नई दिल्ली: जम्मू और कश्मीर में खेलों को बढ़ावा देने का काम लगातार जारी है। हाजीबुल का सरकारी हाई स्कूल पिछले साल 60 में ऐसा पहला स्कूल बना था जो दूर-दराज क्षेत्र में होकर भी खेल टीचर से लैस हुआ।
लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू बताता है कि हालात अभी भी खराब है क्योंकि इस स्कूल में खेल टीचर को मात्र 3 हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाते हैं। जबकि यूटी खेल विभाग के एक चपरासी को भी 18 हजार रुपए हर महीने दिए जाते हैं जो खेल टीचर की तुलना में सीधे 6 गुना ज्यादा है। जबकि 3 हजार रुपए हासिल करने वाला टीचर भी जम्मू और कश्मीर के यूथ सर्विस और खेल विभाग के तहत कार्यरत है।
हिंदुस्तान टाइम्स के साथ अपनी स्थिति के बारे में बात करते हुए इस बात की जानकारी खुद एक खेल टीचर, 31 वर्षीय राउफ अहमद ने दी। ये ऐसे खेल टीचर हैं जिन्होंने अपने राज्य स्तर पर कई प्रतियोगिताएं जीती हैं और कमोबश बहुतों का यही हाल है।
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इन टीचरों की नियुक्ति रहबर-ए-खेल नामक स्कीम के तहत हुई है। केवल राहत की बात इतनी है कि यूथ सर्विस और खेल विभाग इस बात को जानता है कि टीचरों को मिलने वाला पैसा काफी कम है।
राउफ का रोजाना आने जाने का खर्च ही 100 रुपए आ जाता है जबकि इतनी उनकी रोज की कमाई है। इस बारे में बात करते हुए गर्वमेंट सीनियर स्कूल, श्रीनगर में कार्यरत राज्य की पूर्व महिला क्रिकेट टीम कप्तान सायिमा राशिद कहती हैं, "नेशनल लेवल के प्लेयर को रोज 100 रुपए देना किसी मजाक से कम नहीं है। "
दरअसल यह रहबर-ए-खेल स्कीम में 7 साल का प्रोबेशन पीरियड होता है जबकि अन्य राज्यों में ऐसी ही स्कीम 1 या 2 साल में अपना ये समय पूरा कर लेती हैं।
प्रोबेशन के पहले दो साल में खेल टीचर को 3 हजार और फिर अगले 4 साल तक चार हजार रुपए मिलेंगे। इसके बाद अगर कोई पोस्ट खाली मिलती है तो उनको पक्का कर दिया जाएगा और सीधे 40 हजार रुपए महीना की सैलरी बंध जाएगी।
हरियाणा और पंजाब जैसे इलाकों में शुरुआती स्तर पर 35 हजार रुपए मिलते हैं और बाकी सरकारी स्कूल में भी यह 30 हजार से ऊपर है।