जब कोई नहीं था तब पर्रिकर ने की मदद-
ये उस समय की बात है जब तेजस्विनी की उम्र की भी कम थी और वे लोगों के बीच खास चर्चित भी नहीं थी। ऐसे में उनको जर्मनी में विश्व शूटिंग चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत थी। उस समय उनकी मदद के लिए और कोई नहीं बल्कि मनोहर पर्रिकर सामने आए थे। महाराष्ट्र के कोल्हापुर से आने वाली इस खिलाड़ी के लिए यह मदद ना केवल निर्णायक साबित हुई बल्कि उसके बाद उनहोंने अपने खेल करियर में नया मुकाम भी बनाया।
पर्रिकर के जाने के बाद अफसोस में सावंत-
आज जब पर्रिकर हम सबके बीच में नहीं है तो सावंत को इस बात का अफसोस जरूर है कि वो ठीक से उनका धन्यवाद भी नहीं दे पाई। उन्होंने बताया, 'मेरी पर्रिकर के साथ मुलाकात बहुत संक्षिप्त रही। उन्होंने मेरे प्रदर्शन के बारे में सुन रखा था और मेरे अनुमानित खर्च के बारे में पूछा जिसके बाद उन्होंने तुरंत एक चेक पर साइन कर दिए।' सावंत ने बताया कि यह रकम करीब एक लाख रुपए थी।
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पर्रिकर की मदद ने बदली तकदीर
उस समय ये सावंत की सबसे बड़ी जरूरत थी जिसने बाद में उनके पूरे करियर का रुख ही पलटकर रख दिया। उस प्रतियोगिता में तेजस्विनी का प्रदर्शन काफी उल्लेखनीय रहा था और उन्होंने दो राउंड में 400 में से 397 और 396 अंक हासिल किए थे। इसके बाद तेजस्विनी ने पलटकर मुड़कर नहीं देखा और वे किसी विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला शूटर बनी। 2006 के बाद से तेजस्विनी ने कई अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में गोल्ड व अन्य मेडल जीते है। खास बात यह थी कि पर्रिकर ने सावंत को सरकारी नहीं बल्कि अपने जेब से पैसे दिए थे।