नई दिल्ली। एशियन गेम्स में कबड्डी टीम में शामिल हिमाचल की कविता ठाकुर की कहानी प्रेरणा का परिचायक है।एशियाई खेलों में देश को कबड्डी टीम से गोल्ड और साथियों को कविता से बेहतरीन प्रदर्शन की उम्मीद लगाए लोगों को शायद ही कविता की जिंदगी का यह संघर्ष पता हो। हिमाचल की हांड़ कंपा देने वाली सर्दी में रात में सोने के लिए कंबल। फिर भी अपनी फौलादी हिम्मत से कविता ने गरीबी की जंजीरों को तोड़ते हुए अंतराष्ट्रीय कबड्डी के पटल पर अपना नाम दर्ज कराया।
घर में तंगी की हालत में कविता ने ढाबे पर काम किया। बचपन बर्तन धोने और जूठन साफ करने में अपना बचपन गुजराती आई कविता की कहानी फिल्मी पर्दे पर दिखाए जाने चमत्कारों से कम नहीं है।
Himachal Pradesh: Kavita Thakur, a member of Indian women's Kabaddi team in Asian Games 2018 used to work at the family-owned roadside dhaba in Manali's Jagatsukh before she professionally started to play Kabaddi. pic.twitter.com/QZlva0jC6F
— ANI (@ANI) August 20, 2018
2014 एशियाड उनके किस्मत का नया अफसाना लेकर आया। कविता और उनके पूरे परिवार की किस्मत बदल गई। टीम ने गोल्ड मेडल अपने नाम किया जिसके बाद सरकार का ध्यान कविता की ओर गया। जिन माता-पिता ने पूरी जिंदगी एक छोटे से ढाबे में रहकर गुजार दी अब कविता की कबड्डी ने मनाली शहर में पहुंचा दिया। कविता ने 2007 में कबड्डी खेलना शुरू किया। राष्ट्रीय स्तर पर लगातार बेहतर प्रदर्शन करने के बाद कविता को 2009 में धर्मशाला स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) में जाने का मौका मिला। इसके बाद कविता ने कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा।
2011 में बेड रेस्ट की सलाह:
हर खिलाड़ी का एक संघर्ष भरा दौर आता है।कविता का के लिए 2011 का साल कठिनाईयां लेकर आया।तबीयत इतनी खराब हो गई कि डॉक्टर्स ने 6 महीने के लिए बेड रेस्ट की सलाह दे डाली। खुद कविता ठाकुर को लगा कि उनका करियर खत्म वह अब मैदान पर कभी वापसी नहीं कर पाएंगी। लेकिन फौलादी इरादों ने कविता को और मजबूत किया।बीमारी को मात देकर कविता मैदान पर दोगुने जोश के साथ उतरी। डिफेंडर के रूप में नजर आने वाली इस खिलाड़ी ने 2012 में भारतीय टीम को एशियन कबड्डी चैंपियनशिप में गोल्ड दिलाया। उम्मीद है कि कविता इस वर्ष भी टीम के साथ मिलकर एक नई इबारत लिखेंगी।