डेली अप-डाउन के पैसे नहीं थे, ट्रक में तय किया सफर-
चानू के गांव के आसपास के ट्रक ड्राइवर कई सालों तक उनको ऐसी ही लिफ्ट देते रहे। खिलाड़ी के सफलता में कई ऐसे छोटे-छोटे रोल होते हैं जिनको हम नहीं जान पाते। जब एक इंसान कई लोगों के योगदान से सफल होता है तो वह उनका आभार व्यक्त करना भी नहीं भूलता है। गुरुवार को एक बार फिर ऐसा ही हुआ जब चानू ने इन ट्रक ड्राइवरों का आभार प्रकट किया। उन्होंने 150 के करीब ट्रक ड्राइवरों को ट्रीट दी है।
चानू ने इन ड्राइवरों को एक शर्ट दी, मणिपुरी स्कार्फ देने के साथ लंच कराया है। चानू तब भावुक थीं जब उन्होंने इन सभी ड्राइवरों के प्रति अपना आभार जताया। मीराबाई ने साफ कहा है कि अगर यह ड्राइवर लोग उनकी मदद ना करते तो वह यात्राएं ना कर पाती और आज एक वेटलिफ्टर ना होती, ना ही ओलंपिक मेडल जीतने का उनका सपना पूरा कभी नहीं हो पाता।
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मेडल जीतने के बाद चानू ने दिखाई विनम्रता-
26 साल की वेटलिफ्टर ने स्नैच और क्लीन एंड जर्क प्रतियोगिता में क्रमशः 87 किलोग्राम व 115 किलोग्राम का वजन उठाया और उनको महिलाओं के 49 किलोग्राम कैटेगरी में कुल 202 किलो वजन उठाने के चलते सिल्वर मेडल दिया गया जो कि भारत की पहली वेटलिफ्टर मेडलिस्ट कर्णम मल्लेश्वरी से बेहतर था।
मीराबाई चानू के अलावा भारत 4 पदक और जीत चुका है जिसमें केवल पहलवान रवि कुमार दहिया ही सिल्वर जीतने में कामयाब रहे है।
ओलंपिक इवेंट से 2 दिन पहले कुछ नहीं खाया था-
मीराबाई बता चुकी हैं कि उनको अपनी यात्रा में कितनी तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्होंने एनडीटीवी के साथ बातचीत में बताया भी था कि मैंने अपने जीवन में कई तरह के त्याग किए तब जाकर मैं यहां पर पहुंच पाई हूं। उन्होंने कहा था एक बड़ा खिलाड़ी बनने के लिए आपको बलिदान करना पड़ता है, और मैंने भी कई तरह के त्याग किए हैं।
चानू ने यह भी बताया था कि टोक्यो ओलंपिक में अपने कंपटीशन के दिन से 2 दिन पहले उन्होंने कुछ भी नहीं खाया था। वे अपने वजन को लेकर चिंतित थी और इस चक्कर में खाने को हाथ नहीं लगा पाई। उनका कहना है, वजन को मेंटेन रखना बड़ा मुश्किल होता है, हम लोगों को अपनी डाइट बहुत ही अनुशासित रखनी पड़ती है ताकि अपने भार वर्ग में मेंटेन रह सके।