श्रीनगर। कितनी अजीब बात है कि जिस कश्मीर से आने वाली लकड़ी के बैट ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और भारत के तमाम जाने-माने क्रिकेटर प्रयोग करते हैं, उस राज्य से वर्ल्ड कप के लिए अब पहले खिलाड़ी का सेलेक्शन हुआ है।
मुंबई से कश्मीर के लिए गुड न्यूज
गुरुवार को मुंबई से हजारों मील दूर कश्मीर तक एक अच्छी खबर पहुंची। खबर थी क्रिकेटर परवेज रसूल के वर्ल्ड कप 2015 के संभावितों में चयन की। परवेज रसूल घाटी के पहले ऐसे क्रिकेटर हैं जिन्हें वर्ल्ड कप खेलने का मौका मिल रहा है। लेकिन रसूल के लिए घाटी से निकलकर क्रिकेट की पिच तक का सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है।
अनंतनाग के रहने वाले रसूल
25 वर्ष के रसूल अनंतनाग के रहने वाले हैं। अनंतनाग कश्मीर का वह जिला है जिसने 90 के दौर में चरमपंथ का एक अलग ही रूप देखा है। अब्दुल कयूम जो राज्य के लिए रणजी स्तर पर क्रिकेट खेल चुके हैं, रसूल उनके शार्गिद बने।
कयूम से पहले रसूल के पिता गुलाम रसूल उन्हें क्रिकेट सिखाते थे। रसूल के साथ उनका भाई आसिफ रसूल भी क्रिकेट खेलता था। आज रसूल जम्मू कश्मीर टीम के कैप्टन हैं और साथ ही साथ वह इंडिया ए के भी नियमित खिलाड़ी हैं।
एक हादसे से सहम गए थे रसूल
रसूल का क्रिकेट करियर शुरू हो चुका था लेकिन वर्ष 2009 में उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जो आज तक उनके लिए बुरे सपने की तरह है। रसूल सीके नायडू ट्रॉफी में जम्मू कश्मीर की अंडर-22 टीम के साथ बेंगलुरु आए थे।
रसूल को पुलिस ने रोक लिया। पुलिस को शक था कि उनके बैग एक्सप्लोसिव है। पुलिस ने स्निफर डॉग से रसूल के बैग की चेकिंग करवाई। वह केएससीए के कॉम्प्लेक्स में ठहरे थे। होटल में चेेकिंग के अलावा इस कांप्लेक्स की भी तलाशी ली गई।
बल्ले से दिया रसूल ने जवाब
घंटों की पूछताछ के बाद रसूल को छोड़ा गया क्योंकि पुलिस को उनके खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिल पाया। जिस बैग की तलाशी पुलिस स्निफर डॉग से करवा रही थी उसमें से उन्हें सिर्फ पवित्र कुरान और जानमाज ही मिला।
रसूल ने अपने साथ हुई नाइंसाफी का जवाब बल्ले से दिया। मुंबर्इ की टीम के खिलाफ रसूल ने दो शानदार हाफ सेंचुरी बनाईं। सीके नायडू ट्रॉफी में उन्होंने सिर्फ 47 गेंदो पर 69 रन ठोंक डाले। रसूल ने यह पारी अपने साथ घटी घटना के सिर्फ चार दिनों के बाद खेली थी।