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रवि दहिया की कामयाबी के पीछे ब्रह्मचारी हंसराज का हाथ, जानिए काैन हैं वो

नई दिल्ली। जब पहलवान रवि दहिया ने टोक्यो ओलंपिक में भारत को सिल्वर मेडल दिलाया, तो वह एक खास सूची में शामिल हो गए थे। उनसे पहले कुश्ती में सुशील कुमार ने ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीता था। टोक्यो की चकाचौंध और दिल्ली हवाईअड्डे पर जोश से भरे स्वागत से दूर एक व्यक्ति को गर्व है कि रवि कुछ कमाल कर पाया। हालांकि उसे हैरानी नहीं थी कि रवि ने मेडल कैसे हासिल किया, क्योंकि वो शख्स जानता था कि रवि के पास वो गुण हैं जो एक पहलवान के पास होने चाहिए। यह शख्स कोई और नहीं, बल्कि ब्रह्मचारी हंसराज हैं जिनका रवि की कामयाबी के पीछे बड़ा हाथ रहा है।

रवि दहिया की महिमा के आधार पर ब्रह्मचारी हंसराज सुर्खियों से दूर रहे। लेकिन हंसराज की भूमिका महत्वपूर्ण थी। युवा रवि ने कुश्ती की दुनिया में तूफान ला दिया और भारत के ओलंपिक इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया।

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रवि दहिया के बचपन के कोच ब्रह्मचारी हंसराज

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रवि छह साल की उम्र में अपने अखाड़े में आए और 12 साल की उम्र तक प्रशिक्षित हुए। किसी भी अन्य कुश्ती कोच के विपरीत हंसराज एक न्यूनतम जीवन शैली को बनाए रखते हैं। उन्होंने 1996 में अपना घर छोड़ दिया था, और तब से वह हरियाणा के सोनीपत जिले का एक गांव नहरी में एक साधु का जीवन जी रहे हैं। हंसराज ने कहा, "मैं बहुत अच्छा पहलवान नहीं था। मेरे बड़े सपने थे, लेकिन मैं उन्हें पूरा नहीं कर पा रहा था। ऐसा लगता है जैसे भगवान ने मेरे सपने सुन लिए हैं, और अब मेरे छात्र मेडल ला रहे हैं। मैंने इतना लोकप्रिय होने के बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा था। मैं हमेशा किसी भी तरह के प्रचार से दूर रहता हूं और बच्चों को प्रशिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करता हूं।"

12 की उम्र में गए थे छत्रसाल

12 की उम्र में गए थे छत्रसाल

भारत के लिए पुरुषों की फ्रीस्टाइल 57 किग्रा वर्ग में सिल्वर मेडल जीतकर टोक्यो से लौटने के बाद रवि दहिया का सोमवार को दिल्ली में भव्य स्वागत हुआ। मंगलवार को छत्रसाल स्टेडियम में इंडिया टुडे से बात करते हुए रवि ने हरियाणा के सोनीपत जिले के अपने गांव नहरी से दिल्ली के स्टेडियम तक के सफर को साझा किया। रवि ने कहा, "जब मैं बच्चा था, मैंने अपने गांव के खेतों से अभ्यास करना शुरू कर दिया था। फिर मेरे गुरुजी हंसराज जी 12 साल की उम्र में मुझे छत्रसाल स्टेडियम ले आए। उन्होंने मुझसे कहा कि सभी अच्छे पहलवान यहीं से बनते हैं। उन्होंने इसी स्टेडियम में अभ्यास भी किया था। फिर मैं यहां आया...मेरे गुरुजी, परिवार और दोस्तों को ओलंपिक में मुझसे बहुत उम्मीदें थीं।''

मोनी के रूप में पुकारते थे हंसराज

मोनी के रूप में पुकारते थे हंसराज

वहीं हंसराज ने कहा, "रवि को उनके पिता ने 6 से 7 साल की कम उम्र में लाया था और फिर मैंने उन्हें अंतरराष्ट्रीय कोचों के तहत छत्रसाल स्टेडियम में स्थानांतरित करने से पहले अगले छह वर्षों के लिए प्रशिक्षित किया। जब मैंने टीवी पर पहली बार रवि के ओलिंपिक टीम में चुने जाने की खबर देखी तो मैंने उसे पहचान लिया। हम उसे अखाड़े में मोनी के रूप में जानते थे।"

Story first published: Tuesday, August 10, 2021, 19:34 [IST]
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