19वीं सदी के लास्ट में हॉकी ने भारत में पकड़ बनानी शुरू की-
वैसे तो हॉकी की ओलंपिक में एंट्री 1908 में ही हो गई थी लेकिन भारत में तब इस खेल ने इतनी गहरी पकड़ नहीं बनाई थी। पहला बड़ा टूर्नामेंट कलकत्ता में खेला गया जो कि 1885 में हुआ था। 1886 में बांबे में आगा खान कप कराया गया। इसके काफी समय बाद देश में हॉकी फेडरेशन बनी। तब देश आजाद नहीं था लेकिन भारत की हॉकी फेडरेशन आगे बढ़ चुकी थी। ऐसे में 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में भारत ने हॉकी टीम भेजने का फैसला किया। रुपहले पर्दे पर जैसा जादू शाहरुख खान ने कोच की एक्टिंग में दिखाया था, रियल लाइफ में वैसा ही जादू तब हॉकी के मैदान पर मेजर ध्यानचंद खिलाड़ी के रोल में बिखेरते थे। हॉकी के जादूगर ध्यानचंद का खेल वास्तव में गॉड लेवल पर था।
मिल्खा सिंह से बहुत पहले 'उड़ने' वाला वो एथलीट, जिसने ओलंपिक में खोला था भारत के पदकों का खाता
यूरोप को बुरी तरह पीटकर लीग स्टेज में टॉप कर गया भारत-
भारतीय टीम इस प्रतियोगिता में जयपाल सिंह मुंडा की कप्तानी में खेल रही थी। प्रतियोगिता में 9 टीमों ने भाग लिया जिनको दो डिवीजन में बांट दिया गया था। भारत की टीम डिवीजन ए में थी जिसमें उसके साथ बाकी सभी देश यूरोप के थे। ये देश थे- बेल्जियम, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया। दूसरी ओर इस ओलंपिक में भारतीय टीम मिली जुली थी, यानी भारतीय और ब्रिटिश नाम दोनों शामिल थे लेकिन रिप्रजेंट सभी भारत को ही कर रहे थे।
भारत ने मैदान पर उतरते ही दुनिया को अपना जलवा दिखा दिया और ग्रुप स्टेज में यूरोप को बुरी तरह पीट दिया। ऑस्ट्रिया को 6-0, बेल्जियम को 9-0, डेनमार्क को 5-0 और स्विटजरलैंड को 6-0 से हरा दिया गया। डिवीजन दो में नीदरलैंड की टीम 3 में से दो मैच जीतकर टॉप पर रही जबकि एक मुकाबला ड्रा रहा। अब दोनों डिवीजन की दोनों टॉप टीमों के बीच फाइनल मुकाबला होना था।
मेजर ध्यानचंद सब पर भारी-
फाइनल मुकाबला भारत और नीदरलैंड के बीच हुआ। नीदरलैंड मेजबान था ही जबकि भारतीय टीम फिरोज खान और शौकत अली के बिना खेल रही थी जो क्रमशः चोटिल व बीमार थे। जबकि जयपाल सिंह ने सेमीफाइनल से पहले ही टीम को बीच में छोड़ दिया था।
इन सबके बावजूद जब ध्यानचंद हैं तो कोई टेंशन नहीं है क्योंकि उनके अकेले दम पर ही भारत ने फाइनल 3-0 से जीत लिया। मेजर ध्यानचंद ने इस चोटी के मैच में हैट्रिक लगाई थी। ध्यानचंद ने उस ओलंपिक में 14 गोल किए और वे टूर्मामेंट के बेस्ट स्कोरर रहे। भारत इस हद तक विपक्षियों पर हावी रहा कि उसने कुल 29 गोल प्रतियोगिता में किए लेकिन एक भी गोल विरोधी टीम से नहीं खाया।
यह जीत भारत के खेल के इतिहास में मील के पत्थर के तौर पर दर्ज है क्योंकि इसने ओलंपिक में भारतीय हॉकी स्वर्णिम युग के दरवाजे खोल दिए। भारत ने लगातार 6 ओलंपिक मेडल इस दौरान जीते, लगातार 30 मैच जीतने का सिलसिला 1960 में जाकर टूटा। भारत 1928, 1932, 1936, 1948, 1952, 1956, 1964, 1980 में ओलंपिक गोल्ड जीत चुका है।