ी पेनल्टी कार्नर पर पेनल्टी कॉर्नर लिए जा रहे थे और भारतीय टीम किसी तरह से अपने डिफेंस पर खड़ी रही। आखिरकार जैसे ही मैच का समापन हुआ अनेक लोग अपने खिलाड़ियों के साथ भावनाओं के सैलाब में बह गए और उनकी आंखों में आंसू थे। यह भारत के लिए खेलों में एक अलग ही किस्म की भावनात्मक कहानी है। यह जीत क्रिकेट की किसी सीरीज (ऑस्ट्रेलिया में मिली टेस्ट जीत को छोड़कर) या किसी मैच को जीतने की जैसी नहीं है यह अपने आप में एक बहुत बड़ी कहानी है।
उम्मीद है इस जीत से हॉकी में फिर से भारत का परचम लहराएगा और देश में यह खेल एक बार फिर अपनी श्रेष्ठता हासिल करता हुआ लोकप्रियता के नए मुकाम पर जाएगा। मैच में भावनाएं हावी रही और खिलाड़ी जश्न में डूब गएय़ ऐसे में भारतीय कप्तान मनप्रीत सिंह की मां भी अपनी भावनाओं को नहीं छुपा पाईं, तो दूसरे खिलाड़ी की मां ने बताया कि यह ऐतिहासिक ब्रॉन्ज मेडल बिल्कुल गोल्ड मेडल के बराबर है।
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मनप्रीत सिंह की माताजी ने इस जीत का जश्न मनाया और इंडिया टुडे ने उनके हवाले से कहा, "ईश्वर हमारे साथ रहा है। आज मनप्रीत का सपना सच हो गया और उम्मीद है कि अगली बार वह गोल्ड जीतकर लौटेगा।"
भारतीय टीम के फॉरवार्ड गुरजीत सिंह की माता जी ने इस पदक को गोल्ड के बराबर बताया है और कहा है- हमारे लिए गोल्ड ही है।
दूसरी ओर मिडफील्डर सुरेंदर की माताजी ने यह मैच नहीं देखा क्योंकि वह बहुत तनाव में थीं और उनको केवल मैच के परिणाम की फिक्र थी। इस बात को लेकर उनके अंदर परवाह नहीं थी कि इस समय क्या चल रहा है। वे कहती है, "मैं बाहर बैठी रही, मैं काफी तनाव में थी और मैंने मैच नहीं देखा।"
ललित उपाध्याय की माताजी कहती है कि वह अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं कर सकती। वह इस समय सातवें आसमान पर हैं। भारत के ड्रैग फ्लिकर वरुण कुमार ने अपने देशवासियों को अंतहीन सहयोग के लिए धन्यवाद दिया है और कहा है कि, मैं भारत में सभी को धन्यवाद देना चाहता हूं।
आठ बार के ओलंपिक गोल्ड विजेता भारत का इतिहास बड़ा ही सुनहरा रहा है लेकिन इसमें बीच में एक ऐसा ब्रेक आया कि हमको 41 साल के लंबे अंतराल पर यह मेडल मिला है। आप इसी बात से भावनाओं के समंदर को समझ सकते हैं। भारत की जीत में सिमरनजीत सिंह ने 17वें और 34 वें मिनट में गोल किया, हार्दिक सिंह ने 27 मिनट में गोल किया, हरमनप्रीत सिंह ने 29 मिनट में गोल किया और रूपिंदर पाल सिंह ने 31 मिनट में गोल किया। इस तरह से भारत के खाते में हुए पांच ऐतिहासिक गोल आए, जिन्होंने जर्मनी जैसी कद्दावर टीम को हराने में मुख्य भूमिका अदा की।