नई दिल्ली। ओलंपिक के 32वें संस्करण का आयोजन शुक्रवार से जापान की राजधानी टोक्यो में होने जा रहा है, इस दौरान ओलंपिक में पहुंचने वाले खिलाड़ी के लिये खाली स्टेडियम में प्रदर्शन करना पदक जीतने जितनी ही बड़ी चुनौती है। इन खिलाड़ियों ने पहले ही देरी से हो रहे ओलंपिक खेल, कोरोना वायरस के सख्त क्वारंटीन नियम और लॉजिस्टिकल चुनौतियों को पार करने के बाद यहां पर अपनी जगह बनाई है। ऐसे में मनोचिकित्सकों का मानना है कि खाली स्टेडियम में होने वाले यह मैच इन खिलाड़ियों के लिये काफी चुनौती भरे साबित हो सकते हैं।
विशेषज्ञों को अब भी नहीं पता है कि खाली स्टेडियम के चलते एथलीट के प्रदर्शन पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है लेकिन ओलंपिक में भाग लेने वाले कई खिलाड़ी इसको लेकर अपनी आशंका जता चुके हैं कि स्टेडियम में बिना दर्शकों की आवाज, परिवार और फैन्स के समर्थन के कैसा प्रदर्शन करेंगे यह नहीं पता।
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अमेरिकी जिम्नास्टिक्स के स्टार सिमोन बाइल्स ने एपी के साथ बात करते हुए कहा कि मुझे भीड़ के बीच प्रदर्शन करना पसंद है और ऐसी परिस्थितियों में ओलंपिक में प्रदर्शन करने को लेकर मैं थोड़ा चिंतित हूं। वहीं पर 3000 मीटर महिला स्टेपल चेज में पहली बार ओलंपिक का हिस्सा बनने वाली वैलेरी कॉन्सटीन ने कहा कि कोच और साथियों से फैन्स की आवाज और उनकी तालियों से मिलने वाली एनर्जी के बारे में काफी सुना है जिससे पता लगता है कि वह काफी प्रेरित करने वाला होता है लेकिन खाली स्टेडियम में खेलना काफी निराशाजनक रहने वाला है, मैं वो अनुभव हासिल नहीं कर सकूंगी।
गौरतलब है कि इस मुद्दे पर कई रिसर्च की जा चुकी है जिसके अनुसार मैच के दौरान अगर फैन्स एथलीट का उत्साह बढ़ाने के लिये स्टेडियम में मौजूद होते हैं तो उसके प्रदर्शन पर काफी प्रभाव पड़ता है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि ओलंपिक अपने आप में एक बड़ा इवेंट होता है तो ऐसे में दर्शकों का न होना खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर कितना प्रभाव डालेगा उसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
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साइकोलॉजी प्रोफेसर सैम सोमर्स ने इस पर बात करते हुए कहा कि हम नहीं जानते कि इसका क्या प्रभाव होने वाला है। हां यह सच है कि ओलंपियन्स खाली स्टेडियम में प्रदर्शन करने वाले हैं लेकिन ठीक उसी वक्त करोड़ो आंखे उन्हें डिजिटल प्लेटफॉर्म, टीवी और इंटरनेट के जरिये देख रहे होंगे तो ऐसे में देश के लिये ओलंपिक पदक जीतने की प्रेरणा एक अलग स्तर पर ले जा सकती है।