हालांकि मंगलवार को भारत ने श्रीलंका के हाथों करारी हार का स्वाद चखा है। जिसका बदला चुकाने के लिए उसके पास कल यानी 24जून को भरपूर मौका होगा। श्रीलंका की टीम फिर से मजबूत एकदिवसीय टीम बनने की ओर कदम बढ़ा रही है। वर्ष 2008 के बाद से श्रीलंका ने भारत को तीन वनडे फाइनल में रौंदा है, इसके अलावा उन्होंने ट्वेंटी-20 विश्व कप में भी टीम को पछाड़ा था।
इससे साफ दिखता है कि भारतीय टीम में हरभजन सिंह और आशीष नेहरा की वापसी के बावजूद उन्हें हराना इतना आसान नहीं होगा। इन दोनों खिलाड़ियों को मंगलवार के मैच में आराम दिया गया था। धोनी यह भी उम्मीद लगाए होंगे कि टीम 15 साल तक एशिया कप में खिताब का सूखा भी खत्म कर दे, क्योंकि भारत ने 1995 में शारजाह में अपनी अंतिम एशिया कप ट्रॉफी हासिल की थी।मंगलवार को मिली हार ने सिर्फ भारतीय बल्लेबाजी की कमजोरियों की पोल नहीं खोली, बल्कि चयन मुद्दों पर भी कुछ सवाल उठा दिए।
टीम प्रबंधन का दिनेश कार्तिक को नियमित सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग के चोटिल होने के बाद बुलाने का फैसला भी हालांकि हैरानी भरा नहीं रहा। टीम प्रबंधन का सबसे हैरत भरा निर्णय पिछले मैच में लेग स्पिनर प्रज्ञान ओझा को शामिल करना रहा।
धोनी को ऑफ स्पिन के लिए आर अश्विन को टीम में शामिल करना चाहिए था। लेकिन उन्होंने ओझा को खिलाना बेहतर समझा, जबकि भारत के पास लेग स्पिनर रविंदर जडेजा मौजूद था। पूरे टूर्नामेंट में ऑफ स्पिनरों का दबदबा रहा है, लेकिन भारत ने इस तथ्य पर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। वहीं श्रीलंका ने टीम का चयन बहुत चतुराई से किया। अरविंदा डि सिल्वा और साथी चयनकर्ताओं ने 2011 विश्व कप को ध्यान में रखते हुए खिलाड़ियों का चयन किया है।
लेकिन रैना, हरभजन, गंभीर और खुद कप्तान धोनी की मौजुदगी एक मैच को जीताने के लिए काफी है, कुल मिलाकर मुकाबला रोमांचक होने की उम्मीद है क्योंकि श्रीलंका भारत को हराने के बाद और भारत पाकिस्तान को हराने के बाद जबरदस्त आत्मविश्वास से लबरेज है। और आत्मविश्वास और हौसला ही किसी भी टीम की सफलता की कहानी गढ़ते है। तो देखना न भूले 24 जून को भारत-श्रीलंका का क्रिकेट मुकाबला।