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BBC Hindi

क्या टीम पर बोझ बन गए हैं बांग्लादेश के कप्तान ?

By Bbc Hindi

अठारह साल क्रिकेट खेल चुका एक क्रिकेटर क्या कर रहा होता है? आप कहेंगे ज़्यादातर क्रिकेटर कमेंट्री, कोचिंग या फिर क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन का रास्ता अपना लेते हैं.

लेकिन बांग्लादेश क्रिकेट टीम के कप्तान मशरफे बिन मुर्तज़ा उनमें से नहीं हैं. उन्हें अभी भी मैदान पर गेंद के साथ भागते हुए देखा जा सकता है.

बांग्लादेश में उनकी शोहरत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पिछले साल दिसंबर में हुए चुनाव में मुर्तज़ा देश की संसद के लिए चुने गए.

वे सत्तारूढ़ आवामी लीग के सांसद हैं. मौजूदा वर्ल्ड कप के दौरान बांग्लादेश के क्रिकेट फ़ैंस के बीच मुर्तज़ा को लेकर लगातार चर्चा होती रही.

वर्ल्ड कप में अपनी परफ़ॉरमेंस को लेकर वे क्रिकेट फ़ैंस के निशाने पर रहे. आलोचक ये भी कहते रहे कि मुर्तज़ा जिस चीज के लिए जाने जाते हैं, इस विश्व कप में वो बात नहीं दिखी. उन्होंने वर्ल्ड कप में सिर्फ एक विकेट लिया और बतौर बल्लेबाज़ सिर्फ 49 रन बनाए.

कप्तान के रोल में...

बांग्लादेश क्रिकेट में मुतर्ज़ा को ऐसे गेंदबाज़ के तौर पर देखा जाता है जो लगभग हर मैच में 10 ओवर में 40 से 60 रन देकर 2-3 विकेट लेने का माद्दा रखते हैं.

लेकिन जो बात ज़्यादा मायने रखती है, वो ये है कि कप्तानी की ज़िम्मेदारी मिलने के बाद से ही मुर्तज़ा का दर्ज़ा न केवल टीम में बल्कि बांग्लादेश के क्रिकेट फ़ैन्स के बीच भी लार्जर दैन लाइफ़ वाला रहा है.

कप्तान के तौर 100 विकेट लेने से मुर्तज़ा अभी केवल दो विकेट के फ़ासले पर हैं. अभी तक ये रिकॉर्ड केवल शॉन पोलक और वक़ार यूनुस के नाम रहा है.

वे बांग्लादेश की तरफ़ से अंतरराष्ट्रीय एक दिवसीय क्रिकेट में सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज़ हैं.

प्रदर्शन पर प्रश्न

लेकिन मुर्तज़ा को लेकर क्रिकेट पर नज़र रखने वाले लोगों के कई सवाल भी हैं. उनके आंकड़े इन सवालों की तस्दीक करते हैं.

मुर्तज़ा का गेंदबाज़ी औसत 32 के क़रीब है जबकि विश्व कप में यही औसत 53 का है.

इसी विश्व कप में मुतर्ज़ा ने आठ मैचों में केवल एक विकेट लिया है. ज़्यादातर मैचों में उन्होंने अपने कोटे के पूरे 10 ओवर की गेंदबाज़ी भी नहीं की है.

रन देने के मामले में मुर्तज़ा का औसत भी उनके प्रदर्शन पर सवाल खड़ा करता है. उन्होंने हर ओवर में औसतन 6.5 से 7.5 रन दिए हैं और कभी-कभी तो 8 रन तक.

क्रिकेट फ़ैंस और पंडित दोनों ही अब ये पूछने लगे हैं कि क्या वे ऐसे कप्तान बन गए हैं जो अपनी ही टीम पर बोझ हो गया हैं?

राजनीति की पिच पर...

राजनीति के मैदान पर उतरने के बाद से ही मुर्तज़ा आलोचकों के निशाने पर रहे हैं. उन्हें टीम की एक कमज़ोर कड़ी के तौर पर देखा जा रहा है.

अतीत में टीम पर उनका असर हमेशा से रहा है लेकिन विश्व कप जैसे मौके पर उन्हें टीम से बाहर रखा जा सकता था.

शारीरिक और मानसिक तौर पर कोई ज़्यादा मजबूत खिलाड़ी उनकी जगह ले सकता था.

अगर टीम का सबसे अहम गेंदबाज़ ही पूरे दस ओवर गेंद न फेंक पाए तो बाक़ी खिलाड़ियों पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव के बारे में समझा जा सकता है.

शायद यही वजह है कि सेमीफ़ाइनल में पहुंचने की दौड़ से बांग्लादेश बाहर रह गया.

BBC Hindi

Read more about: bangladesh captain team world cup
Story first published: Saturday, July 6, 2019, 16:21 [IST]
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