टेनिस में 4 तरह की सतह होती है-
अगर टेनिस की बात करें तो यह खेल 4 तरह की सतह पर खेला जाता है जिसमें क्ले कोर्ट, हार्ड कोर्ट, ग्रास कोर्ट, और कारपेट कोर्ट होती है। इन सतहों के अपने फीचर्स होते हैं जो किसी जो खिलाड़ी के प्लेइंग स्टाइल को प्रभावित कर सकते हैं।
ग्रास कोर्ट
हम जब ग्रास कोर्ट की बात करते हैं तो यह टेनिस की सबसे तेज सतह होती है। ग्रास कोर्ट पर घास नेचुरल तरीके से उगाई जाती है और यहां पर गेंद पड़ने के बाद काफी तेज निकलती है और बाउंस इस बात पर निर्भर करता है कि मौजूद घास कितनी ज्यादा है या कम है। ऐसी सतह पर सर्व (जिसकी सर्विस होती है) करने वाले खिलाड़ी को काफी फायदा मिलता है। ग्रास कोर्ट पर एक अच्छी सर्विस करने वाले एडवांटेज में रहता है। आज की तारीख में जो ग्रांड मुकाबले होते हैं उनमें ग्रास कोर्ट का इस्तेमाल कम होता है क्योंकि इसकी मेंटेनेंस काफी महंगी होती है और ग्रास कोर्ट पर चलने वाले सीजन काफी छोटे हो सकते हैं।
रोजर फेडरर और पीट सेप्रास जैसे खिलाड़ी ग्रास कोर्ट के दिग्गजों में रहे हैं। टेनिस का आध्यात्मिक घर कहा जाने वाला विंबलडन ग्रास कोर्ट पर ही खेला जाता है।
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यहां भी पड़ता है कोर्ट बदलने पर फर्क-
क्ले कोर्ट
अब बात करते हैं क्ले कोर्ट की जो ईंट और पत्थरों से मिलकर बनी होती है। ग्रास कोर्ट के बिल्कुल विपरीत क्ले कोर्ट में गेंद पड़ने के बाद थोड़ी धीमी हो जाती है लेकिन यहां पर बाउंस देखने को मिलता है। क्ले कोर्ट पर सर्विस करने वाले खिलाड़ी को बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिलता है। उत्तरी अमेरिका की तुलना में यूरोप और लैटिन अमेरिका में क्ले कोर्ट ज्यादा देखने को मिलती है। क्ले कोर्ट के सीजन लंबे होते हैं और यह एटीपी टूर थ्री मास्टर 1000 टूर्नामेंट और फ्रेंच ओपन जैसी प्रतियोगिताओं में देखने को मिलती है।
हार्ड कोर्ट
अगर हार्ड कोर्ट की बात करें तो यह सतह खास किस्म के मटेरियल से बनी होती है जिसके ऊपर ऐक्रेलिक (हार्ड प्लास्टिक जैसी चीज) की एक परत चढ़ाई जाती है और यहां पर आपको बाउंस में काफी अच्छी समानता देखने को मिलती है। यह सतह भी तेज होती है लेकिन ग्रास कोर्ट से तेजी में नहीं जीत सकती। यूएस ओपन, ऑस्ट्रेलियन ओपन जैसे ग्रेड स्लैम हार्ड कोर्ट पर ही खेले जाते हैं।
कारपेट कोर्ट
कारपेट कोर्ट का मतलब यह होता है कि कोई भी ऐसी सतह जिसको आप हटा सकें। इस तरह की कवरिंग आपको इंडोर खेलों में देखने को मिल जाती है जहां पर टेनिस इवेंट के दौरान टेंपरेरी तौर पर कारपेट कोर्ट इस्तेमाल में लाई जा सकती है। हालांकि अब बड़े बड़े टूर्नामेंटों में इसका इस्तेमाल काफी कम होता है।
फुटबॉल में मिलती हैं दो तरह की सतह-
बात करते हैं दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल की। फुटबॉल में सामान्यतः दो प्रकार के सतहें मिलती हैं- एक नेचुरल घासयुक्त और दूसरी आर्टिफिशियल सरफेस
आर्टिफिशियल सतह
