जम्मू कश्मीर। मजबूत इरादे हों तो दुनिया की कोई ताकत आपको रोक नहीं सकती। कहानी है, जम्मू-कश्मीर की रहने वाली आबिदा अख्तर की जो कठिन हालात में पली बढ़ी है और रविवार को उसने मलेशिया में वुशु इंटरनेशनल चैंपियनशिप के 48 किग्रा वर्ग में पदक जीत कर तिरंगा लहराया है।
आतंकवादियों ने अबिदा के पिता की हत्या कर दी थी
आबिदा अख्तर जब 18 महिने की थी उस वक्त उसके पिता की मौत हो गई थी। आबिदा के पिता खुशी मोहम्मद जम्मू कश्मीर पुलिस में थे जिनकी आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। पिता के हत्या के बाद आबिदा के घर की इनकम बंद हो गई लेकिन उसका संघर्ष समाप्त नहीं हुआ।
स्पोर्ट्स के लिए पति को दिया तलाक
अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स से किए बातचीत में आबिदा ने कहा, 'मेरा सपना पूरा हुआ है। शादी के बाद मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं स्पोर्ट्स में फिर कभी लौट भी पाउंगी। शादी से तलाक देने के बाद एक बार फिर मैं उसी खूबसूरत दुनिया में पहुंची हूं'।
आतंक के साये में रहती है आबिदा
आबिदा बांदिपुर के गोजरपट्टी की रहने वाली है जो सबसे ज्यादा आतंक प्रभावित क्षेत्र है। आबिदा के अनुसार, तलाक के बाद शुरू में मुझे समाज से बहिष्कार का डर लग रहा था लेकिन इस परेशानी से बाहर आने में मुझे करीब एक साल लगा और अगर मैं वापस खेल में लौटी हूं तो इसके लिए मेरे कोच फैजल अली और मेरे परिवार का सपोर्ट रहा है।
रोज 5 किमी चलकर जाना पड़ता है ट्रेनिंग सेंटर
आबिदा जब 17 साल की थी तभी फैजल अली मार्शल आर्ट्स स्कूल में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया था। हालांकि इस युवा खिलाड़ी ने अपने ट्रेनिंग के दौरान बहुत संघर्ष किया है। अपने ट्रेनिंग के दौरान रोजाना 5 किमी ऊबड़ खाबड़ जमीन पर चलकर जाना और उसके बाद पब्लिक ट्रांसपोर्ट में आगे 8 किमी तक दूरी तय करना होता था, उस दौरान उसने कभी भी अपने ट्रेनिंग को मिस नहीं किया।
मां से सीखा परिस्थितियों से लड़ना
आबिदा के अनुसार, 'मैंने जिंदगी में कई दिक्कतों का सामना किया है, जिससे मेरी पूरी जिंदगी ही बदल गई । जिस परिस्थितियों में पली बढ़ी हूं और जिन हालातों में मेरी मां ने हमें पाला है, उससे मुझे बाधाओं से लड़ने की असीम शक्ति मिली है'। आबिदा जब बीए की परीक्षा दे रही थी उस वक्त 2013 में उसकी शादी हुई गई लेकिन स्पोर्ट्स में करियर बनाने की जिद्द ने उसकी शादी को लंबे समय तक टिकने नहीं दिया और दो साल बाद उसे अपने पति से तलाक लेना पड़ा।
समाज से लड़कर भरी सपनों की उड़ान
आबिदा ने अपने समाज के खिलाफ जाकर उसके सपनों में उड़ान भरी है। अबिदा के अनुसार, जब मैं ट्रेनिंग के लिए जाती थी तब कई लोग मेरी मां के पास आकर कहते थे कि हमारी लड़कियां स्पोर्ट्स में हिस्सा नहीं लेती है लेकिन मेरी मां ने कभी इन फालतू बातों पर ध्यान नहीं दिया। तलाक के बाद मेरी जिंदगी बदल गई, जब मैं एक बार फिर स्पोर्ट्स में लौटी तब मेरी मां और कोच जो ना सिर्फ मेरे साथ खड़े रहे, बल्कि अच्छा प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने मुझे हमेशा प्रेरित भी किया'।