मेडल जीतने के 10 दिन बाद पानीपत पहुंचे
नीरज गोल्ड मेडल जीतने के 10 दिन बाद पानीपत पहुंचे। गांववाले अपने गोल्डन ब्वॉय की झलक पाने के लिए बेताब थे। समालखा के हल्दाना बॉर्डर से करीब 24 किलोमीटर दूर उनके गांव खंडरा के लिए काफिला रवाना हुआ। लोगों ने फूलों की बारिश नीरज पर की। जिला प्रशासन ने फूलमाला पहनाकर नीरज चोपड़ा का स्वागत किया। नीरज के गांव खंडरा से 5 किलोमीटर पहले गांव खुखराना के लोगों ने चांदी का भाला नीरज को भेंट किया। यहां नीरज के लिए 100 मीटर का स्वागत स्टेज बनाया गया, जिसकी 20 मीटर दूरी तक सिक्योरिटी गार्ड तैनात रहे। उसके बाद वीआईपी मेहमानों के बैठने का इंतजाम किया गया था।
दूसरी थ्रो 87.58 मीटर की फेंकी थी
नीरज ने ज्वेलिन थ्रो में भारत को गोल्ड मेडल दिलाया था। यह भारत को ट्रैक एंड फील्ड में मिला एकमात्र गोल्ड मेडल है। नीरज ने ना केवल एथलेटिक्स में देश का सूखा खत्म किया बल्कि सीधा गोल्ड पर निशाना साध कर व्यक्तिगत स्पर्धा में अभिनव बिंद्रा के बाद देश को दूसरा मेडल गोल्ड मेडल भी दिला दिया। नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक प्रतियोगिता के फाइनल में अपनी दूसरी थ्रो 87.58 मीटर की फेंकी थी जो उनके लिए 'सोने पे सुहागा' साबित हुई।
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काफी व्यस्त हैं नीरज
बता दें कि टोक्यो से भारत पहुंचने के बाद नीरज चोपड़ा काफी व्यस्त चल रहे हैं। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो मेडल जीतने के 10 दिन बाद जाकर अपने गांव पहुंच सके हैं। इससे पहले वह दिल्ली में थे, जहां उन्हें कई कार्यक्रम स्थलों पर हाजिर देनी पड़ी थी। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे से भी नीरज ने मुलाकात की थी। नीरज 2016 में भारतीय सेना में नायब सूबेदार के पद पर जूनियर कमीशंड ऑफिसर के तौर पर शामिल हुए थे। नीरज समेत टोक्यो गए सभी एथलीट को पीएम मोदी ने 15 अगस्त के माैके पर लाल किले में भी सम्मानित किया। फिर रविवार शाम पीएम मोदी ने नीरज के साथ चूरमा भी खाया था। बता दें कि नीरज का जन्म 24 दिसंबर 1997 को हरियाणा के खांद्रा गांव में हुआ था। वह गरीब किसान परिवार से आते हैं। नीरज जब 11 साल के थे तो वह मोटापे के शिकार हो गए थे। उनके घर वाले परेशान थे कि इतनी कम उम्र में उनके बेटे को मोटापा कैसे आ गया। लिहाजा उन्होंने नीरज को सलाह दी कि वो खेल-कूद की तरफ ध्यान दे।