फुटबॉल में आर्टिफिशियल सतह के कई प्रकार होते हैं। कई जगह आपको आर्टिफिशियल ग्रास देखने को मिलती है। टेनिस की हार्ड कोर्ट की तरह की फुटबॉल में भी सतह बनाने के लिए एक्रेलिक का प्रयोग काफी होता है यह एक प्रकार की प्लास्टिक होती है जिसकी मोटाई 2 से 3 मिलीमीटर होती है। बताते हैं कि इस खास सतह परचोट लगने की गुंजाइश कम होती है और खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस भी काफी बेहतर तरीके से विकसित हो जाती है। दूसरी बात यह है कि इस तरह की सतह मल्टीपर्पज स्पोर्ट्स फील्ड का निर्माण करती हैं जहां पर आप अन्य खेल जैसे कि एथलेटिक्स भी खेल सकते हैं।
सतह के बदलने से फुटबॉल में पड़ता है दूसरी तरह का फर्क-
मजेदार बात यह है कि फुटबॉल में नेचुरल और आर्टिफिशियल सतह एक अलग ही तरह का चैलेंज खिलाड़ियों के सामने पेश करती है। रिसर्च के अनुसार खिलाड़ियों का कौशल और अन्य चुनौतियां नहीं बदलती हैं बल्कि यह खिलाड़ियों की फिटनेस है जो सतह के बदलने पर काफी प्रभावित हो सकती है। आमतौर पर यह एक स्थापित सत्य है कि नेचुरल सतह खिलाड़ियों के लिए कहीं अधिक बेहतर होती है और आर्टिफिशियल सतह पर खिलाड़ियों को चोट लगने की संभावनाएं काफी रहती हैं। इस तरह की कई स्टडीज की गई है जिनमें पता लगा है कि प्लास्टिक की सतह पर खेलते हुए जो फ्रिक्शन पड़ता है उसकी वजदह से खिलाड़ियों के टखनों और घुटनों में चोट लगने की संभावनाएं ज्यादा रहती है।
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हॉकी में सतह बदलने से भारत का पूरा खेल ही बदल गया-
फुटबॉल की तरह ही हॉकी में भी मुख्यतः दो प्रकार की सतह आपको देखने को मिलती हैं जिनमें नेचुरल घास होता है उसको नेचुरल टर्फ बोलते हैं और जो दूसरी सतह है वह वह आर्टिफीसियल टर्फ कहलाती है। हॉकी में एक बहुत ही दिलचस्प किस्म का आकलन यह निकल कर आता है कि सतह के बदलने के साथ एक देश का खेल पूरा प्रभावित हो जाता है।
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वर्ल्ड हॉकी मैगजीन के अनुसार 1975 में आर्टिफिशियल सतह पर पहला हॉकी टूर्नामेंट खेला गया था। यह ओलंपिक से पहले एक ट्रायल के तौर पर हो रहा था क्योंकि यह बताया जा रहा था कि इस तरह की सतह पर खेलने के बहुत सारे फायदे हैं। हालांकि यह बनाने में काफी महंगी पड़ती है, इसीलिए विकसित पश्चिमी देश इनको अधिक बना सकते हैं और वहां के खिलाड़ियों को आसानी के साथ ढलने का समय मिल जाता है।
लेकिन भारतीय हॉकी के साथ ऐसा नहीं हुआ और यहां के हॉकी खिलाड़ियों ने इस तरह की सतह पर अपने आप को ढालने में समय लिया। यहां हम आपको बता दें की हॉकी में आर्टिफिशियल सतह के आने से पहले इस खेल में वैश्विक स्तर पर भारत का काफी बोलबाला था। भारत ने 1928 से 1964 के बीच में 8 में से 7 ओलंपिक गोल्ड मेडल हॉकी में जीते थे। 1996 में भारतीय हॉकी खिलाड़ी अजित पाल सिंह ने कहा था कि भले ही भारत का आकार बहुत बड़ा है लेकिन वह आर्टिफिशियल सतह मुश्किल से 12 या उससे थोड़ी ज्यादा ही बना सकता है तो हॉकी में भी सतह बदलने से एक पूरी टीम का प्रदर्शन प्रभावित हुआ।