नई दिल्लीः ये फील्ड हॉकी में भारतीय टीम के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का अंतिम नजारा था। एक ऐसा पल जब हमने ओलंपिक में अपनी खोई हुई चमक को वापस पाया। वर्ना ये वही हॉकी खेल था जहां ओलंपिक में भारत का सोने का तमगा प्रतियोगिता में पहुंचने से पहले ही पक्का हो जाता था। ध्यानचंद के दौर से 1928 से शुरू हुआ यह सिलसिला लगातार 1956 तक चला लेकिन 1960 में पाकिस्तान ने गोल्ड हासिल कर भारत की लगातार जीत पर ब्रेक लगा दिया। अगले ही ओलंपिक यानी 1964 में भारत ने फिर से अपना रुतबा हासिल करते हुए गोल्ड पर गोल कर दिखाया। पर इसके बाद 1968 और 1972 में कांस्य पदक से काम चलाना पड़ा। 1976 में तो भारत ओलंपिक में अपनी सबसे निचली फिनिश पर आ गया था जब वो 7वें स्थान पर रहा। ऐसे में ताजा हवा के झोंके सा आया था 1980 का मॉस्को ओलंपिक।
यह ओलंपिक सोवियत संघ (जो बाद में कई देशों में टूट गया, जिसका मुख्य हिस्सा आधुनिक रूस है) और अमेरिका के झगड़े के बैकग्राउंड में हो रहा था। अमेरिका को सपोर्ट करने वाला गुट एक तरफ था और भारत सोवियत संघ की ओर था। शुरू में ओलंपिक में 12 टीमें हॉकी में प्रतियोगिता करने वाली थी लेकिन 9 ने अमेरिका के साथ खुद को ओलंपिक से अलग कर लिया। आनन-फानन में आयोजन समिति को 6 टीमें खिलानी पड़ी। भारत के अलावा स्पेन, सोवियत संघ, पोलेंड, क्यूबा और तंजानिया ने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। फिर भी भारत के लिए ग्रुप स्टेज आसान नहीं थी।
उसने पोलेंड और स्पेन से 2-2 से ड्रा मैच खेले लेकिन तंजानिया को 18-0 से धो दिया, क्यूबा को 13-0 से मात मिली और सोवियत संघ को 4-2 से हरा दिया। लीग स्टेज में 4 मुकाबले जीतकर स्पेन की टीम नंबर वन थी और भारत दूसरे स्थान पर रहा। ऐसे में भारत को गोल्ड मेडल मैच स्पेन को हराने में कड़ी मेहनत करनी पड़ी। सुरिंदर सिंह सोढ़ी के 2 गोल, मोहम्मद शाहिद और एमके कौशिक के 1-1 गोलों के दम पर भारत ने स्पेन को 4-3 से हराकर गोल्ड मेडल कब्जा लिया। बताया जाता है कि फाइनल में सबसे अहम रोल मोहम्मद शाहिद ने ही निभाया था। शाहिद ही अधिकतर मौकों पर गेंद को गोल स्कोरिंग जगह पर प्लेस करते थे जिससे स्ट्राइकरों के लिए काम आसान हो गया था। शाहिद का निधन केवल 56 साल की उम्र में हो गया था।
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भारत को यह जीत मिल तो गई लेकिन वैसा रुतबा नहीं मिला जैसा पुरानी हॉकी के पास था। रूस-अमेरिका के फसाद के चलते टॉप की टीमें पहली ही ओलंपिक से बाहर थी। दूसरी बात यह है कि इसके बाद से भारत हॉकी में कोई भी ओलंपिक पदक नहीं जीत पाया है। भारत को इसके बाद किसी टीम इवेंट में भी कोई गोल्ड नहीं मिला है। केवल व्यक्तिगत स्पर्धा में 2008 के बीजिंग ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा ने मेन्स 10मी एयर राइफल में गोल्ड जीता था। उसके बाद से हम गोल्ड के लिए तरस रहे हैं। फील्ड हॉकी में भारत ने कुल 11 पदक जीते, जिसमें 8 गोल्ड मेडल थे, 1 सिल्वर और 2 ब्रॉन्ज मेडल।
तो यह थी हॉकी में भारत के अंतिम ओलंपिक गोल्ड मेडल की कहानी जिसके बाद से हॉकी में देश का प्रदर्शन लगातार गिरता चला गया। भारत ने 2016 में रियो ओलंपिक में क्वार्टरफाइनल तक का सफर तय किया। इस बार टोक्यो ओलंपिक 2021 में भी भारत की महिला व पुरुष दोनों टीमों ने क्वालिफाई कर लिया है और यह देखना दिलचस्प होगा ये टीमें अपने पुराने रुतबे के कितना करीब जा पाती हैं।