नई दिल्ली। भारत देश में ओलंपिक मेडल जीतना एक बड़ी बात है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाराष्ट्र सरकार की ढिलाई की वजह से भारत का पहला ओलंपिक मेडल नीलाम होने की कगार पर आ गया है। जी हां, दरअसल फर्स्ट पोस्ट की खबर के मुताबिक भारत को ओलंपिक इतिहास में पहला मेडल दिलाने वाले शख्स का परिवार अपने एक सपने को पूरा करने के लिए मेडल तक बेचने को तैयार है। आपको बता दें कि रेसलर खसाबा दादासाहेब जाधव ने 1952 में हेलसिंकी में हुए ओलिंपिक में भारत के लिए पहला मेडल (ब्रॉन्ज) जीता था।
दरअसल उनका सपना था कि सतारा के गोलेश्वर में एक एकेडमी खोलें लेकिन पैसों की कमी के चलते यह अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। उनके बेटे रंजीत जाधव नर बताया कि जब उनके पिताजी ने देश के लिए पहला मैडल जीता था तो उनका सपना था कि उनके गांव में एक रेसलिंग एकेडमी बने। खबर के मुताबिक इसके लिए उनके परिवार ने बहुत कोशिशें भी कीं लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं लगी।
उन्होंने बताया कि साल 2009 में महाराष्ट्र के खेल मंत्री ने इस एकेडमी के लिए 1.58 करोड़ रुपये की मदद की घोषणा भी की थी लेकिन दिसंबर 2013 तक कुछ नहीं हुआ। अब एकेडमी की लागत दोगुनी हो चुकी है।
गोलेश्वर की पंचायत और उनके परिवार ने तय किया है कि अब इस मुद्दे को अपने हाथों में लेकर एकेडमी का निर्माण करवाएंगे। उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उनकी मदद नहीं कि गई तो उन्हें मजबूरन अपना मैडल बेचना पड़ेगा। फर्स्ट पोस्ट के मुताबिक उनके बेटे ने बताया, 'हम सरकार को 14 अगस्त तक का समय देंगे। मेरे पिता जी की 33वीं पुण्यतिथी तक अगर सरकार अपना वादा पूरा नहीं करती तो हमारा परिवार भूख हड़ताल पर बैठेगा।
मैडल नीलामी के सवाल को लेकर उन्होंने कहा कि इसे नीलम करने में सबसे बड़ी परेशानी यह है कि उन्हें इसका वास्तविक मूल्य नहीं पता है। इस बाबत जाधव के परिवार ने सरकार से मांग की है कि वो मेडल का वास्तविक मूल्य बताये। मेडल की नीलामी की बात पर सरकारी अधिकारियों ने कहा कि वे निजी तौर पर CM से बात करेंगे और उनके परिवार की CM से मिलवाने का प्रयास करेंगे।
आपको बता दें कि मालूम हो भारत को दूसरे ओलिंपिक मेडल के लिए 44 साल का इंतजार करना पड़ा था जब टेनिस प्लेयर लिएंडर पेस ने 1996 में ब्रॉन्ज मेडल जीता था।