साक्षी मलिक
साक्षी मलिक... 18 अगस्त 2016 से पहले तक यह नाम इतना चर्चित नहीं था, लेकिन रियो ओलंपिक खेलों में जिस समय पदक की उम्मीदें धराशाई हो रही थीं तो मात्र 23 साल की देश की इस बेटी ने कांस्य पदक हासिल कर पूरे भारत का नाम बुलंद कर दिया। साक्षी के पदक के साथ ही ओलंपिक में भारत का खाता खुला। रियो ओलंपिक में 58 किलोग्राम भारवर्ग की फ्रीस्टाइल कुश्ती में साक्षी मलिक ने किर्गिस्तान की एसुलू तिनिवेकोवा को 8-5 से हराकर कांस्य पदक पर कब्जा जमाया। साक्षी को यह पदक जीतने के लिए रेपचेज मुकाबलों के दो राउंड जीतने थे और उन्होंने यह कर दिखाया। साक्षी के पिता सुखबीर मलिक डीटीसी में बस कंडक्टर हैं और उनकी मां सुदेश मलिक रोहतक में आंगनबाड़ी सुपरवाइजर हैं। ये भी पढ़ें- साल 2016: लोगों ने सबसे ज्यादा गूगल पर खोजा धोनी की प्रेमिका को...
पीवी सिंधू
साक्षी मलिक के बाद भारत की बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु ने रियो ओलंपिक में रजत पदक पाकर देश को दूसरा मेडल दिलाया। 120 साल के ओलंपिक इतिहार में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीतने वाली पीवी सिंधु पहली महिला हैं। देश को उनसे गोल्ड की उम्मीद थी लेकिन जब उन्हें सिल्वर मेडल मिला तो पूरे देश ने उनपर नाज किया। लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि गोल्ड कोई भी ले जाए, पीवी सिंधू ही हमारे लिए सोना है। पीवी सिंधू यहीं नहीं रुकीं। इसके बाद पीवी सिंधु ने चाइना ओपन सुपर सीरीज में जीत हासिल की। सिंधु ने चीन की सुन यू को 21-11, 17-21, 21-11 से हराकर खिताब अपने नाम किया।
दीपा मलिक
सितंबर 2016 में हुए रियो पैरालंपिक खेलों में भारत की दीपा मलिक ने सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। उन्होंने यह पदक गोला फेंक एफ-53 प्रतियोगिता में जीता। पैरालंपिक में भारत के लिए पहला पदक जीतकर दीपा ने मिसाल कायम की। दीपा को बचपन में ही स्पाइनल कॉर्ड में ट्यूमर हो गया था। इसकी वजह से उनकी कमर के नीचे का पूरा हिस्सा लकवाग्रस्त है। इसकी वजह से उनका चलना-फिरना असंभव हो गया था। दीपा सिर्फ गोला फेंक ही नहीं बल्कि भाला फेंक, तैराकी आदि में भी पार्टिसिपेट कर चुकी हैं। वह तैराकी की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा ले चुकी हैं। वह भाला फेंक में एशियाई रिकॉर्डधारी होने के साथ ही गोला फेंक और चक्का फेंक में विश्व चैंपियनशिप पदक विजेता भी हैं। दीपा दो बच्चों की मां भी हैं।
दीपा कर्माकर
ओलंपिक खेलों में दीपा कर्माकर हालांकि भारत को कोई मेडल नहीं दिला पाईं लेकिन 22 साल की इस जिमनास्ट ने जिम्नास्टिक के फाइनल में पहुंचकर इतिहास रच दिया। ओलंपिक खेलों की जिम्नास्टिक स्पर्धा में 52 साल बाद पहली बार कोई भारतीय महिला एथलीट फाइनल में पहुंची। वह महज कुछ अंकों से कांस्य पदक से चूक गईं। दीपा के ओलंपिक तक का सफर आसान नहीं रहा। बेहद साधारण परिवार से आने वाली दीपा ने जब पहली बार किसी जिमनास्टिक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया तब उनके पास जूते भी नहीं थे। दीपा के लिए जिमनास्ट बनना आसान नहीं था, क्योंकि उनके तलवे बिल्कुल फ्लैट थे, जो कि एक जिमनास्ट के लिए अच्छा नहीं माना जाता है लेकिन कड़े अभ्यास और अपने मनोबल के कारण दीपा ने इसे बाधा बनने नहीं दिया।
अदिति अशोक
रियो ओलंपिक में भारत का नाम रोशन करने वाली बेटियों में युवा गोल्फर अदिति अशोक का भी नाम है। इन्होंने रियो ओलंपिक में पदक तो नहीं जीता लेकिन फिर भी अपने बेहतरीन खेल से सभी को प्रभावित जरूर किया। रियो ओलंपिक के समय 18 वर्षीय अदिति को पेशेवर गोल्फर बने महज 6 महीने ही हुए थे। हाल ही में अदिति ने इंडियन ओपन का खिताब भी अपने नाम किया। अदिति लेडीज का यूरोपीय टूर प्रतियोगिता अवॉर्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला गोल्फर हैं। इस टूर्नामेंट को लेडीज यूरोपीय टूर और भारतीय महिला गोल्फ संघ की तरफ से संयुक्त रूप से मान्यता प्राप्त है। इसमें दुनियाभर से कुल 114 प्रोफेशनल प्लेयर्स ने पार्टिसिपेट किया।